25 दिसंबर 2017

अम्मा !

अम्मा,तुम अब नहीं रही।
कुछ कह ली,कुछ नहीं कही।

हम होते बीमार,बैठती सिरहाने,
हाथ फिराती,बतियाती,अब करौ बतकही।

बैठ जिमाती चौके में हमको जी भरके,
परई घी की भर लाती,संग दूध-दही।

चिज्जी की जब ज़िद करते दीवार पकड़,
लइया,पट्टी कुछौ दिलाती तुम तबही।

जब तुम थीं बीमार,नहीं थे पास तुम्हारे,
टुकुर-टुकुर देख्यो आँखिन बस धार बही।

घर सूना है,दर सूनाडेहरी ख़ाली,
अम्मा ! दुःख मा ,अब को हाथ गही ?



बिछोह-21-12-2017



30 अगस्त 2017

तनि ईसुर ते तरे रहौ !

मन की बातैं तुम केहे रहौ,
लोटिया,थरिया सब बिने रहौ।
पबलिक झूमि रही तुम पर
वहिका अफ़ीम तुम देहे रहौ।

देस भरे मा आगि लागि है,
लेकिन भागि तुम्हारि जागि है।
गाइ का ग्वाबरु बना मिसाइल
देखतै दुस्मन फ़ौज भागि है।

बाबा,गोरू अउ बैपारी
मौज उड़ावति हैं सरकारी,
गुंडा डंडा लइ दउरावैं
थर थर काँपैं खद्दरधारी।

पबलिक तुम्हारि, तुम पबलिक के
हरदम वहिका तुम छरे रहौ।
मरैं किसान,जवान मरैं
बातै खाली तुम बरे रहौ।

कोरट ऊपर शाह बइठि गे
क़ानूनौ का चरे रहौ।
गाँधी,नेहरू पीछे होइगे
तनि ईसुर ते तरे रहौ।


(लालकुआँ से कानपुर के रास्ते बस में )
२७ अगस्त २०१७