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12 जून 2012

आदमी की औकात !


औरत के दिल को पढ़ना भले मुश्किल हो गया हो, आदमी की औकात को पढ़ना हमेशा से आसान काम रहा  है।यहाँ बात केवल आदमी की औकात की होगी । हम आदमी को देखते-समझते हैं तो उसकी वेशभूषा से पर यही काम औरत के मामले में उसकी सूरत देखकर किया जाता है,जिसमें अक्सर हम मात खा जाते हैं।आदमी की शक्ल या सूरत या तो देखने-समझने लायक होती ही नहीं या हम उसको बिलकुल नज़र-अंदाज़ करते हैं।

थोड़ा पहले तक आदमी की औकात को समझने और जानने का सही माध्यम जूता रहा है |हमारे बुज़ुर्ग भी कहते आये हैं कि कि आदमी की औकात उसके जूते से जानी जाती है।पहले जूता देखकर ही अगले के बारे में यह अनुमान लग जाता था कि वह कितना कुलीन है या उसके जूते में कितना दम है ? भाई लोग अपने जूते की ठसक से समाज को खुले-आम बता देते थे कि अगर उनका जूता चल गया तो भलेमानुसों की सेहत ख़राब हो जाएगी।मगर यह सब बातें काफी-पुरानी हो चली हैं और जूते की कुलीनता की पहचान अब मोबाइल ने ले ली है।

सीधी-सी बात है,अब वही आदमी स्मार्ट  और रुतबेवाला है जिसके पास तगड़ा स्मार्टफोन हो । हम अब जूते पर नज़र नहीं रखते।किसी को देखते ही हमारी निगाह उसके आधुनिक फोन पर जाती है।अगला भी उचक-उचककर अपना फ़ोन दिखाने की फ़िराक में होता है,यदि उसके पास महंगा वाला है ! अगर उसके पास दो-इंची ,बिना टच वाला ,घटिया कैमरा वाला मोबाइल हुआ तो फट से उसकी पहचान एक चिरकुट-टाइप आदमी की हो जाती है। यदि उसके पास चार-इंची फावड़े-सी स्क्रीन वाला,टच और बढ़िया कैमरे का मोबाइल हुआ तो वह तुरत ही एलीट-क्लास का लगने लगता हैं,भले ही उसने दसवीं कक्षा घिसट-घिसटकर पास करी हो !

फोन जितना ज्यादा महंगा दिखता है,आदमी की कीमत और इज्ज़त उतनी ही ज्यादा होती है।आजकल औकात नापने का सबसे आसान तरीका मोबाइल है | इसके लिए कुछ पूछने की नहीं बस दिखने की ज़रूरत है | कुछ अंदाज़ यूँ लगते हैं;यदि किसी के पास ब्लैकबेरी फोन है तो वह किसी कंपनी में एक्जीक्यूटिव हैं और एप्पल का फोन है तो किसी रईसजादे या नेता की औलाद ।किसी और कंपनी के महंगे फोन से सामने वाला यह ज़रूर अंदाज़ लगा लेता है कि यह कोई आम आदमी नहीं ,बहुत पढ़ा-लिखा है।उससे पुलिस वाले तमीज से बात करते हैं और ऑटो-टैक्सी वाले जमकर किराया मांगते हैं । इस बीच कार वालों की रेटिंग लगातार गिर रही थी,जबसे हर ऐरे-गैरे ने ईएमआई पर गाड़ी लेनी शुरू कर दी थी | सो उस स्तर पर क्षति-पूर्ति की जा रही है।पेट्रोल के दाम बढ़ाकर उन कार-धारकों की औकात को भी अपग्रेड किया जा रहा है।अगर पेट्रोल का दाम  पांच सौ रूपये प्रति लिटर हो जाए तो वह दिन दूर नहीं जब गाड़ीवाला भी ठसक से कह सकेगा कि उसके पास पेट्रोल की गाड़ी है !

फ़िलहाल,बाज़ार में आदमी की औकात मोबाइल से हो रही है।इसलिए कम्पनियाँ जानबूझकर चालीस-पचास हज़ार के फोन ला रही हैं,ताकि इनके धारकों की रेटिंग न गिरे! वे चाहती भी नहीं कि इन फोन को चिरकुट-टाइप के लोग खरीदें | इससे कंपनी और कुलीन लोगों की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाने की पूरी आशंका है !इसलिए यदि आप अपनी चिरकुटई से निजात पाना चाहते हैं या समाज में अपनी औकात दिखाना चाहते हैं तो आज ही फोन बदल लें,आपकी पूछ बढ़ जाएगी और समाज में रुतबा भी।

26 टिप्‍पणियां:

  1. आदमीयत के मानक
    आदमी की नीयत
    बन गई है नियति
    इतनी तेज गति
    स्‍पीड थोड़ी से
    नहीं बनती बात।

    औरत हो या
    हो आदमी की जात
    सब पहचाने जाते हैं
    रात और बे-रात।

    आदमी जो होते हैं उल्‍लू
    नहीं बनते हैं कभी लल्‍लू
    वे कबूतर भी नहीं होते हैं
    कौए रह नहीं पाते हैं
    तोते बनना नहीं चाहते हैं

    आदमी की नीयत में
    सारे पक्षी यूं ही
    उड़ते नज़र आते हैं
    औरत की नज़र में
    वही मानक कहलाते हैं

    कौन है तोता
    कौन नहीं है।

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  2. बिलकुल सही, पर उन चाइनीज़ फोनों का क्या जो देखने में तो ३०-४० हजारी लगते है पर होते हैं ३-४ हजारी, क्या वैसे ही इंसान की औकात. :)


    खैर औकात वाले आदमी इन चीज़ों पर नहीं जाते.

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  3. आदमी की औकात पहचानने का एक नया नज़रिया ....

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  4. हमारे पास तो आईफोन है, हम क्या हुये?

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    उत्तर
    1. चलो प्रवीण जी आई फोन कम्‍युनिटी का निर्माण करें।

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    2. आई फोन कम्‍युनिटी...
      हा हा हा अच्‍छी अवधारणा है.
      आगे चल के आई ''फोन कम्‍युनिटी ब्‍लॉग अवार्ड'' भी आयोजि‍त कि‍ए जा सकते हैं ☻☻☻
      और अगर सब ठीक ठाक रहा तो ''फोन कम्‍युनिटी दल'' बनाकर प्रधानमंत्री या राष्‍ट्रपति‍ भी डि‍साइड कि‍ए जा सकते हैं ☻☻☻

      हटाएं
    3. ..........


      जहाँ न पहुंचे रवि.
      वहाँ पहुंचे कवि.

      परनाम

      हटाएं
  5. जूते की भी आपने खूब कही, जब भले आदमी 500-700 का जूता पहनते थे, गीत सेठी 25000 रूपये का जूता पहनता था...
    कुछ समय पहले दुबई से आते हुए, मुझे एक प्रापर्टी-डीलर टाइप भारतीय मि‍ला जो घर फ़ोन करके अच्‍छी ऊंची आवाज़ में बता रहा था कि‍ उसने सबके लि‍ए आई-फ़ोन.4 के चार सैट ख़रीद लि‍ए हैं. मुझे वो समय याद हो आया जब कॉल 15-17 रूपये की हुआ करती थी और लोग रेस्‍टोरेंट बगैहरा में जोर-जोर से बात करके सबको जताते थे कि‍ उनके पास मोबाइल है.
    ब्‍लैकबेरी वाले तो मुझे उस बैचारे बैल से लगते हैं जो खेत से हॉंक कर घर तो ले आया गया हो पर कि‍सान उसका जुआ (जुताई के समय हल के साथ पहनाया जाने वाला लकड़ी का फ़्रेम) अभी भी नहीं उतार रहा हो.
    वैसे भले आदमी अब फ़ोन नहीं दि‍खाते घूमते यह बात दीगर है कि‍ गैस की कारों वाले आज वही दो-ढाई इंच फ़ोन वाले चि‍रकुटि‍ए लगते हैं, 15-17 लाख की कारों वालों को ☻☻☻

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  6. पुराना पैमाना जूता,,,,आज आदमी की औकात नापने का नया पैमाना मोबाइल,,
    वाह,,,,औकात नापने का बढ़िया पैमाना इजाद करने के लिये बहुत२ बधाई,,,,,,संतोष जी,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

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  7. आज आदमी की औकात पैसे की तरह हो गई है .... पैसेवाला आदमी रिश्वत जैसा रिश्तेदार होता है .
    आवत ही हरसे नहीं , नैनन नहीं स्नेह
    तुलसी वहाँ न जाइये जहाँ कंचन बरसे नेह ...... यह सीख धूमिल हो गई . अब तो वहीँ जाइये जहाँ कंचन ही कंचन बरसे , नेह की क्या बिसात ! औकात यानि पैसा ...
    और मोबाइल पैसे का प्रतीक है और लम्बीईईईईई सी गाड़ी

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  8. कभी कभी बड़े बड़े फोन के मालिकों की औकात भी अनचाहे ही झलक आती है.....
    बड़े से बड़ा फोन भी कितना ढांकेगा आखिर????
    :-)

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  9. किस आदमीं की औकात के चर्चे हो रहे हैं भाई :)

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  10. ग़रीब का हाल हर देश-काल में बुरा ही था, स्टेटस सिम्बल भी सदा थे, सदा रहेंगे!

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  11. पहले वस्त्र , जूते आदि उपरी टीमटाम एलिट होने की पहचान देते थे , फिर मोबाइल देने लगे . जब से रिक्शे वाले , काम वाली बाई भी मोबाइल पर बातचीत करते दिखने लगे , मोबाइल कम्पनियों के नाम मायने रखने लगे !
    रश्मिप्रभा जी से पूरी तरह सहमत !

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  12. मानव धन-प्रदर्शन के अपने प्रतीक गढ़ता रहता है, एक प्रतीक सामान्य होकर कुंद हुआ कि दूसरा धारदार प्रतीक!!

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  13. हमारे पडौसी नवीनभाई हर 10-15 दिन से नए चमचमाते जूते पहन निकला करते थे, उनकी औकात पर तो हमें भी ईर्ष्या होती। मैं देखता वह बंदा भगवान के दरबार (मंदिर) में शायद औकात नहीं दिखाता और पुराने फटेहाल जूते पहन जाता था। झूठ क्यों बोलें, मन्दिर से लौटकर आते कभी सामना हुआ नहीं तो क्या कहें…उनकी औकात सलामत रहे…

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  14. सार्थकता लिए हुए सटीक विश्‍लेषण ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  15. पहले पहचान जूते से होती थी .. जो पाँव में रहता था .. अब मोबाइल से जो करीब करीब सिर के पास रहता है ... कहीं अपना जूता अपने सर तो नहीं ...
    कुछ दनों में कोई और यंत्र आ जायगा ओकात नापने का ...

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  16. ....बिलकुल सही सर जी सहमत है आपसे

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  17. ईमानदार सरकारी मुलाजिमों के लिए भी कई ब्रांड है ?

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  18. mobile first impression ho sakta hai par last impression nahin :)

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  19. हमारे पास ब्लैकबेरी और चाइनीज- दोनों फोन हैं। कन्फ्यूज रखते हैं लोगों को।

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