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14 जनवरी 2013

बदलाव !


लोगों ने कहा

कपडे बदल लो

मैंने रंगरेज बदल लिया

लोगों ने कहा

चेहरे को सजा लो

मैंने आइना बदल लिया

लोगों ने कहा

धारा के साथ बहो

मैं पत्थर बन गया

लोगों ने कहा

तुम चुप रहो

मैं अगुआ बन गया

लोगों ने कहा

तुम गलत हो

मैं और मज़बूत हो गया

लोगों ने कहा

तुम कापुरुष हो

मैंने सबक सिखा दिया

लोगों ने कहा

वे नीति-निर्धारक हैं

खुद का मखौल बना लिया

14 टिप्‍पणियां:

  1. मखौल बनाना खोल ढकने से बेहतर है।

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  2. अब काव्य मंच संभाल ही लो -कामभर की कविताई तो आ ही गयी है!

    जवाब देंहटाएं
  3. अंत आते-आते समझ में नहीं आई। मतलब अच्छी कविता होगी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ...आपको मेरी रचना कहाँ समझ आएगी :-)

      हटाएं
    2. लगता है देवेन्द्र जी ने आपकी कविता ना समझने की सुपारी ले रखी है वर्ना इतने भी नासमझ नहीं हैं वे :)

      हटाएं
    3. .
      .
      .
      @लोगों ने कहा
      वे नीति-निर्धारक हैं
      खुद का मखौल बना लिया।

      सही !


      ...

      हटाएं
  4. अपना दर्शन, अपनी राह,
    क्यों बाधित हो आज प्रवाह।

    जवाब देंहटाएं
  5. सही है ....
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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  7. बहुत सुंदर अच्छा प्रयास ,,,संतोष जी,आपने लिख दिया समझ में न आये ये पाठको की कमी है,,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  8. ✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
    ♥सादर वंदे मातरम् !♥
    ♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


    लोगों ने कहा
    तुम गलत हो
    मैं और मज़बूत हो गया

    ...लोगों का काम है कहना

    संतोष त्रिवेदी जी
    कविता प्रभावित तो करती है...
    :)

    अच्छे काव्य-प्रयास के लिए बधाई !
    लिखते रहें … और श्रेष्ठ लिखते रहें …

    हार्दिक मंगलकामनाएं …
    लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !

    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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  9. इस बदलाव की दिशा भी कमाल है ...
    भावपूर्ण प्रभावी रचना ...

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