बारिश का इमकान नहीं है,
आदम अब इंसान नहीं है।
पाथर दूब भले जम जाए,
मंदिर में भगवान नहीं है।
चुप्पी साध रखी है उसने,
शातिर है, नादान नहीं है।
गुंडे अब अगुवाई करते,
खादी में ईमान नहीं है।
संत विराजे हैं कुर्सी पर,
भक्त मगन हैं,ज्ञान नहीं है।
आदम अब इंसान नहीं है।
पाथर दूब भले जम जाए,
मंदिर में भगवान नहीं है।
चुप्पी साध रखी है उसने,
शातिर है, नादान नहीं है।
गुंडे अब अगुवाई करते,
खादी में ईमान नहीं है।
संत विराजे हैं कुर्सी पर,
भक्त मगन हैं,ज्ञान नहीं है।