ब्लॉग-जगत
से मेरी अनियमितता लगातार जारी है। इस बात को मैं काफ़ी समय पहले पहचान गया था। जब से टेढ़ी
उँगली के चक्कर में पड़ा,
सीधा लेखन बंद-सा हो गया। हाँ,
इस बीच फेसबुकवा में ज़रूर डुबकी लगाना
जारी रहा,
पता नहीं ससुर उससे
कब निजात मिलेगी। इस व्यस्तता के चलते हम ब्लॉग-पोस्टों पर टीप नहीं पा रहे हैं,
दोस्त क्षमा करेंगे। आप भी पढ़ लें,
पर टीपना ज़रूरी नहीं है।
मैंने
एक-डेढ़ साल ख़ूब ग़दर काटी। बड़ा मजा आया। काफ़ी सुखद अनुभव मिले। कड़वी यादों को साथ
नहीं रखता क्योंकि उनकी उम्र थोड़ी होती है। हमारे लेखन में ब्लॉग्गिंग से गज़ब का निखार आया। जहाँ मैं राजनैतिक
लेखन से साहित्यिक लेखन में उतरा और साथियों ने ख़ूब मनोबल बढ़ाया। यहाँ पर ऐसे
साथियों का नाम नहीं लूँगा,हो
सकता है ,फ़िर कभी विस्तार से
बात करनी हो,तब
बूझेंगे।
फिलहाल,जर्मनी की दौड़ ने लस्त-पस्त पड़े
ब्लॉग-जगत को पानी के ठंडे छींटे मारे। उससे लोगों में पुरस्कार और सम्मान पाने की
भारी जद्दोजहद देखी गई। जमकर लाबिंग हुई,समर्थन के रुक्के पढ़े गए,बुक्का-फाड़ निवेदन भी हुए,पर परिणाम आने पर गज़ब की मरघटी-शांति छा
गई। ऐसे मामलों में हमेशा रिस्क रहता है। किसी भी सार्थक लेखन को पुरस्कार या
सम्मान की बैसाखी नहीं चाहिए और जिन्होंने लेखन की सार्थकता को ऐसे झूठे सम्मानों
से जोड़ दिया,वास्तव
में सबसे अधिक नुकसान उन्होंने ही किया। किसी भी काम के प्रति यदि कोई अपने आप
प्रशंसित करता या सम्मानित करता है ,तो उससे प्रेरणा मिलती है और वह गलत नहीं है,पर इसके पीछे यदि हम अपराधी तत्वों का
भी बैक-अप लेने लगें तो स्थिति हास्यास्पद बन जाती है।
बहरहाल,अब माहौल में परिकल्पना-सम्मान का शोर
सुनाई पड़ने लगा है। मेरी व्यक्तिगत राय में ऐसे समारोह सम्मान के बजाय मिलन का
सुखद अनुभव देते हैं और हम इसी कारण से इसे लेते भी हैं। इतनी भागदौड और
लिखने-लिखाने के बाद भी ब्लॉगिंग का सबसे बड़ा उद्देश्य आपसी संवाद या मिलना-मिलाना
है। यह इस वजह से अन्य प्रकार के लेखन से भिन्न है। परिकल्पना वाले कम से कम इसके
लिए एक शुरुआत(इनिशिएटिव) करते हैं और बस,इसी वजह से हम इसका समर्थन भी करते हैं। समारोह में आने-जाने
और खाने का प्रबंध तो हमें खुद करना ही पड़ेगा,इसके लिए भी किसी तर्क या सफ़ाई की ज़रूरत
नहीं है। और हाँ,जो
इस तरह जायेंगे,वे
वहाँ की व्यवस्था-अव्यवस्था पर चाहे तो अधिकृत वक्तव्य भी दे सकते हैं। वैसे मैं
निजी तौर पर समझता हूँ कि इस तरह के कार्यक्रमों में छोटी-मोटी चूक को तिल का ताड़
नहीं बनाना चाहिए। हमारा मुख्य उद्देश्य साथियों से संवाद और मिलना-मिलाना ही है। कुछ
लोग इस शर्त को भी ब्लोगिंग के लिए बेवजह मानते हैं ,सो उनकी मर्जी।
आगामी
१३ से १५ सितम्बर को काठमांडू में होने वाले सम्मेलन के लिए हम तो तैयार हैं। आप
भी यदि समय निकालकर मिल सकें तो अच्छा लगेगा। वहाँ सम्मेलन तो होगा ही,बाबा पशुपति नाथ के दर्शन भी हो जायेंगे।
अपना तो यही खुला एजेंडा है,आपका
क्या है,आप जानें।