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19 जुलाई 2011

मेरा गाँव !

याद बहुत आते हैं हमको महुआ, गूलर, आम !
गलियारे,पगडंडी,बरगद,जीवन के थे नाम !!  

गौरैया आ पास बैठती,कौआ लाता नित पैग़ाम !
खुला हुआ दरवाजा घर का , रहता आठों याम!!

रोज सबेरे सूरज उगता,अस्त होय हर शाम !
छाया मिलती नीम की ,नहीं करारा घाम !!

सुबह-शाम पनघट में आतीं, चपला और ललाम!
दूर बैठ हम देखा करते दिल को दिए लगाम !!

कहाँ गाँव के लोग गए,खेत और खलिहान !
काका,अजिया,नानी, छूट गए दालान  !!

चिट्ठी आती एक तो, पढ़ते दस-दस बार !
खानापूरी बन गया शहरी पत्राचार !!

ना जाने किस जनम में ,होगा ऐसा प्यार!
दुःख में होते साथ सब,कई-कई मनुहार !!

11 टिप्‍पणियां:

  1. अब गांव जायेंगे तो भागकर वापस आयेंगे। :)

    बढिया लिखा है। :)

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  2. अब गाँव सिर्फ शब्दों में रह गया है .....! बहुत याद आता है मुझे भी मेरा गाँव ....हर पंक्ति में नया भाव भर दिया है आपने ....आपका आभार

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  3. हाय... हमारा भी कोई गांव होता तो हम भी उसे याद करके थोड़ा भावुक हो लेते!:(

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  4. गाँव की याद तो मुझे भी बहुत आती है ........................अब तो यह सब एक सुन्दर सपना सा बनके रह गया है .भावुक करती हुइ रचना

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  5. गाँव का वह खुलापन और समय की आवारगी।

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  6. अपने गांव की बात ही निराली है...
    बहुत प्यारी रचना...

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  7. बहुत बढ़िया , गाँव की यादें ताज़ा कर दिया आपने !

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  8. बहुत सुंदर भाव, गांव की बात ही निराली होती है,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  9. बहुत भावभीनी प्रस्तुति की है आपने.
    गांव का मोहक अहसास कराती हुई.
    सुन्दर शब्द दिल को छूते हैं.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

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  10. गाँव की मोहकता को खींचा है आपने, यह दोहात्मकता बढ़ियां लगी!

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