नयी लोकसभा का गठन अब अपने अन्तिम चरण में है। जितनी अनिश्चितता और आशंकाएं इस बार के चुनावों में मतदाता के मन में रही हैं,उतनी शायद कभी नहीं रही। यह चुनाव असली मुद्दों से ज़्यादा भड़काऊ भाषणों ,करोड़पति उम्मीदवारों,अशालीन आक्षेपों और अनगिनत प्रधानमंत्री पदसंभावित उम्मीदवारों के लिए ज़्यादा जाना जाएगा! सरकार बनाने की प्रक्रिया में छोटे और क्षेत्रीय दलों की करवट के बारे में भी अलग-अलग तरह के कयास लगाये जा रहे हैं ,पर हर कोई अपने सारे पत्ते खुला रखना चाहता है।
वामपंथियों की लाख घुड़कियों के बावजूद यह हर कोई जानता है कि वोह कांग्रेस से परहेज़ नहीं कर सकती क्योंकि उसका 'थर्ड -फ्रंट' परिणामों के निकलते ही चल बसेगा । जानकारों कि उम्मीद यही है कि अडवाणी जी को फिर से निराशा हाथ लगेगी और सत्ता आखिर 'हाथ' के ही पास रहेगी। अगर ऐसा नहीं भी हुआ तो कांग्रेस आसानी से किसी और का खेल नहीं बनने देगी या फिर वह विपक्ष में बैठेगी !
सोलह मई का इंतज़ार सबको है पर सभी राजनैतिक दल अपनी लॉटरी का ख्वाब देख रहे हैं और जनता एक अदद सरकार के बनने का ,जिसकी प्रक्रिया में उसकी आंशिक या कहिये प्रतीकात्मक भागीदारी है!
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