ईश्वर से मेरा सम्बन्ध
बहुत गहरा है,
खुला और अनौपचारिक !
मैं नास्तिक नहीं हूँ ,
पर मैं डरकर
या स्वार्थवश
नहीं चाहता उसकी कृपा पाना !
मंदिरों में खूब गया हूँ
पर नहीं मांगी हैं दुआएं ,
किसी और के लिए अनिष्ट ,
अपने लिए सभी साधन !
उसे पूजने में
नहीं ढूँढा है मैंने कोई यंत्र
या कोई उपाय ,
बस
बैठ जाता हूँ उसके पास
बिलकुल एकाकार होकर
अपने अन्तरंग साथी की तरह
दुःख-सुख भी साझा करता हूँ ,
पर
अतिरिक्त लाभ की आकांक्षा किये बिना
मैं उसे अपने पास ,
अपने साथ
हमेशा पाता हूँ .
ईश्वर वह नहीं है
जो हमसे कुछ चाहे,
उसकी पूजा के बदले
हमें भी दे सके कुछ !
वह न स्वार्थी है और न अभिमानी !
ईश्वर न कभी शाप देता है
न कोरे आशीर्वाद .
वह तो हमारे साथ चलता है,
हमें सचेत करता है
पर हम हमेशा
बुरा होने पर उसको ज़िम्मेदार
और अच्छा होने पर अपनी पीठ थपथपाते हैं.
ईश्वर कभी प्रतिशोध नहीं करता ,
और न ही प्रतिक्रिया देता है,
वह समान भाव से
हमें दिखाता है रास्ता
सहता है हमारा क्रोध
बताता है यथार्थ
और
मुहर लगाता है हमारे कर्मों पर !
ऐसे ईश्वर को
मैं चाहता हूँ,
वह रहता है हमारी आत्मा में
नहीं मिलता है किसी शिवालय या देव-स्थान में,
हम सबके पास है
हमारा अपना ईश्वर
और हमारी तरह
वे सब ईश्वर अलग नहीं हैं.
वह एक ही है
उसका कोई धर्म,रंग या देश नहीं है.
ऐसे ईश्वर के लिए
अगर मैं आस्तिक हूँ तो हूँ !
बहुत गहरा है,
खुला और अनौपचारिक !
मैं नास्तिक नहीं हूँ ,
पर मैं डरकर
या स्वार्थवश
नहीं चाहता उसकी कृपा पाना !
मंदिरों में खूब गया हूँ
पर नहीं मांगी हैं दुआएं ,
किसी और के लिए अनिष्ट ,
अपने लिए सभी साधन !
उसे पूजने में
नहीं ढूँढा है मैंने कोई यंत्र
या कोई उपाय ,
बस
बैठ जाता हूँ उसके पास
बिलकुल एकाकार होकर
अपने अन्तरंग साथी की तरह
दुःख-सुख भी साझा करता हूँ ,
पर
अतिरिक्त लाभ की आकांक्षा किये बिना
मैं उसे अपने पास ,
अपने साथ
हमेशा पाता हूँ .
ईश्वर वह नहीं है
जो हमसे कुछ चाहे,
उसकी पूजा के बदले
हमें भी दे सके कुछ !
वह न स्वार्थी है और न अभिमानी !
ईश्वर न कभी शाप देता है
न कोरे आशीर्वाद .
वह तो हमारे साथ चलता है,
हमें सचेत करता है
पर हम हमेशा
बुरा होने पर उसको ज़िम्मेदार
और अच्छा होने पर अपनी पीठ थपथपाते हैं.
ईश्वर कभी प्रतिशोध नहीं करता ,
और न ही प्रतिक्रिया देता है,
वह समान भाव से
हमें दिखाता है रास्ता
सहता है हमारा क्रोध
बताता है यथार्थ
और
मुहर लगाता है हमारे कर्मों पर !
ऐसे ईश्वर को
मैं चाहता हूँ,
वह रहता है हमारी आत्मा में
नहीं मिलता है किसी शिवालय या देव-स्थान में,
हम सबके पास है
हमारा अपना ईश्वर
और हमारी तरह
वे सब ईश्वर अलग नहीं हैं.
वह एक ही है
उसका कोई धर्म,रंग या देश नहीं है.
ऐसे ईश्वर के लिए
अगर मैं आस्तिक हूँ तो हूँ !
आप तो अमरत्व का मार्ग पा लिए गुरु जी !! दुष्यंत की शैली में - मैं जिससे जब चाहे बतियाता हूँ , उस ईश्वर से आपको मिलाता हूँ .
जवाब देंहटाएंआभार आपने समझा हमें !
हटाएंइश्वर से माँगने के बजाये, उसने जो दिया है उसका धन्यवाद करें.. और माँगा भी तो क्या.. सुख जो बाद में उख लाता है, धन- जो चोरी जा सकता है, यश- जो कभी सदा नहीं रहा, सफलता- जिसे पाने के बाद आगे की लालसा बढ़ जाती है!!
जवाब देंहटाएंबस अपनी अंतरात्मा में उसे खोजना ही आस्तिकता है और उसकी पूजा भी!!
उसे अपने में ढूंढोगे तो मिल जायेगा !
हटाएंप्रभु तो अपना याड़ी है
जवाब देंहटाएंडर कर भी कोई इज़्जत होती है क्या ☺
वह अपना है,हम उसके !
हटाएंयही तो है हमारा वाला भी ईश्वर.
जवाब देंहटाएंयही है सबका ईश्वर !
हटाएंईश्वर न कभी शाप देता है
जवाब देंहटाएंन कोरे आशीर्वाद .
वह तो हमारे साथ चलता है,
हमें सचेत करता है
यही सच्ची पूजा है ... अपने अंदर ही कॉज़ कर ईश्वर से बतियाया जा सकता है ॥
कर्म ही पूजा है !
हटाएंसच कहा, भगवान से अपने लिये कुछ अलग मागने को जी नहीं चाहता है...
जवाब देंहटाएंहम उससे अलग नहीं हैं जो !
हटाएंपर मैं उससे मांगना चाहता हूं सारे संसार में सौमनस्य ! महाशिवरात्रि के लिए अशेष शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंएवमस्तु !
हटाएंसुंदर प्रस्तुति......
जवाब देंहटाएंशुकिया जी !
हटाएंमानवता को समर्पित एक बेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंदुःख सुख का सच्चा साथी ईश्वर ही,जहां हम अपने मन की बात को साझा कर सकते है,..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति, सुंदर रचना.....
शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
MY NEW POST ...सम्बोधन...
आभार सहित !
हटाएंइश्वर तत्व से जब एकाकार हो जाता है तो इंसान खुद इश्वर हो जाता है ... तो फिर कोई चाह भी कैसे रह जाती है ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही नासवा जी !
हटाएंअज़ी आप तो अपनी ही थैली के चट्टे बट्टे निकले ! :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार व्यक्त किये हैं ।
डॉक्टर साब....हम चट्टे नहीं बट्टे ही हैं !
हटाएंतत त्वं असि...... तूं वही तो हैं ... :)
जवाब देंहटाएंमहाराज,आपसे विशद-विवेचन की दरकार थी !
हटाएं...आभार
वाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया देवेन्द्र भाई !
हटाएंआभार अतुल भाई !
जवाब देंहटाएंईश्वर एक ही है ...
जवाब देंहटाएंभले ही हम उनके नाम अलग रख ले , शीश झुकाने और बंदगी के तरीके अलग बना लें !
प्रकृति और हमारी अंतरात्मा ईश्वर का ही तो अंश है !
बाहर कहाँ ढूंढें उसे !
'मोको कहाँ ढूँढता बंदे,मैं तो तेरे पास में'-कबीर
हटाएं'नाहीं कौनो क्रिया-कर्म में,नहीं आस-विश्वास में"-ललद्यद
आभार वाणी जी !
बहुत बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंअक्षरशः सहमत हूँ आपके भावों से...
आपकी लेखनी को नमन...
सादर.
विद्या जी ,कृपया इतना न ऊपर चढाएं कि गिरने पर बच भी न सकें !
हटाएंआपका आभार !
बैठ जाता हूँ उसके पास
जवाब देंहटाएंबिलकुल एकाकार होकर
अपने अन्तरंग साथी की तरह...
और यही सच्ची आराधना है...
सुन्दर अभिव्यक्ति....
सादर.
धन्यवाद आपका !
हटाएंसर्वे भवन्तु सुखिना सबसे बड़ी प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही !
हटाएंबहुत सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
हटाएंसच कहा आपने सब का मालिक है नाम अलग २ हो सकते हैं पर ईश्वर तो सबका एक ही है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
मीनाक्षी जी शुक्रिया !
हटाएंजाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ...
जवाब देंहटाएंसही तोड़ और जोड़ लाये हो महाराज !
हटाएंहमको तो ईश्वर से अच्छा कोई दूसरा आविष्कार समझ नहीं आया आज तक !
जवाब देंहटाएंसच्ची में...वह भी इतने करीब !
हटाएंवाह बेहतरीन !!!!
जवाब देंहटाएं... आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
हर कोई एक-दूसरे से सीखता ही है !
हटाएंईश्वर की अभिव्यक्ति संतोष में ही है.
जवाब देंहटाएंसंतोष नहीं तो ईश्वर नहीं,मानो या न मानो.
संतोष है,तो फिर मांग कैसी.
लाजबाब प्रस्तुति,संतोष जी.
बहुत बहुत आभार जी.
आभार राकेश जी !
हटाएंआपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ, कृपया इस संबंध में मेरी रचना "क्या सचमुच ईश्वर है (कुछ सवाल)" जरूर पढ़े।
जवाब देंहटाएंhttp://dineshaastik.jagranjunction.com/author/dineshaastik/
आभार !
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