26 अगस्त 2011

डॉ.अमर कुमार :एक इंसानी-ब्लॉगर !

जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो,
कि आस-पास की लहरों को भी पता न  लगे !'

मुन्नी बेगम की गायी हुई एक ग़ज़ल का यह शेर पिछले दो दिनों से बरबस याद आ रहा  है! डॉ.अमर  कुमार  के  जाने का तरीका कुछ ऐसा ही रहा.उनके बहुत नजदीकियों  को भी कुछ  अहसास जब तक होता ,तब तक वे अपनी महायात्रा पर निकल चुके थे !उनके दैहिक अवसान के बाद पूरे ब्लॉग-जगत में स्तब्धता छा गयी और बड़े पैमाने पर हर किसी ने उन्हें अपने ढंग से याद किया.

मेरा उनका संपर्क बहुत कम रहा.न मैं उनको ज्यादा पढ़ पाया,न सुन पाया और न जान पाया! जब पहली और आखिरी बार बारह अगस्त को उनसे मिला था तो सोच रखा था कि डॉ. साहब से बहुत बातें करूँगा,टीपों में उनकी मारक-शैली का राज जानूँगा,पर उनकी दशा ऐसी न थी कि उन्हें सुना जाय,इसलिए मैंने ही अपनी तरफ से उनसे संवाद ज़ारी रखा था.वे बीमार ज़रूर थे,पर निश्चय ही मन के सारे भाव उनकी आँखों में देखे जा सकते थे.वे जीवन के प्रति निराश भी नहीं दिखे!

उनको नजदीक से जानने वाले  और उनका दिया 'संताप' झेलने वाले डॉ. अरविन्द मिश्र  , अनूप शुक्ल ,फुरसतिया और अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी से हुई बातों से ही उनके बारे में थोडा-बहुत जान पाया .वे शायद पहले ऐसे शख्स थे जो किसी को अपनी तंज-टीप से उकसाते थे और घोषित-अघोषित आलोचना भी सहते थे ! उनमें अपने दोस्तों और लिक्खाड़ लोगों को पहचानने की अद्भुत क्षमता थी.अनूप जी कहते हैं कि जब कोई उनकी टीप से 'आहत' होकर कोप-भवन में बैठा होता हो तब डॉ. साहब ऐसी गुदगुदी मचाते कि वह बरबस ही सहज हो जाता.शुक्ल जी के शब्दों में,'संवादहीनता को ख़त्म करने की उनकी 'साज़िश' सफल हो जाती थी'!ऐसे कई लोग अब उनके जाने के बाद निश्चित ही फडफडा रहे होंगे !मुझे तकलीफ है कि उस 'संताप' का दंश मुझे नहीं मिल पाया !

 उनको जो भी थोडा बहुत मैं समझ पाया उससे  एक बात ज़रूर नुमाया होती है कि इस 'अंतरजाल' को उन्होंने अपने लेखन से तो सजाया ही,पूरी तरह जिया भी.केवल लिखते रहना ही उनका उद्देश्य नहीं था.लिखने के साथ उन्होंने जीने को 'मिक्स' कर रखा था.उन्होंने कोई हास्य नहीं लिखा,वरन  वे संजीदा बात को हास्य की चाशनी में लपेट देते थे .अब यह स्वाद लेने वाले के ऊपर निर्भर था कि वह चाशनी का ले या असली माल का !

डॉ. साहब को मैंने 'इंसानी-ब्लॉगर' कहा है क्योंकि वे दिल से लिखने और मिलने वाले व्यक्ति थे! अवधी और बैसवारी में उनका लेखन अनूठा और आकर्षक था.वे अपनी दो-या तीन शब्दों की टीप से बहुत कुछ कह देते थे. मेरी एक पोस्ट 'सरकार का प्रेसनोट'  में उन्होंने अपने अंदाज़ में 'जउन  हुकुम  हाकिम' टीप कर उसका सारा 'पानी' उतार दिया था.कई लोगों ने उनको समझने में देर लगाई ,पर डॉ.साहब अपना 'शिकार' जल्द पहचान लेते थे. एक देशी कहावत के अनुसार वे चलत बैल क अरई मारै वाले किस्म के मनई रहे !उनकी सबसे बड़ी सम्पदा उनकी 'कोचन-शैली' और दोस्ताना मिजाज़ था.


इस 'अंतर्जाल' में लिखने-लिखाने वाले लोग तो बहुतायत में हैं,पर मिलने -मिलाने वालों की गिनती बहुत कम है.डॉ. साहब के जाने पर यह संकट और गहरा गया है.उनको याद करने का सबसे बढ़िया तरीका यही है कि उनकी बनाई लकीर पर चला जाये !


डॉ. साहब ,आप तो चले गए पर हम मरीजों को नीम-हकीमों के लिए छोड़ गए !

फिलहाल के लिए,

तुम इतना छोड़ गए हो अपने पीछे,
भूख मिटाते  चले चलेंगे  सदियों-सदियों !




23 अगस्त 2011

डॉ.अमर कुमार ,जो अब अमर हो गए !




जिन्होंने हमसे वादा किया था कि आठ-दस दिन में अपनी बीमारी से पार पाकर फिर से ब्लॉग-जगत में हम सबसे मुखातिब होंगे,सक्रिय होंगे पर वह अपना वादा पूरा नहीं कर पाए.अपने को टाइम-खोटीकार कहने वाले,हर दिल अज़ीज़,हिंदी के मशहूर तंजकार और तकनीकी रूप से विशुद्ध ब्लॉगर डॉ.अमर कुमार हमारे बीच में अब भौतिक रूप से नहीं रहे.वे अपने लेखों से तो हमें प्रभावित करते ही थे,उनकी टीपों का हर ब्लॉगर को बेकरारी से इन्तज़ार रहता था!

अभी थोड़ी देर पहले भाई अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने फोन करके इस दुखद घटना की जानकारी दी .मैं बिलकुल सन्न और हतप्रभ रह गया.अभी पिछली बारह अगस्त को पहली बार उनसे भेंट हुई थी.उनसे मिलने के बाद हमने उनसे यह कहा था कि मैं उन पर एक पोस्ट लिखूँगा,वापस आने के बाद कुछ लिखा भी पर न जाने कैसे-कैसे व्यवधान आते गए और आज देखो उस कहानी का उपसंहार लिख रहा हूँ जिसकी प्रस्तावना, कथानक कुछ भी न लिख पाया था!

बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए,जबसे मैं डॉ. साहब से परिचित हुआ ! कोई छः महीने हुए होंगे जब वो अचानक मेरे ब्लॉग पर आये और उनकी टीप पढकर मैं उनके ब्लॉग पर पहुँचा ! उनका लेखन तो अच्छा लगा ही ,रायबरेली के हैं, यह जानकर मेरी जिज्ञासा उनके बारे में और बढ़ी और मैंने उनको अपना नंबर देकर संपर्क करने की गुजारिश की .दो-तीन दिन बाद ही उनका फोन आया,उन्होंने बड़ी आत्मीयता से बात की और हमने भी वादा किया कि जब अगली बार रायबरेली आयेंगे तो उनसे ज़रूर मिलेंगे !

मैं इसी जुलाई को उनसे बात करके भी मुलाकात न कर सका,साथ में प्रवीण त्रिवेदी को भी जाना था पर उसी दिन फतेहपुर में कालका मेल दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से हम लोग नहीं जा सके.डॉ. साहब कह रहे थे कि उन्हें दो पंडितों को भोजन कराने का पुण्य मिलेगा पर शायद यह पुण्यलाभ हम दोनों को नसीब नहीं था.मैं उसी दिन दिल्ली लौट आया !

जब इस रक्षाबंधन में गाँव गया तो रायबरेली जाना सुनिश्चित कर रखा था.साथ में डॉ.अरविन्द मिश्र की भी हिदायत थी कि वहाँ जा रहे हो तो डॉ.अमर कुमार से मिलते आना,काफी दिनों से उनकी खोज-खबर नहीं मिली है!अमरेन्द्र भाई,प्रवीण जी और अनूप शुक्ल (फुरसतिया) की भी यही इच्छा थी.रायबरेली शहर मेरा जनपद है जो मेरे गाँव से पचास किमी दूर है.इसलिए वहाँ ज्यादा जाना नहीं हो पाता!.


बहरहाल,मैं बारह अगस्त की शाम को फोन पर बात करके डॉ.साहब के घर पहुँचा और थोड़ी देर में मैं उनके सामने खड़ा था.मन में जो जोश-खरोश था वह गायब था.डॉ.साहब बिस्तर पर बिलकुल सीधे लेटे हुए थे,मुझे देखते ही उनके मुँह से निकला,हम आप से मिल चुके हैं ,पर मैंने तुरत कहा कि 'नहीं ,यह हमारी पहली मुलाकात है !" काश ! यह आखिरी न होती !

हम वहाँ करीब पैंतालीस मिनट रहे.डॉ, साहब की शारीरिक दशा ऐसी नहीं थी कि उनसे ज्यादा बात की जाए,पर उन्होंने इतने कम समय में भी हमें अपने सम्मोहन में ले लिया था.वह बहुत कम बोल पा रहे थे,हमारी ज्यादा सुन रहे थे.मैंने ब्लॉगिंग के बारे में,ब्लॉगर मित्रों के विषय में उनसे बात की और उन्होंने पूरी तन्मयता से सुना.अरविन्द मिश्रजी,अनूप शुक्ल जी,प्रवीण त्रिवेदी,ज्ञानदत्तजी के बारे में उन्होंने बड़ी रूचि और आदर प्रकट किया.समीर लाल जी (उड़नतश्तरी) के भी एक बार वहाँ आने का जिक्र किया था!

जिस बिस्तर पर वे लेटे थे ,सामने कंप्यूटर रखा और हिंदी के पुराने गाने बज रहे थे. उन्होंने बताया कि वायस ऑफ अमेरिका से लगातार गाने आते रहते हैं,वही स्टेशन लगा लेते हैं!इसी बीच अपने मोबाइल पर आया हुआ एक चुटकुला भी उन्होंने हमें पढवाया !

उनको सबसे ज़्यादा तकलीफ़ बोलने को लेकर थी .उठ कर बैठना बहुत कठिन था.जब बातों-बातों में मैंने यह कहा कि मैं उन पर एक पोस्ट लिखना चाहता हूँ और इसके लिए एक तस्वीर चाहिए.अस्वस्थता के बावजूद उन्होंने मेरा मन रखने के लिए अपना चित्र लेने दिया!उन्होंने दो-तीन बार अपनी उस हालत पर विवशता प्रकट की और कहा कि वह इस दशा में उनसे मिल रहे हैं.मैंने अपनी ओर से भरपूर ढाढस दिया कि वे बिलकुल चिंतित न हों ,जल्दी ही हमारे बीच होंगे!वे बीमार ज़रूर थे पर जीवन के प्रति निराश नहीं !


चलने का समय आया तो मैं कह नहीं पा रहा था,वे भरी और गहरी निगाह से मुझे देख रहे थे.मैंने हाथ बढ़ाया तो उन्होंने मेरे हाथ को अपने माथे से लगा लिया! सच में,यह मेरी जिंदगी का सबसे भावुक क्षण था !मैंने भी उनके हाथ को अपने माथे पर लगाकर कहा कि बस,आप हमें आशीर्वाद दें,हमारा मार्गदर्शन करें,हम आपको जल्द सक्रिय रूप में देखना चाहते हैं.उन्होंने चलते-चलते मुझसे आठ-दस दिन का समय माँगा था,जो अब कभी नहीं आएगा.उनके कमरे से निकलकर मुझमें पीछे मुड़ने की शक्ति नहीं थी,पर उनकी आवाज़ सुनाई दी,रूबी,(डॉ.साहब की धर्मपत्नी) देखो,इन्हें छोड़ दो

मैं उनसे मिलकर बाहर आने के बाद समझ नहीं पा रहा था कि इस मुलाकात पर खुश होऊँ या डॉ. साहब की हालत पर दुखी!मेरे मन में जहाँ उनसे मिलने का संतोष था,वहीँ उनकी ऐसी दशा पर शोक !

दिल्ली आने पर एक दिन कुछ लिखने की कोशिश की,आगे नहीं बढ़ पाया.कहाँ से शुरू करूँ,कहाँ खत्म,पर डॉ.साहब ने हमारी दुविधा को शायद भाँप लिया था और उन्होंने इस पोस्ट को पोस्ट(बाद) की सार्थकता दे दी .हमें उनसे बहुत कुछ सीखना,जानना था,पर वह हम सबके साथ खोट कर गए.वास्तव में वे पक्के दगाबाज़ निकले.अपने दोस्तों को इस अंतरजाल’,कंप्यूटर और की-बोर्ड की दुनिया में खटर-पटर करने को अकेला छोड़ गए !

उनसे मिलकर आने के तुरत बाद उनकी दशा पर दिमाग में ये लाइनें अचानक आईं थीं :

जिंदगी मुझसे मिली कुछ इस तरह,
वह बोलती,कहती रही,सुनता रहा मैं

उस महान पुण्यात्मा को शत-शत नमन !


22 अगस्त 2011

अन्ना का सन्देश !

बीती रात रामलीला मैदान से लौटा हूँ .अन्ना के समर्थन में ऐसा जनसैलाब,लोगों की आकुलता और जोश व गुस्से से लबरेज़ चेहरे मैंने पहले कहीं भी और कभी भी नहीं देखे ! मैदान  से तीन-चार किलोमीटर पहले से ही गाड़ियाँ रेंग रही थीं.हर आदमी की राह एक ही थी,लोग मोटरकार की खिडकियों से लटके हुए,मोटर साइकिलों पर 'धूम' मचाते हुए  'अन्ना-अन्ना' चीख रहे थे,ऐसा लगता था जैसे हर रास्ता रामलीला मैदान की तरफ़ ही जा रहा हो!

सभी लोग बिल्ले,झंडे,टोपियाँ ,बैनर ,टी-शर्ट कुछ न कुछ लिए थे या खरीद रहे थे.अन्ना के नाम पर ऐसे सामानों को लोग बहुत ऊँची कीमत पर बेच रहे थे,फिर भी लोग ले रहे थे.इस जन-समुद्र को कोई प्रायोजित कहे,एक ख़ास वर्ग या 'क्लास' का नाम दे,खाए,पिए,अघाए हुए लोगों का समूह कहे ,गैर-दलित ,सवर्ण या धार्मिक कहे यह उसकी मर्ज़ी है,पर वहाँ जानेवाला केवल अन्नामय है,उसकी सिर्फ एक पहचान है!हाँ, कुछ लोग ज़रूर इसी बहाने निजी हित साध रहे हैं,लेकिन ऐसे लोग भीड़ का हिस्सा तो हो सकते हैं,अपने मक़सद में कामयाब नहीं !

मैदान के बाहर और भीतर लोग नाच-गा रहे थे,पूरा मैदान ठसाठस था!पुलिसवालों की संख्या बहुत थी ,पर वे इस भीड़ के आगे केवल दर्शक भर थे.केजरीवाल जी एक सन्देश दे रहे थे कि मीडिया में  कुछ ख़बरें ऐसी आ रही हैं कि  सरकार से हम समझौते के करीब हैं पर हम यह बता दें कि उसने हमारी छोटी से छोटी माँग भी नहीं मानी  है.इस पर भीड़ ने ज़ोरदार 'हूट' किया और सरकार के लिए 'शेम-शेम' के नारे लगाए !अन्दर का माहौल बहुत उत्साहित और ऊर्जित था.इस जन-समर्थन को अगर 'क्रान्ति' नहीं कहेंगे तो किस तरह की क्रान्ति की प्रतीक्षा की जा रही है?

सरकार चलाने वाले शायद इस समय अवकाश पर चले गए हैं.अप्रैल से ही अन्ना को लेकर गलत कदम उठाये गए और इस बार भी वही किया जा रहा है! सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब जानबूझकर किया जा रहा है.बाबा रामदेव को ज़रुरत से ज़्यादा पहले भाव दिया,फिर अत्याचार किया.अन्ना की बात अप्रैल में बड़े दबाव के आगे मानी और अब फिर अपने ऊपर  उससे ज़्यादा दबाव का इंतज़ार कर रही है! सरकार मनरेगा और आरटीआई का श्रेय लेकर 'जनलोकपाल' को नकार कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है.अभी भी उसके प्रबंधक गहरी नींद में हैं,पता नहीं जब उनके 'दीदे' खुलेंगे,तब तक कुछ बचेगा भी या नहीं !शायद ऐसे ही मौक़े  के लिए कहा गया है,'सब कुछ लुटाके होश में आये तो क्या किया?'

फिलहाल यह मुद्दा अब जनलोकपाल से कहीं आगे जन-अवहेलना,सत्तामद व घोर संवेदनहीनता का बन चुका है ! इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी कटघरे में हैं!

हम तो यही धुन गा रहे हैं:

'अन्ना ने भेजा सन्देश ! जाग गया है सारा देश !'





15 अगस्त 2011

शर्तों पर आज़ादी !

हम आज़ाद हैं
बेशर्मी से भ्रष्टाचार करने को,
कानून को अपनी उँगलियों में नचाने को,
दौलत का अम्बार बेशुमार लगाने को,
स्याह रास्तों पर सफ़ेद कपड़ों में चलने को,
चौंसठ सालों से
बिना शर्त ,बिना भय के यही करते आ रहे हैं हम!
नहीं आज़ाद हैं हम
शान्तिपूर्ण  अनशन के लिए,
भ्रष्टाचार से पंगा लेने के लिए,
चोर को चोर कहने के लिए,
अपनी पहचान बनाने के लिए,
अपनी आवाज़ उठाने के लिए,
ये सब होगा ,शर्तों के अधीन,
बीस या तीस जितनी चाहिए शर्तें चस्पा की जाएँगी,
हर हाल में हम हावी रहेंगे,
इसी की आज़ादी हमने दी है देश को,
राशन लगाकर देंगे हम आज़ादी,
पर,इस देश में होगा वही,जो हम चाहेंगे !
'हम आज़ाद हैं' इसमें 'हम' केवल हमारा है,
किसी और ने माना है तो यह उसकी 'आज़ादी' है !
असली आज़ादी तो हमने पा ली है,
अन्ना ,मुट्ठी देखो,
हमारी भरी,तुम्हारी खाली है !

9 अगस्त 2011

उनकी गिरती साख़ और हम !

इधर एक  नई मुसीबत आन पड़ी है ! सारी दुनिया के पालनहार और रखवाले सैम अंकल की साख़ को कुछ लोग गिरा हुआ बता रहे हैं,जबकि ऐसा नहीं है  और उधर से बक़ायदा इराक-युद्ध की तरह ऐलान भी ज़ारी कर दिया गया है कि कहीं कोई दिक्कत नहीं है.अब वे तो ठहरे हमारे प्रभु-देश,मगर भक्तों का क्या करें,बेचारे थोड़े में ही ढीले हो जाते हैं. भाई ,साख उनकी गिर रही है और दुबले हम हुए जा रहे हैं.

साख गिरने का असर कुछ ऐसा हुआ कि तीन दिन में ही दुनिया के बाज़ारों में कोहराम मच गया.जब  भगवान  की साख गिरेगी तो आंच उनके चेलों तक तो आएगी ही ! जब नफ़ा ऊपर से नीचे तक आता है तो नुकसान उलटी चाल क्यों चलेगा ? कई विशेषज्ञों ने हिसाब लगाकर बताया है कि इत्ते करोड़ का हो चुका है और बढ़ सकता है.

जिस एजेंसी ने साख़ गिराई है उसका नाम 'स्टैंडर्ड एंड पुअर'  है ,तो भाई वह कितनी बड़ी तोप है ? जिसकी साख़ को ईराक,अफगानिस्तान और पाकिस्तान मिलकर नहीं गिरा पाए तो मुई यह कागजी जोड़-घटा क्या ख़ाक गिरा पाएगी ?सामाजिक साख़ से आर्थिक साख़ बड़ी होती है क्या? जब वे उसे झेल गए तो ये तो दोयम दर्जे की है ! सुनते हैं कि 'मूडी' भी इसी राह पर चलने वाली है तो भाई,वह तो है ही 'मूडी' उसका क्या,जैसा मूड होगा वैसा कह देगी ! इन बातों से महाशक्ति का कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है.

यही लिए हमारी सरकार ने  कहा है कि हमें चिंता करने की ज़रुरत नय है.हम बिलकुल ज़मीनी तौर पर मज़बूत हैं,हम ज़मीन में ही पड़े हैं,इसलिए हम न कभी ऊपर थे और न गिरेंगे ! गिरने का ख़तरा तो उन्हीं को होता है जो आगे-आगे भागते हैं और ऊपर को उछलते हैं ! फिर वह कोई बरगद की शाख थोड़े है कि उसके गिरने से हम सब दब जायेंगे ! हम तो इसीलिए वह चीज़ रखते ही नहीं जिसके न होने का भय बना रहे !

फिलहाल ,हमें तो मुँह ढक के सो जाना चाहिए !



गिरती उनकी साख ,पर होते हम बेचैन,
हम बौराए-से फिरें,चौतरफ़ा दिन-रैन!

चौतरफ़ा दिन-रैन ,मुसीबत में अमरीका,
छींक अगर आ जाए तो हिस्सा हिले जमीं का!

साख बचाने उसकी ,अब हम सब दौड़ेंगे,
इस कोशिश में भी ,पाक से हम  पिछ्ड़ेंगे!

कह चंचल कविराय ,क्यों  करें  इतनी विनती,
साख हमारी नहीं इसलिए नहीं है गिरती !




4 अगस्त 2011

जनलोकपाल,मीडिया और सरकार

'जनलोकपाल' के लिए चल रही जद्दोजहद अब सरकार के रहमोकरम पर निर्भर हो गयी है.जिस संस्था या सिस्टम को सुधारने के लिए यह क़वायद की जा रही है,वो लोग भला क्यों चाहेंगे कि उनके ऊपर कोई तलवार लटके !सरकार अपनी कुटिल चालों से जिस तरह पिछले कई सालों से इसको टाल रही है,तो उससे तो यह उम्मीद पहले भी नहीं थी कि वह अपने गले में इस 'हार' को पहनेगी !सबसे मज़े की बात ये है कि इस मुद्दे पर क्या सत्ता-पक्ष क्या विपक्ष सभी के सुर एक हैं !आख़िर 'जन लोकपाल' उनके मंसूबों के मुताबिक नहीं है !

इस बीच यह लगता है कि सरकार के प्रबंधकों ने  हमारी मीडिया के बड़े तबके को भी 'भरोसे' में लेकर  अपने 'तम्बू' में खैंच लिया है !पिछले कुछ दिनों से कई समाचार-पत्रों में इस तरह के आलेख आ रहे हैं कि अन्ना का यह प्रयास 'लोकतंत्र' के लिए भारी ख़तरा है(उससे भी ज़्यादा  जो पिछले साठ सालों से जनता भुगत रही है )! लोग तरह-तरह के तर्क देकर यह बता रहे हैं कि चार-या पाँच लोग पूरी संसद,एक अरब से अधिक आबादी पर कैसे भारी हो सकते हैं?संसद ही जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि है और वहाँ बैठे लोग जनता के 'निर्मल' और चुने हुए फ़रिश्ते हैं !कानून किस तरह का बनना है और कैसे बनना है यह वही लोग बताएँगे जो इसके फंदे में ज़्यादा आते हैं.(अर्थात ,क़ातिल ही अपना मुंसिफ़ होगा ) इस बिल से प्रधानमंत्री,न्यायाधीश,सांसद बाहर रहेंगे क्योंकि ये सभी असंदिग्ध लोग हैं और इन पर सवाल उठाने से लोकतंत्र को गहरा धक्का लगेगा !

अन्ना हजारे, उनके साथियों व देश की जनता को इस बात की आशंका नहीं विश्वास था कि सरकार की तरफ़ से कुछ नहीं होने वाला,पर अब लगता है सरकार पूरी तैयारी से इस अभियान में जुटी है कि कैसे 'जनलोकपाल-आन्दोलन'  की हवा निकाली जाये !इसलिए आए दिन इलेक्ट्रोनिक  मीडिया पर इस तरह की चर्चाएँ हो रही हैं कि अन्ना का आन्दोलन 'ब्लैकमेल' करने जैसा है.हो सकता है कि उनके आमरण-अनशन करने का तरीका ठीक न हो पर क्या कोई और रास्ता बताएगा ? इस सरकार ने अनशन को नाकाम करने के लिए धारा-१४४ लगा दी है,हो सकता है कि वह अन्ना और उनके साथियों पर 'रासुका' भी लगा दे ,इससे तो हम यही उम्मीद करते हैं ,पर जिस तरह पहले मीडिया इसके समर्थन में आया था ,अब किन वजहों से वह हट रहा है?

अब तो इस तंत्र के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि न्यायपालिका की सक्रियता भी उसे खटक रही है,इस पर भी लगाम लगाने की तैयारी  होने जा रही है.पहले आरटीआई के दायरे से सीबीआई को बाहर किया गया,अब लोकपाल और कल सुप्रीम कोर्ट को भी घेरने को हमारे रहनुमा प्रतिबद्ध हैं .

हो सकता है कि अन्ना का अनशन अभी असफल कर दिया जाये,हो सकता है कि जन लोकपाल अभी दूर की  कौड़ी लगती हो ,हो सकता है कि अगले गणतंत्र दिवस पर कुछ पत्रकारों,लेखकों को पद्म-पुरस्कारों से नवाज़ा जाये पर यह भी तो हो सकता है कि समय आने पर जनता बता दे कि उसे इतना मूर्ख न समझा जाए !