अम्मा,तुम अब नहीं रही।
कुछ कह ली,कुछ नहीं कही।
हम होते बीमार,बैठती सिरहाने,
हाथ फिराती,बतियाती,अब करौ बतकही।
बैठ जिमाती चौके में हमको जी भरके,
परई घी की भर लाती,संग दूध-दही।
चिज्जी की जब ज़िद करते दीवार पकड़,
लइया,पट्टी कुछौ दिलाती तुम तबही।
जब तुम थीं बीमार,नहीं थे पास तुम्हारे,
टुकुर-टुकुर देख्यो आँखिन बस धार बही।
घर सूना है,दर सूना, डेहरी ख़ाली,
बिछोह-21-12-2017