हर वर्ष सरकारी आंकड़े यह बता रहे हैं कि देश में शिक्षा का स्तर लगातार बढ़ रहा है,पर क्या ज़मीनी हक़ीक़त यही है ?अनौपचारिक शिक्षा को तो छोड़िये,हालाँकि उसके नाम पैसों का बंदर-बाँट सबसे ज़्यादा हो रहा है, औपचारिक शिक्षा की भी नींव हिलाने का पूरा इंतज़ाम किया जा चुका है !
सरकारी विद्यालयों में आधार-भूत सुविधाओं की अभी-भी कमी है,शिक्षक पर्याप्त नहीं है,फिर भी इन कमियों को थोड़ा दर-किनार किया जा सकता है,पर जो सबसे चिंताजनक पहलू उभर कर आ रहा है कि आज ऐसी व्यवस्था लाद दी गयी है कि विद्यालयों का माहौल पढ़ाई के अनुकूल नहीं रह गया है. छात्रों में अनुशासन नाम की कोई चीज़ नहीं रह गयी है, ऐसे में ७०-८० की औसत छात्र-संख्या वाली कक्षा को कोई जादूगर ही नियंत्रित कर सकता है. उनमें गुरु के प्रति आदर भाव तो कब का ख़त्म हो चुका है,पर अब सामान्य शिष्टाचार भी दुर्लभ हो रहा है.
कई ऐसे मौके आते हैं जब छात्र शिक्षक के सामने अशिष्ट आचरण करता है और शिक्षक नए नियमों का पालन करने को मज़बूर होता है,जहाँ उसके लिए यह ताक़ीद की गयी है कि वह उन्हें डांट तक नहीं सकता !
आज विद्यालयों में सरकारी अनुदान की भरमार की जा रही है. खाना तो दिया ही जा रहा है वर्दी और पुस्तकों के अलावा अन्य कई तरह से नकद राशि दी जा रही है,बस नहीं दी जा रही है शिक्षा, जिसके लिए वो यहाँ आते हैं. शिक्षक को यूनिट-टेस्ट व दूसरे और टेस्ट बनाने और जाँचने में उलझा दिया गया है और अन्य कार्यों की तो बात ही न करें. कुल मिलाकर 'मास्टरजी' को बाबू बनाया जा रहा है.
छात्रों में तो कई दोष हैं ,पर वास्तव में वे असली दोषी नहीं हैं क्योंकि उन्हें नहीं पता कि जो वो कर रहे हैं वह ग़लत है और यही बात शिक्षक उन्हें बता नहीं पा रहा है . नैतिक-शिक्षा का तो अता-पता है ही नहीं , सामान्य शिक्षा की ही हालत ख़राब है . इस सबके लिए सरकार,मीडिया,अभिभावक ,प्रशासक और शिक्षक सभी सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार हैं !
सरकारी विद्यालयों में आधार-भूत सुविधाओं की अभी-भी कमी है,शिक्षक पर्याप्त नहीं है,फिर भी इन कमियों को थोड़ा दर-किनार किया जा सकता है,पर जो सबसे चिंताजनक पहलू उभर कर आ रहा है कि आज ऐसी व्यवस्था लाद दी गयी है कि विद्यालयों का माहौल पढ़ाई के अनुकूल नहीं रह गया है. छात्रों में अनुशासन नाम की कोई चीज़ नहीं रह गयी है, ऐसे में ७०-८० की औसत छात्र-संख्या वाली कक्षा को कोई जादूगर ही नियंत्रित कर सकता है. उनमें गुरु के प्रति आदर भाव तो कब का ख़त्म हो चुका है,पर अब सामान्य शिष्टाचार भी दुर्लभ हो रहा है.
कई ऐसे मौके आते हैं जब छात्र शिक्षक के सामने अशिष्ट आचरण करता है और शिक्षक नए नियमों का पालन करने को मज़बूर होता है,जहाँ उसके लिए यह ताक़ीद की गयी है कि वह उन्हें डांट तक नहीं सकता !
आज विद्यालयों में सरकारी अनुदान की भरमार की जा रही है. खाना तो दिया ही जा रहा है वर्दी और पुस्तकों के अलावा अन्य कई तरह से नकद राशि दी जा रही है,बस नहीं दी जा रही है शिक्षा, जिसके लिए वो यहाँ आते हैं. शिक्षक को यूनिट-टेस्ट व दूसरे और टेस्ट बनाने और जाँचने में उलझा दिया गया है और अन्य कार्यों की तो बात ही न करें. कुल मिलाकर 'मास्टरजी' को बाबू बनाया जा रहा है.
छात्रों में तो कई दोष हैं ,पर वास्तव में वे असली दोषी नहीं हैं क्योंकि उन्हें नहीं पता कि जो वो कर रहे हैं वह ग़लत है और यही बात शिक्षक उन्हें बता नहीं पा रहा है . नैतिक-शिक्षा का तो अता-पता है ही नहीं , सामान्य शिक्षा की ही हालत ख़राब है . इस सबके लिए सरकार,मीडिया,अभिभावक ,प्रशासक और शिक्षक सभी सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार हैं !
हाँ !...सच है हम सब जिम्मेदार हैं !......लेकिन शैक्षिक नीति निर्माता सबसे अधिक जवाबदेह हैं !!
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