आदमी ने साँप को,अब डस लिया है,
हाथ से अपने, उसी ने, विष पिया है।
राजपथ को झाँकता था,दूर से जो,
आज उसके द्वार पर,पग धर दिया है।
लाठियाँ चारों तरफ़ से, उठ गईं,
मूर्ख है, उसने सभी का हक लिया है।
बात डरने और मरने की नहीं अब,
इतने सालों से कहाँ भी वह जिया है ?
हाथ से अपने, उसी ने, विष पिया है।
राजपथ को झाँकता था,दूर से जो,
आज उसके द्वार पर,पग धर दिया है।
लाठियाँ चारों तरफ़ से, उठ गईं,
मूर्ख है, उसने सभी का हक लिया है।
बात डरने और मरने की नहीं अब,
इतने सालों से कहाँ भी वह जिया है ?