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26 अप्रैल 2013

बदलता मौसम !



दिल्ली का मौसम बदला है।
आदम से शैतान भला है।।
 

तुमने अपना तीर चलाया।
अब तक कितनी बार छला है।
 


खुले-आम घूमते शिकारी।
अपनों से हारी अबला है।।
 


ये मौसम भी बदलेगा ।
घटा घिरी है,पवन चला है।।


 
जाने सब कुछ,फ़िर भी नादाँ
कच्ची उमर ,जुर्म पहला है ।।

 
हम कुछ समझ नहीं पाते
नए ज़माने का मसला है ।।

 
तू उसकी बातों पर मत जा
मछरी ताके ,वो बगुला है ।।

 
छोर आसमां का छू लेंगे
उड़ने को अब दिल मचला है ।।

 
धीरे-धीरे तिमिर छटेगा

कल का दिवस सुनहला है ।।

 




18 अप्रैल 2013

गर्मी के दोहे !


गरम हवा अगिया रही,बरस रहे अंगार !
चैत महीना हाल यह,आगे हाहाकार !!(१)

सूरज हमसे दूर हो,चंदा आए पास !
पंछी पानी ढूँढते,नहीं बुझाती प्यास !!(२)

पकी फसल को चूमता,हँसिया लिए किसान !
माथे पर चिंता लदी,बिटिया हुई जवान !!(३)

सोना गिरे बजार में,हरिया मुख-मुस्कान !
गेहूँ सोना ही लगे ,जब  आए खलिहान !!(४)

गोरी पनघट पे खड़ी,पानी बिन हैं कूप !
बालम प्यासे खेत में,संग खड़ी है धूप !!(५)
 

11 अप्रैल 2013

डायचे-वेले पर फुरसतिया-चिंतन !

 

हम फ़िलहाल घनी फुरसत में हैं,तो सोचा कि थोड़ा मौजिया लिया जाए। मौज लेने का सबसे ताज़ा मौका ई ज़र्मनी वाला डायचे-वेले दे रहा है। पता नहीं ऊ वेला है या वो समझता है कि हम ही वेल्ले हैं ? फ़ोकट में ही ऐसा प्रोग्राम बनाया है कि उसकी साईट पे रोज़ हम हिट करते रहें ,इससे और कोई हिट हो न हो,वह ज़रूर हिट हो जायेगा। इसके बरक्स हमारा देसी परिकल्पना था,नाम से ही चिढ़ पैदा करता है। कहाँ अंतर्राष्ट्रीय बिल्ले के साथ डायचे-वेले और कहाँ अपने ही बिरादरी के छुटभैये द्वारा शुरू किया गया परिकल्पना ? नाम सुनते ही ससुरा मन कलपने लगता है।

जो ब्लॉग-जगत डायनासोर की तरह विलुप्त होने की कगार पे था,उसे ज़र्मनी वालों ने संजीवनी देकर पुनर्जीवित कर दिया है। हम ठहरे अल्ट्रा-प्रगतिशील,सो हमारे हाथ में इसका झंडा होना ही चाहिए था। लो जी,हमने वो भी पकड़ लिया है जैसा कि शुरू में ही हमने बताया है कि इस समय हम गज़ब की फुरसत में हैं। अब प्रगतिशील सिद्ध होना है तो उसका इकलौता उपाय नारीवाद है,भले ही इसमें वाद कहीं नहीं हो पर हम वादी तो हो सकते हैं। इसमें ऐसी विषय-वस्तु है जो सबसे ज़्यादा अपील करती है और हमने इसीलिए अपनी तरफ़ से पुरस्कार समेटने के लिए अपील जारी कर दी है। सबसे खुशी की बात है कि वह अपील अख़बारों में भी सुर्खी बन चुकी है,इससे हम काफ़ी लहालोट हैं।

रही बात परिकल्पना-टाइप सम्मेलनों की,सो हमें तो उनके आयोजकों की सूरत से ही परहेज है। वे परले दर्जे के बनिये लगते हैं। सम्मान-समारोह में किसी का सम्मान हो न हो,पर अपना सम्मान करने का मंच पा जाते हैं। हमें इसीलिए पुरस्कारों की अवधारणा ही नहीं पसंद रही है। इसमें लाख खामियां होती हैं। यहाँ तक कि हमारे सवालों की फेहरिस्त भी उनके आगे कम पड़ जाती है। परिकल्पना में हमने प्रक्रियागत मसलों को ख़ूब फुरसत से बिन्दुवार दर्ज़ किया था,पर इस डायचे-वेले में हमें कोई कमी नहीं दिखती है। इसमें जो भी ब्लॉग नामांकित किए गए हैं,उसका तरीका बिलकुल पारदर्शी रहा है।

डायचे-वेले के इस आयोजन में सर्व-समाज की भागीदारी ज़रूरी है। इसमें ब्लॉगर ही होना पर्याप्त नहीं है। यदि आप फेसबुक या ट्विटर या अन्य सोशल मीडिया पर खाता खोले हैं तो इसमें भोट कर सकते हैं। यह काम आप बिला-नागा महीने भर से अधिक समय तक करते रहें क्योंकि आयोजक जानते हैं कि आप वेल्ले हैं। इस तरह गज़ब की लाबीइंग के चांस हैं और भाई-बहन लोग कर भी रहे हैं। इसमें आयोजकों का कोई व्यावसायिक-हित नहीं है,यह हमें पक्का पता है। इस आयोजन में क्वालिटी या किसी तरह के मापदंड पर सोचना फ़िज़ूल है क्योंकि वो अंतर्राष्ट्रीय है ,परिकल्पना की तरह चिरकुट नहीं।

हमें वैसे पुरस्कार वगैरह सब बकवास लगते हैं पर जब मामला प्रगतिशीलता की दौड़ में दिखने और देसी सम्मान-समारोह की प्रेतछाया से उबरने का हो,तो यह सब मुफीद लगता है। इस सबके बीच वो पुराने उसूल फ़िर कभी,फ़िलहाल फुरसतिया-चिंतन चालू है । और हाँ,उधर वोटिंग भी चालू है। आप लोग कहीं मत जाइयेगा। आपको भोट एक बार ही नहीं देनी है,रोज़ दबाते रहिये। इससे मताधिकार और प्रजातान्त्रिक अधिकारों को ज़बरन हथियाने का भी मौका है।  

9 अप्रैल 2013

नारी कोई सामूहिक ब्लॉग भी है ??

परिकल्पना-पुरस्कारों के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समय डायचे-वेले ने श्रेष्ठ ब्लॉगर नामित करने का अभियान चलाया हुआ है.जिन मुद्दों को लेकर परिकल्पना की आलोचना की गई थी,वे इसमें भी मौजूद हैं.
सबसे ज़्यादा आपत्तिजनक बात 'नारी'  ब्लॉग के नामांकन को लेकर है.इसे सामूहिक ब्लॉग की श्रेणी में रखा गया है जबकि शुरूआती दिनों के बाद ही इसमें से कई नारी ब्लॉगर को हटाया गया,बाद में अकेले ही लिखा जाने लगा और यहाँ तक कि पढ़ना भी आमंत्रित और आरक्षित कर दिया गया.क्या किसी ब्लॉग की यह पहचान हो सकती है,जबकि वह सामूहिक भी हो ?
अगर कंटेंट के नाम पर भी देखा जाय तो यहाँ सिफर रहता है. जानकीपुल या मोहल्ला लाइव जैसों के मुकाबले रवीश कुमार ने इसे नामांकित करके निराश किया है !


ब्लॉग की मुख्य अवधारणा ही पारस्परिक मंतव्यों का आदान -प्रदान होता है जबकि 'नारी' ने कई बार इसका उल्लंघन किया है,अपने व्यक्तिगत नियम बनाये हैं,जबकि इसे सामूहिक ब्लॉग बताया जा रहा है .जहाँ पढ़ने के लिए गंभीर सामग्री न हो,दूसरे ब्लोग्स के बारे में हमेशा नकारात्मकता हो,पढ़ने तक में आरक्षण हो,ऐसे में किन आधारों पर उसे वोट दिया जाए ??