ख़बर है,राम मंदिर पर अदालत अपना फ़ैसला सुनाएगी,पर ऐसा सोचकर मेरा सर चकरघिन्नी खा रहा है. ऐसे फ़ैसले अदालत के ज़रिये नहीं तय होते क्योंकि राम किसी संपत्ति का हिस्सा नहीं हैं और न इस मुक़दमे के पक्षकार !आखिर इसकी ज़रुरत कैसे पड़ी,इसके लिए भी राम के झूठे 'हमदर्द' जिम्मेदार हैं. इस मसले को इस कदर फुटबाल की 'किक' की तरह उछाला गया है कि अब इससे 'राजनैतिक लाभ' भी नहीं मिलने वाला.
राम मंदिर को लेकर हल्ला मचने वाली पार्टी भाजपा कई सालों की नींद के बाद अब फिर उठने की मुद्रा में है.आडवाणी जी ने शायद पहली 'रथ-यात्रा' से कोई सबक नहीं लिया है ,तभी वह फिर से दूसरी यात्रा की तैयारी कर रहे हैं .'हार नहीं मानूंगा' की तर्ज़ पर वे अपना बुढ़ापा तो ख़राब कर ही रहे हैं,पार्टी को भी गर्त में डाल रहे हैं.
असल बात यह है कि राम के सच्चे पूजकों को न किसी फ़ैसले की दरकार है और न ही ऐसे विवादित मंदिर की.उसके राम 'मर्यादा पुरुषोत्तम' हैं व उनके दिलों में रहते हैं.स्वयं राम द्वारा महर्षि वाल्मीकि से यह पूछने पर कि वह कहाँ रहें,महर्षि ने जवाब दिया था,"तुम्हहि छाडि गति दूसरि नाहीं,राम बसहु ,तिनके मनमाहीं". महर्षि ने कई तरह से बताया कि उनका वास कहाँ-कहाँ है,यहाँ तक चुनौती दी कि वे जहाँ कहें ,मैं वहीँ दिखा दूँगा,अर्थात वे तो सर्व-व्यापी हैं ,उन्हें किसी धर्म,देश या स्थान की सीमा में नहीं बांधा जा सकता है.
क्या ही अच्छा होता कि राम का मंदिर तभी बने जब किसी समुदाय के लोगों को कोई आपत्ति न हो और यह तभी हो सकता है,जब इससे 'राजनीति' न खेली जाए.काश ,ये बात हमारे नेता और 'राम-भक्त' सुन लेते !
राम मंदिर को लेकर हल्ला मचने वाली पार्टी भाजपा कई सालों की नींद के बाद अब फिर उठने की मुद्रा में है.आडवाणी जी ने शायद पहली 'रथ-यात्रा' से कोई सबक नहीं लिया है ,तभी वह फिर से दूसरी यात्रा की तैयारी कर रहे हैं .'हार नहीं मानूंगा' की तर्ज़ पर वे अपना बुढ़ापा तो ख़राब कर ही रहे हैं,पार्टी को भी गर्त में डाल रहे हैं.
असल बात यह है कि राम के सच्चे पूजकों को न किसी फ़ैसले की दरकार है और न ही ऐसे विवादित मंदिर की.उसके राम 'मर्यादा पुरुषोत्तम' हैं व उनके दिलों में रहते हैं.स्वयं राम द्वारा महर्षि वाल्मीकि से यह पूछने पर कि वह कहाँ रहें,महर्षि ने जवाब दिया था,"तुम्हहि छाडि गति दूसरि नाहीं,राम बसहु ,तिनके मनमाहीं". महर्षि ने कई तरह से बताया कि उनका वास कहाँ-कहाँ है,यहाँ तक चुनौती दी कि वे जहाँ कहें ,मैं वहीँ दिखा दूँगा,अर्थात वे तो सर्व-व्यापी हैं ,उन्हें किसी धर्म,देश या स्थान की सीमा में नहीं बांधा जा सकता है.
क्या ही अच्छा होता कि राम का मंदिर तभी बने जब किसी समुदाय के लोगों को कोई आपत्ति न हो और यह तभी हो सकता है,जब इससे 'राजनीति' न खेली जाए.काश ,ये बात हमारे नेता और 'राम-भक्त' सुन लेते !
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
पता नहीं भविष्य इस इतिहास को कैसे देखेगा।
जवाब देंहटाएं@सत्यप्रकाश पाण्डेय बहुत धन्यवाद,कुछ दिशा-निर्देशन भी करें !
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय इतिहास भी हमीं लिखते हैं पर समय किसी को मानव या महामानव बनाने में ज़रूर इतिहास का सहारा लेगा !
महाराज .....! दरिया बनते जाना आसां है मुश्किल है तो निभाना !
जवाब देंहटाएं....ज़रा राम की जगह किसी और धर्म के इष्ट को रख कर देखिये तो ज़रा ?
@प्रवीण त्रिवेदी मास्साब,हम इसीलिये सबसे अलग हैं क्योंकि हमारे यहाँ धर्म को लेकर खून-ख़राबा वर्ज़ित है. क्या हम ईरान,पाकिस्तान या इज़राइल की श्रेणी में आना चाहते हैं.प्रभु राम के असली भक्त हमेशा त्याग को तरजीह देंगे,जैसा उनके इष्ट ने किया है. हम दूसरों को क्यों देखें !
जवाब देंहटाएं@संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
जवाब देंहटाएंक्या हम ईरान,पाकिस्तान या इज़राइल की श्रेणी में आना चाहते हैं.प्रभु राम के असली भक्त हमेशा त्याग को तरजीह देंगे,जैसा उनके इष्ट ने किया है. हम दूसरों को क्यों देखें !
....हम वह हो ही नहीं सकते .....!! यह हमारी हिन्दू संस्कृति ही है जो हमें विवेचन और विश्लेषण की ताकत और अधिकार देती है ...पर कहीं ना कहीं हम अपनी वैचारिक जमीन छोड़ते जा रहे हैं इसी खुश-फहमी में ...यह ठीक नहीं !
@प्रवीण त्रिवेदी कुछ हद तक आपकी बात इस मायने में सही है कि बहुसंख्यक होने का दर्द हमेशा हमीं क्यों भुगतें? लेकिन इसके लिए यदि ज़िम्मेदारी किसी की बनती है तो वह है सरकार.हमें किसी अवाम के प्रति 'बैर-भाव' रखने की ज़रुरत नहीं है.
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