देश के सभी बोर्डों में बारहवीं का एक ही पाठ्यक्रम(गणित व विज्ञान) लागू किये जाने की बात तय हुई है,अच्छी खबर है। पर यहाँ मुख्य सवाल यह है कि क्या इतने भर से सारे बच्चों के साथ न्याय हो जायेगा ? हर प्रदेश में हर बोर्ड में,हर स्कूल में और हर अभिभावक की स्थिति में क्या समानता है ?
दर असल हमारी पूरी शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन की ज़रुरत है। आज नौकरियों में जो माँग पेश की जाती है ,उसका आधार महज़ एक समान परीक्षा-पद्धति है,पर क्या इस पर गंभीरता से विचार होता है कि जब सबकी शिक्षा-पद्धति अलग है तो योग्यता के निर्धारण का पैमाना एक कैसे न्यायोचित है?
चाहे ,गाँव और शहर का फ़र्क हो,अमीरी,ग़रीबी का हो ,शिक्षण-संस्थानों का हो -फ़र्कों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है !
हमारे क़ानून-निर्माता और भाग्य-निर्माता इन फ़र्कों से परे है क्योंकि इनसे वे अप्रभावित हैं ! यह गाँधी जी के सपनों का भारत है क्या जिसमें सत्ता देने वाला असहाय और साधन-हीन होता है जबकि देश-सेवा के नाम पर शपथ लेने वाले अपने साधनों को समृद्ध करते जाते हैं !
गाँधी जी ने प्राथमिक-शिक्षा को बड़ी गंभीरता से लिया था पर आज आम आदमी अपने बच्चे को स्कूल में दाख़िला कराने की ही ज़द्दोज़हद करता है और यह प्रक्रिया उच्च शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा तक जाती है।
क्या ही अच्छा होता कि सारे देश में एक शिक्षा-प्रणाली हो जिसमें सबको समान मौके मिलें व अपनी प्रतिभा निखारने का अवसर मिले !सरकार सर्व शिक्षा अभियान चलाकर करोड़ों रूपये अधिकारियों व बिचौलियों पर न्योछावर कर रही है पर मूल समस्या पर वह ध्यान नहीं दे रही है।
आज सरकारी विद्यालय धर्मशालाओं में तब्दील हो रहे हैं जहाँ बच्चों के लिए खाना-पीना,बस्ता ,रुपया मुफ़्त बँट रहा है,सिवाय शिक्षा के !स्कूलों में शैक्षणिक माहौल क़ायम करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए ,वहां जब तक पढ़ाई का वातावरण नहीं बन पाता तब तक पाठ्यक्रम एक करने की कसरत अधूरी ही रहेगी !
दर असल हमारी पूरी शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन की ज़रुरत है। आज नौकरियों में जो माँग पेश की जाती है ,उसका आधार महज़ एक समान परीक्षा-पद्धति है,पर क्या इस पर गंभीरता से विचार होता है कि जब सबकी शिक्षा-पद्धति अलग है तो योग्यता के निर्धारण का पैमाना एक कैसे न्यायोचित है?
चाहे ,गाँव और शहर का फ़र्क हो,अमीरी,ग़रीबी का हो ,शिक्षण-संस्थानों का हो -फ़र्कों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है !
हमारे क़ानून-निर्माता और भाग्य-निर्माता इन फ़र्कों से परे है क्योंकि इनसे वे अप्रभावित हैं ! यह गाँधी जी के सपनों का भारत है क्या जिसमें सत्ता देने वाला असहाय और साधन-हीन होता है जबकि देश-सेवा के नाम पर शपथ लेने वाले अपने साधनों को समृद्ध करते जाते हैं !
गाँधी जी ने प्राथमिक-शिक्षा को बड़ी गंभीरता से लिया था पर आज आम आदमी अपने बच्चे को स्कूल में दाख़िला कराने की ही ज़द्दोज़हद करता है और यह प्रक्रिया उच्च शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा तक जाती है।
क्या ही अच्छा होता कि सारे देश में एक शिक्षा-प्रणाली हो जिसमें सबको समान मौके मिलें व अपनी प्रतिभा निखारने का अवसर मिले !सरकार सर्व शिक्षा अभियान चलाकर करोड़ों रूपये अधिकारियों व बिचौलियों पर न्योछावर कर रही है पर मूल समस्या पर वह ध्यान नहीं दे रही है।
आज सरकारी विद्यालय धर्मशालाओं में तब्दील हो रहे हैं जहाँ बच्चों के लिए खाना-पीना,बस्ता ,रुपया मुफ़्त बँट रहा है,सिवाय शिक्षा के !स्कूलों में शैक्षणिक माहौल क़ायम करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए ,वहां जब तक पढ़ाई का वातावरण नहीं बन पाता तब तक पाठ्यक्रम एक करने की कसरत अधूरी ही रहेगी !
क्या ही अच्छा होता कि सारे देश में एक शिक्षा-प्रणाली हो जिसमें सबको समान मौके मिलें व अपनी प्रतिभा निखारने का अवसर मिले !
जवाब देंहटाएंदुर्भाग्यवश शिक्षा की वर्तमान प्रणाली की रचना कुछ इस तरह की है कि उसका हमारी परिस्थिति के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है और उससे जो कुछ मिलता है वह भी राष्ट्र के बहुत थोड़ी संख्या के लड़के-लड़कियों को मिलता है। इसलिए इस शिक्षा का प्रभाव परिस्थिति पर कुछ भी पड़ता हो, ऐसा नहीं दिखता।
जवाब देंहटाएंआप की शिकायत आई है स्कूल का फोटो बिना डिपार्टमेंट की इज्जाजत के केसे डाल दिया.
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