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13 जनवरी 2013

दर्द और बाज़ार !

दर्द अब निकलता नहीं

महसूसता भी नहीं,


उपजाया जाता है चेहरे पर

खेत में फसल की तरह

और काट लिया जाता है पकते ही .

नकली दर्द खबर बनता है

ऊँचे दाम पर बाज़ार में बिकता है,


उस पर और रंग-रोगन कर

परोस दिया जाता है

सभ्य समाज में चर्चा के लिए .

दर्द अब पीड़ा नहीं बनता

न ही मोहताज़ होता किसी हाथ का

अपने काँधे पर रखे होने का,

साहित्य का हिस्सा बनकर वह,

सम्मान-समारोहों में मालाएं पहनता है

इस तरह दुःख और दर्द को हम नहीं

बाज़ार भोगता है !

 

 

30 टिप्‍पणियां:

  1. पीड़ा देकर जाती पीड़ा,
    नहीं और कोई पथ संभावित,
    मन का बोझ हटाने बैठा,
    दुखमग्ना सी लहर प्रवाहित।

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  2. ...महसूस होने से कहीं अधिक प्रभावी हमें लगता है यह शब्द ।कविता में यह चलन में है ।

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  3. उपजाया जाता है चेहरे पर फसल की तरह ..... सटीक .... सुंदर रचना ।

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  4. बाजारवाद लितना हावी हो गया है ... दर्द भी बिकने लगा है ...
    गहरी अभिव्यक्ति है संतोष जी ...

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  5. आलोचना मिलना सौभाग्‍य होता है। काजल जी को धन्‍यवाद दें। उन्‍होंने आपकी कविता में रच-बस कर ही सुझाव दिया है। और प्रवीण पाण्‍डेय जी ने तो (टिप्‍पणियों)को अपने एक महत्‍वपूर्ण आलेख में साहित्‍य का दर्जा तक दिया है।

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    उत्तर
    1. आपकी कविता में यथार्थ की सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति है।

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    2. ...विकेश जी,हमने काजल जी की आलोचना को नकारात्मक रूप से नहीं लिया है,पर अपनी समझ तो बता ही सकते हैं.

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  6. बहुत बढ़िया आदरणीय मित्र ||
    शुभकामनायें-

    जारज-जार बजार सह, सहवासी बेजार |
    दर्द दूसरे के उदर, तड़पे खुद बेकार |
    तड़पे खुद बेकार, लगा के भद्र मुखौटा |
    मक्खन लिया निकाल, दूध पी गया बिलौटा |
    वालमार्ट व्यवसाय, हुआ सम्पूरण कारज |
    जारकर्म संपन्न, तड़पती दर दर जारज ||

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  7. उपजाया जाता है चेहरे पर

    खेत में फसल की तरह

    और काट लिया जाता है पकते ही ......waahh !! bahut khoob !!

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  8. उपजाया जाता है चेहरे पर
    खेत में फसल की तरह
    और काट लिया जाता है पकते ही .
    नकली दर्द खबर बनता है
    ऊँचे दाम पर बाज़ार में बिकता है,,,,सटीक अभिव्यक्ति,,,बधाई संतोष जी,,

    recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

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  9. बाज़ारवाद का नंगा सच!

    --
    थर्टीन रेज़ोल्युशंस

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  10. दर्द का व्यापार ! एक नया पहलु उजागर किया है।

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  11. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।। मंगल मंगल मकरसंक्रांति ।।

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  12. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति....
    वाकई महसूसता शब्द इंटेंस लगता है...शब्दकोष से परे भी कुछ लिखना चाहिए कभी कभी.
    जैसे हमारा पसंदीदा शब्द है निष्फिक्र :-)

    सादर
    अनु

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  13. निश्चित रूप से बाज़ार ही भोगता है.....और यह भी समाज के लिए एक दर्द है

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    मकर संक्रान्ति के अवसर पर
    उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!

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  15. दर्द बिकता बाज़ार मे भैया
    जैसे नींबू आचार में भैया

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  16. दिनांक 03/02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ........हलचल का रविवारीय विशेषांक .....रचनाकार--गिरीश पंकज जी

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  17. बहुत खूबसूरती से दर्द की नुमाइश को बखान किया है.

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  18. दर्द के बाजार को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है..
    बेहतरीन रचना...

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