26 अगस्त 2019

ग़ज़ल

 कुछ जुमले थे कुछ नारे थे

वो ईश्वर के हरकारे थे। 


सबका विकास, सब साथ रहें 

लगते केवल जयकारे थे। 


बज रहा रेडियो हर हफ्ते 

मन-बात नहीं अंगारे थे। 


बुलेट ट्रेन सरपट दौड़ी

कुचले किसान बेचारे थे।


रोज़ी-रोटी नहीं चाहिए 

ये तो धरम के मारे थे।


बदले वक्त में वो भी बदले 

जो आँखों के तारे थे। 


©संतोष त्रिवेदी