28 अक्टूबर 2019

सियासत

सब गिर गए हैं,किसे अब गिराएँ,
मुहब्बत में थोड़ा,ज़हर भी मिलाएँ

तनिक पास आओ,हमसे मिलो
झटकने से पहले,गले तो लगाएँ।

मिल कर रहेंगे तो अच्छा रहेगा,
तुम जेल जाओ,तुम्हें हम छुड़ाएँ। 

तुम्हारे हैं पासे,तुम्हारी हैं चालें,
गिरो तो गिराएँ,उठो तो उठाएँ

सियासत की बहती गंगा यहाँ
तुम भी नहाओ,हम भी नहाएँ

चलो आज ऐसा वादा करें,
पहले के वादे सभी भूल जाएँ


संतोष त्रिवेदी 

24 सितंबर 2019

जीडीपी बादरु फारे है !

सोना नींद हराम केहे
रुपिया ख़ूनु निकारे है।
बड़की बातैं सब हवा हुईं,
जीडीपी बादरु फारे है।

गै लूटि तिजोरी बंकन कै
खीसा पूरा अउ झारि दिहेन
बैपारी पैकेज चाँटि रहे,
लरिकउना पेटु उघारे है।

करिया-धनु एकदम गा बिलाय
अब तौ बिकास चुचुहाय रहा।
टिलियन डॉलर बसि आवति हैं
निम्मो दीदी समुझाय कहा।

रोज़ी-रुजगार का पूछो ना
बैलवा काँधु अब डारि दिहिसि।
काटु करै अब कउनि दवा
यहु मंदी जानु निकारे है !

जब ते तीन तलाक़ गवा,
कश्मीरौ ‘धारा’ छाँड़ि दिहिसि
अमरीका की धरतिउ ते अब
ज्वानु हमा ललकारे है।

तब ते संतोषु केहे हरिया
दुखु वहिका माटी होइगा।
देशभक्ति की चढ़ी बाढ़ मा
कउनो मुलु पाथर बोइगा।।

-संतोष त्रिवेदी

21 सितंबर 2019

ग़ज़ल

अनमने सब, जी नहीं बहला हुआ।
इस शहर में यह नया मसला हुआ।

आदमी है वो भी मेरी ही तरह
अब लगे है रोज़ वह बदला हुआ।

तुम भी इक दिन जान जाओगे उसे
शख्स वह चुप है अभी दहला हुआ।

मान और सम्मान भी बिकने लगा
नारियल और शॉल में घपला हुआ।

गर्दनें सबकी झुकी हैं सामने
इस जहाँ में बादशा पहला हुआ।

-संतोष त्रिवेदी

सुधारक: Siddheshwar Singh

दिल अकेला था बहुत मचला हुआ ।
आपसे मिलकर लगा बहला हुआ ।।

चाँद उसको कह दिया था एक दिन ।
रोज दिखता है हमें बदला हुआ ।।

कैद हैं खुशियां उसी के पास में ।
और पूरा गाँव है दहला हुआ ।।

बोलियाँ लगने लगी सम्मान की ।
आदमी अपमान में पतला हुआ ।।

गर्दनों पर धार है तलवार की ।
चाकुओं का जिस्म पर हमला हुआ ।।

एक लोई, एक बेलन आग भी ।
आदमी चूल्हा तथा चकला हुआ ।।

Brahma Dev Sharma जी का कमाल !

26 अगस्त 2019

ग़ज़ल

 कुछ जुमले थे कुछ नारे थे

वो ईश्वर के हरकारे थे। 


सबका विकास, सब साथ रहें 

लगते केवल जयकारे थे। 


बज रहा रेडियो हर हफ्ते 

मन-बात नहीं अंगारे थे। 


बुलेट ट्रेन सरपट दौड़ी

कुचले किसान बेचारे थे।


रोज़ी-रोटी नहीं चाहिए 

ये तो धरम के मारे थे।


बदले वक्त में वो भी बदले 

जो आँखों के तारे थे। 


©संतोष त्रिवेदी