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30 जुलाई 2012

नीके दिन भी आइहैं !

भ्रष्टाचारी-बेल अब ,दिन प्रति बढ़ती जाय |
साँस उखड़ती जा रही,आस गई कुम्हिलाय ।।

रहे रहनुमा नाम के,देश बेंच कर खाँय ।
जन्मभूमि की आबरू,देते रोज़ गवाँय ।।

हवा और माटी कहे,मिली तुम्हारे खून।
काहे के हो रहनुमा,झूठे सब कानून ।।

सत्ता-मद में डूबकर ,भूल गए आचार ।
नारायण के भेष में,फ़ैल रहा व्यभिचार ।।

डरता है ईमान अब,उखड़ रहे हैं पाँव ।
भ्रष्टाचार बदल रहा,रोज़ पुराने दाँव ।।

तुलसी मद किसका रहा,सदा एक-सा काल ।
आह करेगी राख सब,साखी दीनदयाल ।।

लहर चली छोटी सही,यही बनेगी ज्वार ।
नीके दिन भी आइहैं,तू मत हिम्मत हार ।।



27 टिप्‍पणियां:

  1. लहर चली छोटी सही,यही बनेगी ज्वार ।
    नीके दिन भी आइहैं,तू मत हिम्मत हार ।।... है इंतज़ार

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  2. एक से एक गजब!!
    अन्तिम दो में आस जगा दिए!!

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  3. बढ़िया दोहे ...
    संतोषप्रद...

    सादर
    अनु

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  4. लहर चली छोटी सही,यही बनेगी ज्वार ।
    नीके दिन भी आइहैं,तू मत हिम्मत हार ।।

    कभी न कभी वो दिन जरूर आयेगे,,,
    बढ़िया दोहे,,,,संतोष जी बधाई,,,

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  5. बहुत सुंदर पर
    हिम्मत ही खुद
    हिम्मत हार रही है !

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  6. उत्तर
    1. @ देवेन्द्र पाण्डेय से आगे

      ...लेकिन गूगल प्लस वाला आप्शन काहे हटा दिये हैं ! अटेंडेंस दर्ज करने में बड़ी दिक्कत होती है :)

      हटाएं
    2. अली साब,हमने कुछ नहीं किया,सब अपने आप हो रहा है !

      हटाएं
  7. दिल का बात शब्दों में उभर आई है...

    जवाब देंहटाएं
  8. डरता है ईमान अब,उखड़ रहे हैं पाँव ।
    भ्रष्टाचार बदल रहा,रोज़ पुराने दाँव ।।

    लहर चली छोटी सही,यही बनेगी ज्वार ।
    नीके दिन भी आइहैं,तू मत हिम्मत हार ।।

    आस पर ही दुनिया टिकी है .... सार्थक दोहे

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  9. आखिरी दो दोहों का क्रम उपर नीचे हो जाय तो अधिक सार्थक हो.

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  10. सार्थकता लिये सटीक लेखन ... आभार

    कल 01/08/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' तुझको चलना होगा ''

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  11. बेहतरीन आशावादी बयान ...
    "एक चादर सांझ ने,सारे नगर पर डाल दी
    ये अंधेरे की सड़क,उस भोर तक जाती तो है"
    शुभकामनायें

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  12. नीके दिन के लिये शुभकामनायें।

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  13. क्या कहने ...बस जज्बा बनाए रखिये .....

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  14. रहे रहनुमा नाम के,देश बेंच कर खाँय
    जन्मभूमि की आबरू,देते रोज़ गवाँय ..

    सार्थक चिंतन ... सभी दोहे कमाल के हैं ...

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  15. एक बेहतरीन रचना जो समाज की दशा-दिशा को बहुत ही सशक्त स्वर हमारे सामने रख रही है।

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  16. लहर चली छोटी सही,यही बनेगी ज्वार ।
    नीके दिन भी आइहैं,तू मत हिम्मत हार ।।

    यथार्थ को दर्शित करती प्रेरक प्रस्तुति.

    आभार.

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