प्यारा माह बसंत यह,फैलाता उन्माद ,
सखी झरोखे बैठ के,तड़पे प्रियतम याद,
तड़पे प्रियतम याद,नहीं आये हैं साजन,
रस्ता रही निहार,काटता है घर-आँगन,
झड़ते पत्ते-फूल,बह रही अँसुवन धारा ,
दिल में गड़ते शूल,कहाँ है उसका प्यारा ?
सखी झरोखे बैठ के,तड़पे प्रियतम याद,
तड़पे प्रियतम याद,नहीं आये हैं साजन,
रस्ता रही निहार,काटता है घर-आँगन,
झड़ते पत्ते-फूल,बह रही अँसुवन धारा ,
दिल में गड़ते शूल,कहाँ है उसका प्यारा ?
इस बसंत तो सामाजिक हाहाकार मचेगा।
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