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20 जून 2012

तुम्हारे जाने के बाद !


तुम्हारे जाते ही खुश हुआ था मैं
अब न कोई रोकेगा,न टोकेगा,
सब कुछ हमारे हाथ में होगा
हमारे काम पर भी
नज़र कोई नहीं रखेगा |
तुम्हारे बिना कुछ दिन
बड़ा अच्छा लगा था,
अकेले होने के ख़याल से
मन मचलने लगा था |
तुम्हारे जाने के इतने दिनों बाद
गुरूद्वारे में अर्चना करते हुए !
तुम्हारी कमी महसूसती है,
एक उकताहट सी आ गई है अब
ज़िन्दगी भी हम पे हँसती है |
जब भी उँगलियाँ चलाता हूँ
कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर,
अचानक रुक जाता हूँ
पीछे से कोई आवाज़ न पाकर |
तुम्हारे रहते लिखता था
कहीं ज़्यादा बेफिक्र होकर ,
पर अब लगता है जैसे
कविता और ज़िन्दगी
दोनों गईं हों रूठकर |
तुम्हारी झिड़की औ नसीहत
जबसे नदारद सी हुई है,
हमारी जिंदगी बेरंग औ
बहुत घबराई हुई है |
इस की-बोर्ड, अंतरजाल से
वितृष्णा हो गई है,
बाहरी दुनिया को पाकर
अपनी कहानी खो गई है |
तुम्हें जाना है ज़्यादा
यूँ चले जाने के बाद,
घर मकाँ सा हो गया
दीवार-ओ-दर करते हैं याद |
बहुत दिन अब हो गए
तुम बिन व बच्चों के बिना,
आतप सहा,भूखा रहा,
सुबह उठके दिन गिना |
तुम्हारी हर नसीहत
अब हमें स्वीकार है,
बस हो गया  इतना विरह
बुलाता तुम्हें श्रृंगार है ||

55 टिप्‍पणियां:

  1. आया ऊंट पहाड़ के, नीचे गया दबाय ।

    दुःख के दिनवा गिन रहा, नानक देव सहाय ।

    नानक देव सहाय, कृपा हो जाये जम के ।

    ऊंट उठा बलबला, घूँट कडुवे हैं गम के ।

    खाना पीना छूट, नहीं सप्ताह नहाया ।

    सपने देखूं रोज, लौट सारा घर आया ।।

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    1. आपने वियोग को 'कुण्डली' में लपेट ही लिया :)

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  2. :-)

    अब तो स्कूल खुलने को हैं...........
    आती ही होंगी..................
    (इस कविता को पढ़ा तो अब्भई चलीं आएँगी )

    सादर

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  3. बहुत ही बढिया ... अनुपम भाव संयोजित किए हैं आपने ... आभार

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  4. जब साथ होते हैं तो एहसास नहीं होता साथ का .... जाने बाद खलती है कमी ... सुंदर एहसास से भरी मन के भावों को व्यक्त करने में सक्षम अभिव्यक्ति

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  5. मुझे अंदाज़ा नहीं था कि आप इतना वो होंगे!

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  6. उनके जाने के इतने दिनों बाद .... क्यों संतोष जी ... ये तो एक दिन बाद ही महसूस हो जाना चाहिए था ...

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  7. वे फ्लेशबैक में एक बार फिर से जीने चली गईं हैं , कहानी , जल्द ही वर्तमान में आ जायेगी चिंता ना कीजिये :)

    'अंतरजाल' और 'कीबोर्ड' से वितृष्णा उनके आगमन के बाद भी बनी रहे तो जानें :)

    गुरुद्वारे में अर्चना ? मुझे तो लगा कि वे आंखें बंद करके आपकी हरकतों का जायज़ा ले रही होंगी :)

    साफ़ साफ़ काहे नहीं कहते कि रोटी पानी चाय की दिक्कत हो रही है ब्लागिंग में व्यवधान हो रहा है :)

    आलेख शीर्षक में कुछ शब्द हमहूं टांक रहे हैं ...बर्दाश्त कीजियेगा ...

    "तुम्हारे जाने के बाद : और कोई मिला नहीं : अब तुम्हारा ही ख्याल है" :)

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  8. धीर धरो -

    भाई साल में कुंवारा भी रहना चाहिए. खुद पका के खाना चाहिए.

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  9. हा हा हा ! मास्टर जी , क्या श्रीमती जी दो महीने की छुट्टियों पर गई हैं ?
    या ये उन्हें पढ़ाने के लिए लिखी है ?? :)

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  10. स्कूल बस खुलने ही वाले हैं -बस - आती ही होंगी :)

    थोड़ा और इंतजार कीजिये - और हाँ - आने पर यह पोस्ट ज़रूऊऊर पढवाइयेगा :)

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  11. अच्‍छा तो तब खूब लगा होगा
    जब पाणिग्रहण किया होगा
    अब प्रण ग्रहण कर लो
    प्राण दे दो, जाने न दोगे
    मकां को घर बनाके रहोगे
    पढ़ाते हो, अब पढ़के रहोगे
    जितनी पुस्‍तकें बची हैं
    एक पढ़ोगे और एक कविता
    फिर और लिखोगे
    कितने दिन बचे हैं मिलने में
    जरूर दो की दर से गीत
    रोजाना लिखोगे
    अभी तो कई राज इसमें
    नहीं खुले हैं
    वे कब खोलोगे
    या उन्‍हें किसी पोस्‍ट में
    कपड़ों की तरह निचोड़ोगे
    कपड़े धोए होंगे
    इस्‍त्री किए होंगे
    बिस्‍तर बिछाए और सहेजे होंगे
    या यूं ही बिखरे रहने दिए होंगे
    कितने ही किस्‍से हैं
    जो बाकी बचे हैं
    जिनका खुलना बाकी है
    जय हो हिंदी ब्‍लॉगिंग की
    सब सामने आ रहा है
    पहले छुपे रुस्‍तम थे
    पर देवानंद नहीं थे
    अब देवानंद भी हो
    'धीरे से आजा बगियन में'

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  12. वाह ,,,,बहुत खूब संतोष जी,,,

    पत्नी वियोग में उठते मनोभावों का सुंदर संम्प्रेषण,,,,

    MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...

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  13. विरह का यह दंश है, रिक्त सब्र के कोष।
    तृषा में अनुरक्त हुआ, आज स्वयं संतोष॥

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    1. आज स्वयं संतोष, होश में आया बच्चा |
      आँगन को दे दोष, खा रहा खाना कच्चा |
      वैसे तो है विज्ञ, मगर मूरख बन जाता |
      परम मित्र हे सुज्ञ, वियोगी बात बनाता ||

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    2. वाह!! कविवर, हम निरुत्तर!!

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    3. आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
      अली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !

      हटाएं
    4. मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
      साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!

      हटाएं
    5. टूटा फूटा क्षीण बल, खल अब रहा विशेष ।

      दीदी जल्दी जाइये, ताकत भी नि:शेष ।

      ताकत भी नि:शेष, केस यह टेढा-मेढ़ा ।

      मित्र दे रहे क्लेश, सभी ने मिलकर छेड़ा ।

      खींच रहे सब टांग, तोड़ कर भगा खूंटा ।

      है भाई की मांग, जोड़िये टूटा-फूटा ।।

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    6. रविकर करे धमाल,रोज़ की बात हो गई,
      बुरा हमारा हाल ,खड़ी अब खाट हो गई :-)

      हटाएं
    7. सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे |
      बिन बीबी के मात भैया धीरे धीरे |

      विकट मर्द की जात भैया धीरे धीरे |
      दिखलाए औकात भैया धीरे धीरे |

      खा लो बासी भात भैया धीरे धीरे |
      खाकर के फै'लात भैया धीरे धीरे |

      चार दिनन की बात भैया धीरे धीरे |
      सुधरेंगे हालात भैया धीरे धीरे ||

      हटाएं
    8. बहुत दिनों के बाद , मज़ा आया था बच्चा !
      उस दिन तो मन बड़ा प्रफुल्लित लगता बच्चा


      कपडे धोले, उठ बिस्तर से , लंच बना ले !
      पढ़ ले अब अखबार,किचिन में चाय बनाकर !

      हटाएं
    9. चार दिनों से खा रहा,खिचड़ी और दही,
      अब क्या और कराओगे,अँसुवन-धार बही !

      हटाएं
    10. सुज्ञ20 जून 2012 5:11 pm

      मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
      साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!

      लूटा संग आनंद, आज तड़पन है भारी |
      है विछोह से तंग, जंग है भारी जारी ||

      हटाएं
    11. आप गद्य के वीर हो,रविकर पद्य-प्रवीण,
      अली निपुण दोनों विधा,मेरा बल अति क्षीण !

      मेरा बल अति क्षीण, ये तो विरह है फूटा!
      साथी बिना उदास, साथ आनन्द है लूटा!!

      कब तक सहता रहूँगा,मैं विरही का ताप,
      मन को ठंडक तब मिले,घर आयें जब आप !

      हटाएं
    12. मंगल भावों का उदय, छाये परमानंद |
      शुभ शुभ योगायोग है, विरह अग्नि हो मंद |
      विरह अग्नि हो मंद, चंद दिन ही तो बाकी |
      महके मधु मकरंद, मस्त महिमा अम्बा की |
      मैया का आशीष, ख़त्म हो मन के दंगल |
      मिटे विरह की टीस, होय सब मंगल मंगल ||

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    13. फूल उन्हें भेजा है खत में ... ?

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  14. waah bahut sundar, anupam bhav sanyojan kiye hain aapne...bhavpoorn abhivyaki.

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  15. कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं...!!!

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  16. इतना दमदार न्योता को हम कभी नहीं लिख पाये..

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  17. विरज की ज्वाला असहनीय सी लग रही है।
    रविकर जी की बात सही लगी ...

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  18. रहिमन निज मन की व्यथा मन में राखो गोय
    सुनि अठिलैहें लोग सब, बांट न लैहैं कोय।

    ....दिल्ली के कौनो बिलागर ई नाहीं कहे, "मास्साब! आ जाओ हमरे इहाँ, मकान में ताला जड़ के!" सब मजे लूट रहे हैं।:)

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    1. ...बस,इत्ता महफ़िल जम गई ,ई का कम है ?

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    2. जानता हूँ जन्नत की हकीकत लेकिन
      दिल को बहलाने के लिए गालिब खयाल अच्छा है।

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  19. तो आप भी ठहरे नितांत पामर मानव ही .....
    अस्थि चर्म माय देह मम तामे ऐसी प्रीति ..... :(

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  20. तुम्हारी हर नसीहत अब मुझे क्यों लग रही मनभावनी ?
    बस हो गया इतना विरह , क्यों देर करतीं मानिनी ?

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    1. अब आप आए हैं समझने,हाल-ए-दिल मेरा,
      है भरोसा कुछ न कुछ ,हो जायेगा अच्छा !!

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  21. सुंदर रचना एवं अभिव्यक्ति  "सैलानी की कलम से" ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा है।

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  22. :) बहुत बढ़िया - तो भाभी जी आईं , बच्चों की मासूमियत संग लेकर ?

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  23. तुम्हें जाना है ज़्यादा
    यूँ चले जाने के बाद,
    घर मकाँ सा हो गया
    दीवार-ओ-दर करते हैं याद |

    ....बहुत सच कहा है...
    जब साथ हों अकेलापन चाहते हैं, और जाने के कुछ घंटों बाद ही पछताते हैं.

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  24. दो ही वक्त गुजरे हैं कठिन,
    एक तेरे आने के पहले
    और एक तेरे जाने के बाद...!

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  25. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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