आज अंतरराष्ट्रिय महिला-दिवस था.दो दिन पहले से अख़बारों और बाज़ार के माध्यम से बड़ी चर्चा हो रही थी.ऐसा लग रहा था कि इस दफ़ा ज़रूर कुछ नया होगा.यह भी प्रचारित हो रहा था कि वास्तव में आज नारी शक्ति का डंका बज रहा है.
मैंने भी सुबह अपने कुछ मित्रों को इसकी औपचारिक बधाई दी,हालाँकि मैं इन 'एक-दिवसीय' प्रयोजनों से इत्तेफ़ाक नहीं रखता हूँ .इसके बाद किसी काम से बाहर निकल गया.जहाँ गया था ,वहाँ प्रतीक्षालय में बैठ गया और सामने टीवी पर न्यूज़-चैनेल में ख़बरें फट पड़ रही थीं . ग्यारह बजे होंगे ,लगभग एक साथ दो ख़बरें ब्रेक हुईं. पहली ख़बर राजधानी दिल्ली से आई जिसमें बताया गया कि कॉलेज की एक छात्रा को गोली मार दी गई है,जिसकी बाद में अस्पताल में मौत हो गई और दूसरी ख़बर आर्थिक राजधानी मुंबई से थी जिसमें एक महिला ने दो बच्चों समेत अठारहवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान गवां दी.
सच मानिए,महिला-दिवस पर महिलाओं के लिए कितने 'हसीन तोहफ़े' थे ये ! ये दोनों घटनाएं चैनेल वालों के लिए ख़बर का सबब हो सकती हैं और सरकारों के लिए कानून-व्यवस्था का मामला,पर हमारे समाज के लिए इनमें गहरा सन्देश छिपा है.जहाँ पहली घटना एक किशोरी के सपनों की असमय मौत है,कथित 'प्रेम-प्रसंग' का मामला हो सकता हैं वहीँ दूसरी ओर एक भरे-पूरे परिवार का ,घर-गृहस्थी का उजड़ जाना है.
दोनों मामलों की तह में जाने पर हो सकता है कुछ नई बातें सामने आयें पर इतना तो तय है कि हमारा समाज आज जिस दिशा की ओर भाग रहा है,उसके ऐसे ही दुखद परिणाम निकलने हैं.जहाँ आज प्रेम को महज 'पाने' तक का उपक्रम मान लिया गया है,वहीँ हमारी जीवन शैली भौतिकवादिता की ओर उन्मुख होकर पूरे परिवार के अवसाद का कारण बनती है.
उस नव-यौवना का क्या दोष था जिसने अभी पूरी तरह सपने भी नहीं देखे थे और उसका सीना छलनी कर दिया गया, उस महिला का क्या दोष था जो अपने परिवार का उत्सर्ग करने पर मज़बूर हो गई ? सबसे ह्रदय-विदारक सवाल उन अबोध बच्चों के बारे में है जिन्हें पता ही नहीं लगा कि वे उस माँ के द्वारा मारे जा रहे हैं जो उनकी जन्मदात्री और पालनहार थी !हो सकता है इन सवालों के ज़वाब मिल भी जाएँ पर उन सबको न्याय किसी भी सूरत में नहीं मिल सकता !
बहर-हाल ,महिला-दिवस बड़े जोर-शोर से मनाया गया,कुछ ऊँची कुर्सियों पर बैठी महिलाओं के आसन और ऊँचे किये गए,सेलिब्रिटीस ने एक-दूसरे को जमकर कोन्ग्रैट्स और सेलेब्रेट किया.सरकार ने कानून-व्यवस्था और दुरुस्त करने की बात की,बाज़ार ने अपना सामान बेचा,पर हाय ,उन जैसे निर्दोषों को हमारी,आपकी संवेदना के अलावा कुछ नहीं हासिल होगा.मेरा मन बड़ा उद्विग्न है,आप ही कुछ सुझाएँ !
मैंने भी सुबह अपने कुछ मित्रों को इसकी औपचारिक बधाई दी,हालाँकि मैं इन 'एक-दिवसीय' प्रयोजनों से इत्तेफ़ाक नहीं रखता हूँ .इसके बाद किसी काम से बाहर निकल गया.जहाँ गया था ,वहाँ प्रतीक्षालय में बैठ गया और सामने टीवी पर न्यूज़-चैनेल में ख़बरें फट पड़ रही थीं . ग्यारह बजे होंगे ,लगभग एक साथ दो ख़बरें ब्रेक हुईं. पहली ख़बर राजधानी दिल्ली से आई जिसमें बताया गया कि कॉलेज की एक छात्रा को गोली मार दी गई है,जिसकी बाद में अस्पताल में मौत हो गई और दूसरी ख़बर आर्थिक राजधानी मुंबई से थी जिसमें एक महिला ने दो बच्चों समेत अठारहवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान गवां दी.
सच मानिए,महिला-दिवस पर महिलाओं के लिए कितने 'हसीन तोहफ़े' थे ये ! ये दोनों घटनाएं चैनेल वालों के लिए ख़बर का सबब हो सकती हैं और सरकारों के लिए कानून-व्यवस्था का मामला,पर हमारे समाज के लिए इनमें गहरा सन्देश छिपा है.जहाँ पहली घटना एक किशोरी के सपनों की असमय मौत है,कथित 'प्रेम-प्रसंग' का मामला हो सकता हैं वहीँ दूसरी ओर एक भरे-पूरे परिवार का ,घर-गृहस्थी का उजड़ जाना है.
दोनों मामलों की तह में जाने पर हो सकता है कुछ नई बातें सामने आयें पर इतना तो तय है कि हमारा समाज आज जिस दिशा की ओर भाग रहा है,उसके ऐसे ही दुखद परिणाम निकलने हैं.जहाँ आज प्रेम को महज 'पाने' तक का उपक्रम मान लिया गया है,वहीँ हमारी जीवन शैली भौतिकवादिता की ओर उन्मुख होकर पूरे परिवार के अवसाद का कारण बनती है.
उस नव-यौवना का क्या दोष था जिसने अभी पूरी तरह सपने भी नहीं देखे थे और उसका सीना छलनी कर दिया गया, उस महिला का क्या दोष था जो अपने परिवार का उत्सर्ग करने पर मज़बूर हो गई ? सबसे ह्रदय-विदारक सवाल उन अबोध बच्चों के बारे में है जिन्हें पता ही नहीं लगा कि वे उस माँ के द्वारा मारे जा रहे हैं जो उनकी जन्मदात्री और पालनहार थी !हो सकता है इन सवालों के ज़वाब मिल भी जाएँ पर उन सबको न्याय किसी भी सूरत में नहीं मिल सकता !
बहर-हाल ,महिला-दिवस बड़े जोर-शोर से मनाया गया,कुछ ऊँची कुर्सियों पर बैठी महिलाओं के आसन और ऊँचे किये गए,सेलिब्रिटीस ने एक-दूसरे को जमकर कोन्ग्रैट्स और सेलेब्रेट किया.सरकार ने कानून-व्यवस्था और दुरुस्त करने की बात की,बाज़ार ने अपना सामान बेचा,पर हाय ,उन जैसे निर्दोषों को हमारी,आपकी संवेदना के अलावा कुछ नहीं हासिल होगा.मेरा मन बड़ा उद्विग्न है,आप ही कुछ सुझाएँ !
हर दिवस महिला दिवस हो।
जवाब देंहटाएंदोनों घटनाएं दर्दनाक।
मन का उद्विग्न होना स्वाभाविक है. आपका कहना क़ि प्रेम को महज 'पाने' तक का उपक्रम मान लिया गया है, और हमारी जीवन शैली भौतिकवादिता की ओर उन्मुख होकर पूरे परिवार के अवसाद का कारण बनती है, सही है. यह दिवस भी बौध्दिक जुगाली तक न सिमित रह जाये, यह सुनिश्चित करना होगा.
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ ईशारा कर रही है दोनों घटनाएं संतोष भाई । सा्र्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंहर देश में अपराध से जूझने के लिए अपने कानून , समय - समय पर फेर बदल होकर बनते ही रहते है ! जो इस तरह के ब्याभिचार में लिप्त है वे समाज के दुश्मन और हे के पात्र है ! कानून इन्हें रोकने में सक्षम नहीं है, अतः सामाजिक तौर पर कार्यवाही जरूरी है ! जो इस में लिप्त है , वे भी हमारे मध्य में ही रहते है !
जवाब देंहटाएंएक दिनी आयोजन में इसके सिवा और क्या हो सकता है ?
जवाब देंहटाएंऔर आप दो घटनाओं पर रुदाली कर रहें .......खुश होइए कि दो ही घटनाओं की खबर आयी|
पता नहीं आपका यह पोस्ट मेरी फीड से कैसे निकल गया। बहुत ही सुन्दर विवेचना।
जवाब देंहटाएंदुखद है यह ...शुभकामनायें आपके लिए !
जवाब देंहटाएं@मनोज कुमार इनसे कोई सबक तो ले !आपका धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं@संतोष पाण्डेय आजकल सब कुछ बाज़ार की चपेट में है,हम और आप क्या कर सकते हैं ?
@अजय झा आप पधारे ,आपका धन्यवाद...इसी तरह छठे-समासे दर्शन दे दिया करो !
@G .N .SHAW आपका शुक्रिया !
@प्रवीण त्रिवेदी ये दो घटनाएँ महज़ प्रतीकात्मक थीं,घटनाएँ तो खूब घट(कम के अर्थ में नहीं)रही हैं !
@प्रवीण पाण्डेय आप जितने अच्छे लेखक,विचारक हैं उतने ही सहृदय भी.आपका प्यार यूँ ही मिलता रहे ,खुशनसीब समझूँगा !
@सतीश सक्सेना आपकी भावनाओं का आभारी हूँ !
कन्या-भ्रूण हत्या , दहेज का चलन , बढ़ते बलात्कार की घटनाएं बता रही हैं , महिला-दिवस के पाखण्ड को।
जवाब देंहटाएं@ZEAL वास्तव में हम बाज़ार की गिरफ्त में हैं !
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