सब गिर गए हैं,किसे अब गिराएँ,
मुहब्बत में थोड़ा,ज़हर भी मिलाएँ ।
तनिक पास आओ,हमसे मिलो
झटकने से पहले,गले तो लगाएँ।
मिल कर रहेंगे तो अच्छा रहेगा,
तुम जेल जाओ,तुम्हें हम छुड़ाएँ।
तुम्हारे हैं पासे,तुम्हारी हैं चालें,
गिरो तो गिराएँ,उठो तो उठाएँ ।
सियासत की बहती गंगा यहाँ
तुम भी नहाओ,हम भी नहाएँ ।
चलो आज ऐसा वादा करें,
पहले के वादे सभी भूल जाएँ ।
—संतोष त्रिवेदी