अभी जल्दी में एक ख़बर आई कि अपनी राष्ट्रिय पार्टी ,भाजपा बीमार है,सुनकर बड़ा दुःख हुआ क्योंकि अपने को इस पार्टी से बेहद लगाव है। उसे क्या बीमारी है इस पर बाद में बात करते हैं ,सबसे पहले तो उसकी बीमारी पर हमारी चिंता तो जान लें !
अगर एक देशभक्त पार्टी जो शुचिता ,स्वराज और संस्कृति की बात करती है उसे कुछ हो गया तो हम जैसे लोगों का क्या होगा,हिंदू धर्म का क्या होगा और सबसे बढ़कर उस संकल्प का क्या होगा जो देश की सेवा के लिए इसने लिया हुआ है। देश को परिवारवाद और रोमन साम्राज्य से कौन बचायेगा,अयोध्या में राम-मन्दिर कैसे बन पायेगा और अगर अपना कोई जहाज तालिबानी पकड़ ले गए तो उन्हें जलेबी कौन पहुँचायेगा?
कहते हैं कि उसकी बीमारी की ख़बर अपने ही भागवत साहब ने बताई है साथ ही निदान भी दिया है कि यह बीमारी केवल शल्यक्रिया के द्वारा ही ठीक हो सकती है। अब यह देखने की बात है कि यह सर्जरी पूरे शरीर की होनी है या दिमाग की? हालाँकि राजनाथ जी ने पूछा भी है कि किसका दिमाग ख़राब है, तो एक तरह से उनने भी माना है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है ।
वैसे अपन जैसे कहने वाले बहुत पहले से कह रहे हैं कि पार्टी नहीं उसकी विचारधारा बीमार है पर सुनने वाला कोई नहीं है,उल्टे इसका इलाज़ नरेंद्र मोदी और आडवाणी जी से कराना चाह रही है जबकि सारी बीमारी कि जड़ यहीं है। जिन आडवाणी जी को अगले चुनावों के लिए अनफिट मान लिया गया हो उन्हीं को बेमन ढोते रहना कहाँ की समझदारी है? भाजपा का बीमार होना देश के लिए ठीक नहीं है और समय रहते पार्टी के लोगों द्वारा इसका इलाज़ कर लेना चाहिए नहीं तो जनता सही इलाज़ करना बखूबी जानती है !
इस उम्मीद के साथ कि भाजपा की तबियत जल्द सुधर जायेगी ,ढेर सारी सदिच्छाओं के साथ.....
28 अक्तूबर 2009
8 अक्तूबर 2009
अटलजी का संदेश !
बहुत दिनों बाद अटलजी की तरफ़ से कोई ख़बर आई,मन को थोड़ी ठंडक सी पहुँची कि अभी भी देश में ऐसी कोई आवाज़ है जो ख़बर बनती है !अटलजी का यह संदेश महाराष्ट्र व हरियाणा में हो रहे विधानसभा चुनावों के मद्दे-नज़र आया है,पर इसका प्रभाव मतदाताओं पर भी पड़ेगा ,इस बात से अटलजी भी शंकित होंगे।
दर-असल अटलजी की पारी तो कब की ख़त्म हो ली और अडवाणी जी की हालत तो लोकसभा चुनावों के बाद से ही पतली हो रही है। भाजपाइयों ने ही उन्हें पुराना 'अचार ' कहकर उनके अस्तित्व पर हँसने का मौका मुहैया कराया, ऐसे में पार्टी के रणनीतिकारों ने अपने पुराने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है,पर उन्हें पता भी है कि एक चुका हुआ कारतूस कितना काम कर सकता है?
अटलजी ने अपने संदेश में लोगों से कांग्रेस के कुशासन से बचने को कहा है,गोया उन्हें भी इस बात का इल्हाम हो गया हो कि भाजपा गठबंधन सत्ता में वापस नहीं आ रहा है, नहीं तो वे अपने दल की तरफ़ से जनता को नया क्या देने जा रहे हैं ,इस बारे में बताते।
जिस दल में नेत्रत्व को लेकर बराबर अनिश्चितता बनी हुई हो वह किसी देश या प्रदेश को किस निश्चित राह पर ले जाने को सक्षम होगा ,यह संघ और भाजपा के तमाम बुद्धिजीवी भी जानते होंगे। अडवाणी जी के नेत्रत्व की खुलेआम विफलता के बाद भी पद न छोड़ने की मानसिकता भाजपा के लिए बहुत भारी पड़ने वाली है।
ऐसे संदेश यदि काम करते तो शायद पार्टी इस हाल में न होती क्योंकि जनता को अटलजी का वह संदेश अभी भूला नहीं है जो उन्होंने 'गोधरा' के बाद नरेंद्र मोदी को 'राज-धर्म' निभाने के बारे में दिया था। तब मोदी और अडवाणी जी ने उसके निहितार्थ नहीं समझे ।
एक पार्टी को अपनी चुनावी जीत पक्की करने का पूरा अधिकार है,पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह उपलब्धि वह किस मूल्य पर पाना चाहती है?
दर-असल अटलजी की पारी तो कब की ख़त्म हो ली और अडवाणी जी की हालत तो लोकसभा चुनावों के बाद से ही पतली हो रही है। भाजपाइयों ने ही उन्हें पुराना 'अचार ' कहकर उनके अस्तित्व पर हँसने का मौका मुहैया कराया, ऐसे में पार्टी के रणनीतिकारों ने अपने पुराने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है,पर उन्हें पता भी है कि एक चुका हुआ कारतूस कितना काम कर सकता है?
अटलजी ने अपने संदेश में लोगों से कांग्रेस के कुशासन से बचने को कहा है,गोया उन्हें भी इस बात का इल्हाम हो गया हो कि भाजपा गठबंधन सत्ता में वापस नहीं आ रहा है, नहीं तो वे अपने दल की तरफ़ से जनता को नया क्या देने जा रहे हैं ,इस बारे में बताते।
जिस दल में नेत्रत्व को लेकर बराबर अनिश्चितता बनी हुई हो वह किसी देश या प्रदेश को किस निश्चित राह पर ले जाने को सक्षम होगा ,यह संघ और भाजपा के तमाम बुद्धिजीवी भी जानते होंगे। अडवाणी जी के नेत्रत्व की खुलेआम विफलता के बाद भी पद न छोड़ने की मानसिकता भाजपा के लिए बहुत भारी पड़ने वाली है।
ऐसे संदेश यदि काम करते तो शायद पार्टी इस हाल में न होती क्योंकि जनता को अटलजी का वह संदेश अभी भूला नहीं है जो उन्होंने 'गोधरा' के बाद नरेंद्र मोदी को 'राज-धर्म' निभाने के बारे में दिया था। तब मोदी और अडवाणी जी ने उसके निहितार्थ नहीं समझे ।
एक पार्टी को अपनी चुनावी जीत पक्की करने का पूरा अधिकार है,पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह उपलब्धि वह किस मूल्य पर पाना चाहती है?
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