अपने आडवाणी जी वाकई बहुत जल्दी में हैं। 'पी एम इन वेटिंग ' का खिताब पाने के बाद वे 'ओरिजनल' पी एम बनना चाहते हैं। इसके लिए वे युद्ध-स्तर पर काम कर रहे हैं। एक ओर जहाँ वे मनमोहन को सोनिया गाँधी की कठपुतली बनाकर मजाक उड़ा रहे हैं,वहीं दूसरी ओरउन्होंने चुनावी-मैदान में अपने मुखौटे उतार दिए हैं।
आडवाणी जी के मुखौटे उतारने के पीछे यह सोच हो सकती है कि अटल जी तो भाजपा के मुखौटे के रूप में विख्यात थे और वे पी एम भी बने,मनमोहन जी ,उनके अनुसार एक मुखौटे की ही तरह काम कर रहे हैं! फिर गुजरात में नरेन्द्र भाई मुखौटे लगवाकर दोबारा सत्ता पा सकते हैं तो यह 'फार्मूला' अपन पर भी फिट हो सकता है!
दर-असल जनता को और देश को आज मुखौटों की ही ज़रूरत है। अपने सही और वास्तविक रूप में न नेता जनता के सामने आ सकते हैं और न जनता ही उन्हें सर-माथे पर बिठा सकती है। इसलिए जब मुखौटों से ही काम चलता हो तो 'ओरिजनल लुक' कौन देखता है? अब राजनीति के साथ-साथ नेता भी एक 'उत्पाद' बन गया है और यह जनता की नियति है की वह 'कस्टमर' बनकर कष्ट से मरती रहे!
अब हमें तो पूरा यकीन हो गया है कि आडवाणी जी 'पी एम ' बनने जा रहे हैं आपको हो या न हो !
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