पृष्ठ

16 जनवरी 2013

तुम और हम !

तुमसे जितनी बार मिला हूँ,
नए रूप से यार, हिला हूँ !(१)

भरे सरोवर मुरझाया-सा ,
छोटे नद औ नार खिला हूँ !(२)
 

बीच समंदर डूबा-उतरा ,
लिए नाव-पतवार मिला हूँ !(३)

गम के घूँट न लगते कड़वे,
चोटों को हर बार सिला हूँ !(४)

तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
नहीं हुआ हुशियार,भला हूँ ! (५)
 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार आपका ||

    जवाब देंहटाएं
  2. ...लाज़वाब! बहुत सटीक और अद्भुत पढ़कर बहुत अच्छा लगा !!

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. गम के घूँट न लगते कड़वे,
    चोटों को हर बार सिला हूँ ...

    बहुत खूब ... इस ज़माने में वो ही टिक सका है जिसने अपनी चोटों को आप ही सिला है ...

    तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
    नहीं हुआ हुशियार,भला हूँ ...

    जीवन इसी भोलेपन में बीतता रहे तो आसान हो जाता है ...

    बहुत लाजवाब शेर हैं सभी इस गज़ल के ....

    जवाब देंहटाएं
  5. भरे सरोवर मुरझाया-सा ,
    छोटे नद औ नार खिला हूँ !(२)

    ....बहुत खूब!

    जवाब देंहटाएं
  6. तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
    नहीं हुआ हुशियार,भला हूँ...................बहुत सुन्‍दर।

    जवाब देंहटाएं
  7. तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
    नहीं हुआ हुशियार,भला हूँ
    बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही बढ़ियाँ, प्रवाहमयी पंक्तियाँ ।

    जवाब देंहटाएं
  9. यह ग़ज़ल मुझे दे दे ठाकुर :-)

    जवाब देंहटाएं