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29 मई 2012

तभी पढ़ें जब आपके पास प्रमाण-पत्र हो !


जी हाँ ,आपने सही समझा ! अब मैं कोई ऐसा वैसा ब्लॉगर या लेखक नहीं रहा. मैं इत्ता पढ़ा जाता हूँ कि मेरा दम घुटने लगा है.मेरी कोई भी रचना अब मेरे निजी पेटेंट के दायरे में है और मैंने यह सोच रखा है कि मेरे लिखे हुए को केवल मेरे चम्पू ही पढ़ें और मेरी वाह-वाह करें.
मेरी लिखने की खासियत शुरू से यही है कि मैं बिना लाग-लपेट के लिखता हूँ ,भले ही किसी को केवल लपेटने के लिए लिखूं.मैं बिलकुल ताक में बैठा रहता हूँ कि कब हमारा शिकार मिले और मैं उसे धर दबोचूं.मेरी इसी प्रवृत्ति से कई लोग घबड़ा कर काउंटर-अटैक करने की कोशिश में लगे रहते हैं.इससे ही बचने के लिए मैंने पुख्ता इंतजाम किया हुआ है.अगर कोई भी ऐसी-वैसी उपदेशक टीप मेरी पोस्ट पर आती है तो मैं बक्से में ही बंद कर उसका गला घोंट देता हूँ.लेकिन इधर कुछ ज़्यादा चालबाज़ लोग सक्रिय हो गए हैं और मेरी पोस्ट पर टीप न करके इधर-उधर उसका लिंक बिखेर देते हैं.इससे ही बचने के लिए मैंने यह नया नुस्खा आजमाया है.
मेरा नया नुस्खा यह है कि मैं जिसको चाहूँगा वहीँ मुझे पढ़ेगा और देखेगा.मुझे पढ़ने और देखने के लिए मुंहदिखाई जैसी रस्म अदा करनी पड़ेगी.कई बाबा-टाइप के ब्लॉगर हैं जो चुपचाप घूंघट उठाकर देख भी लेते हैं मतलब पोस्ट पढ़ लेते हैं पर मुंहदिखाई से मुकर जाते हैं.इन्हीं सब हरकतों से तंग होकर मैंने यह फैसला निजी हित में लिया है कि जिसे मेरी पोस्ट पढनी हो,मेरे पास मेल भेजेगा,इससे दो फायदे होंगे.एक तो अपना रुतबा कायम होगा ,दूसरे यह कि उससे मेलजोल की सम्भावना भी बढ़ जायेगी.इस तरह बिना किसी और के जाने,मैं चुपचाप कई विकल्पों में विचरण कर लूँगा.
मेरी पोस्ट मेरी निजी संपत्ति है.इसे मैं सबके लिए सार्वजनिक नहीं कर सकता हूँ.आजकल बड़े खुर्राट किस्म के ब्लॉगर मैदान में आ गए हैं.वे हमारी त्रुटियों पर और निरर्थक रचना पर सरे-आम बहस छेड़ देते हैं.मेरा ताज़ा उपाय इसकी भी काट करेगा.मैं भले ही दूसरों की पोस्ट में अपनी पूरी पोस्ट टीप के रूप में चिपका दूँ,पर मजाल कि कोई मेरी दीवाल के आस-पास भी आ सके.मैं इसी दिन के लिए ब्लॉगर नहीं बना था.मैं लिखित रूप से एक ब्लॉगर हूँ और यह भी कि उस पर मेरा पेटेंट है.आजकल कुछ पता नहीं कब कोई हमारे टेंट में आकर अपना खूँटा गाड़ दे इसलिए मैंने इसे सब तरह की अलाय-बलाय से दूर रखने का फैसला किया है.यह मेरा प्रजातान्त्रिक अधिकार है,इससे भले ही किसी और के अधिकारों का हनन क्यों न होता हो,पर मैं किसी और के अधिकारों के बारे में क्यों सोचूँ ?

इसलिय इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आप ठीक से सुनिश्चित कर लें कि मेरे द्वारा जारी प्रमाण-पत्र आपके पास है या नहीं,अगर नहीं है तो सारे हर्जे-खर्चे के जिम्मेदार आप होंगे !

डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में कही गई बातें निहायत वैकल्पिक हैं और इसका सम्बन्ध किसी भी ब्लॉगर से महज़ संयोग हो सकता है !

70 टिप्‍पणियां:

  1. आप आजकल दूसरों के बारे में बहुत लिख रहे हैं ...
    मुझे लगता है कि आपके पास इतना कुछ है जिसके लिए आपको किसी के नाम के सहारे की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए !
    इस प्रकार के लेख आपको और दूसरों को बेवजह तनाव में डालेंगे !
    अगर आपके खिलाफ भी कोई लिखता है तब भी हमें नज़रंदाज़ करना आना चाहिए , वज़न बना रहेगा !
    आशा है आप बुरा नहीं मानेंगे , मित्रता के नाते यह विरोध, मेरा फ़र्ज़ बनता है !

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    1. इसे मेरी भी राय माना जाये !

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    2. सतीश जी, सबसे पहले इस तरह के परामर्श का शुक्रिया.मित्र के नाते तो यह आपका पूरा अधिकार भी बनता है.अब मैं कुछ स्पष्टीकरण ज़रूर दूंगा !

      यह पोस्ट किसी खास को 'टारगेट' करने के बजाय उस प्रवृत्ति के खिलाफ है जो अंतरजाल जैसे प्लेटफोर्म पर आकर भी पढ़ने और कहने का अपना अधिकार तो रखते हैं पर दूसरों से वही अधिकार छींनते हैं.

      ऐसे लोगों के यहाँ यदि कुछ सार्थक होगा तभी कोई जायेगा,यदि उसकी इच्छा हुई तो वहाँ कुछ कहेगा और पोस्ट-लेखक का अधिकार है कि यदि अशालीन बात कही गई है तो उसे हटा दे.,पर देखता हूँ कि ऐसे लोग दूसरे के यहाँ जिस तरह के चाहे विचार रखने को स्वतंत्र हों और अपने यहाँ उन्हें अपनी बात भी कहने की आज़ादी न हो,विचार उसके मुताबिक न हों तो छपेंगे ही नहीं.
      हद तो तब है कि यदि कोई अग्रीगेटर से उसकी पोस्ट पर पहुँचता है तो उसे कहा जाता है कि यह केवल आमंत्रित लोगों के लिए है.यह प्रवृत्ति क्या सभ्य समाज या अंतर्जालीय नियमों के दायरे में है?
      ऐसे लोग किसी वरिष्ठ के खिलाफ अनाप-शनाप लिखने का अभियान छेड़ें और कोई उसकी आलोचना भी न कर सके,यह किस तरह का रचना-कर्म है ?

      मैं केवल मजे भर के लिए नहीं लिखता.यदि मुझे लगता है कि किसी बात का हमारे समाज या ब्लॉग-जगत से सरोकार है तो मेरा कर्तव्य बनता है कि अपनी बात कह सकूँ.
      ..फिर भी मैंने कहने के लिए औरों की तरह सीधा आक्षेप नहीं लगाया,हास्य-व्यंग्य अभिव्यक्ति का एक माध्यम है जिसके द्वारा लोग सत्ता और व्यवस्था तक की आलोचना करते हैं !

      मेरे यहाँ कभी किसी को कहने से रोका नहीं गया और मैं समझता हूँ कि किसी को पढ़ने के लिए शर्तें बांधना जैसा कर्म इससे भी निंदनीय है !

      ...अंत में,आपका पुनः आभार,उम्मीद है आपने इसकी ज़रूरत समझी होगी !

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    3. आश्चर्य की क्या बात है? जिन्हें पढ़ना होता है वे पत्र-पत्रिकाएं भी खरीदकर पढ़ते ही हैं. जनतंत्र है कम्युनिज्म नहीं. हमारा लेखन तो सबके लिए खुला है और खुला ही रहेगा.

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    4. हम लोग यहाँ प्रतिकार के लिए नहीं आये है.....

      मुझे लगता है कि हम यहाँ गूगल द्वारा दिए गए मुफ्त के कलम दवात और ब्लैक बोर्ड का दुरुपयोग कर रहे हैं ! जहाँ एक और इस प्लेटफार्म पर एक से एक आदरणीय विद्वान काम करते दिखते हैं वही दूसरी और नीच प्रवृत्ति के लोगों की भी कोई कमी नहीं,सवाल हमारी नज़र और सोंच का है !

      कई बार दोस्त की लाख बुराइयों के बावजूद, हमें उसमे कोई कमी नज़र नहीं आती वहीँ बहुत अच्छे इंसान में, दूरी के कारण , छोटी सी कमी भी पहाड़ जैसी नज़र आती है !
      शायद हमें आत्मावलोकन करने की आदत ही नहीं ...
      आभार !

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    5. सतीश जी,
      आपकी निर्मल भावनाओं को मैं समझता हूँ पर कई बार हमें वह लिखना या कहना पड़ता है जो नैतिक रूप से ज़रूरी हो जाता है.मैं कोई नैतिक-दरोगाई बनने की भी वक़ालत नहीं करता पर कुछ लोगों को अगर शालीन तरीके से आईना दिखाया जाये तो क्या गलत है,खासकर वे लोग जो खुले-आम अशालीन हों ?
      ..मैं चाहूँ तो कई उदाहरण दे सकता हूँ पर अपनी बात को अपने ही ऊपर से लेकर मैंने कहने की कोशिश की है और उसके नतीजतन आई टिप्पणियां(जिन्हें मैंने छापा नहीं)हमारे लिखे को सही बताती हैं !

      ...आपको अगर हमारी ओर से दुःख पहुंचा हो तो उसके लिए क्षमा चाहता हूँ !

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  2. Apne blog par blogger ka adhikaar hai... Uska haq hai ki vah blog ko chahey niji rakhe ya sarvjanik karen... Ya keval unke liye hi dwar kholey jo padhne ki ichchha vyakt karein...

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    1. Agar blog ke palle par magic eye fit karwa li jaye, to apni pasand Wale ko dekhkar tent me sooraakh kiya ja sakta hai.

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    2. ...शाहनवाज भाई,बिलकुल उसी तरह उसका भी अधिकार है कि यदि कोई बात सार्वजनिक मंच पर है तो उस पर विचार दिया जाए और हाँ इन्टरनेट कब से किसी का निजी हो गया..?

      यदि आप ऐसा चाहते ही हैं तो अग्रीगेटर पर मत लाएं उसे,केवल काना-फूसी करके कुछ लोगों को पढ़ा दें !

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  3. प्रवीण जी से तुक उधार लेकर्……

    कहत है चंगा,
    मन में अड़ंगा,
    मत ले पंगा,
    सम्भव है दंगा।

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    1. सुज्ञ जी...केवल विशुद्ध विमर्श होगा,दंगा-फसाद नहीं !

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  4. मैंने अपनी पोस्ट के माध्यम से पढ़ने के अधिकार का समर्थन किया है जबकि हमारे यहाँ कहने की भी छूट है.कुछ मित्रों को अब हमारे कहने के अधिकार पर भी आपत्ति है,क्या यह सही है ??

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    1. अजी बिल्कुल भी नहीं ! हमें आपके अधिकार पर कोई आपत्ति नहीं है !

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  5. संतोष जी ,
    अगर कोई राजनीति ना हो , अगर किसी को व्यक्तिगत रूप से आक्षेपित ना किया गया हो , अगर इसका किसी ब्लागर से कोई जानाबूझा संयोग ना हो , तो आपकी पोस्ट बहुत अच्छे प्रश्न उठाती है ! कमाल की है ! किन्तु अगर ऐसा है जैसा कि मैंने नहीं चाहा है तो फिर कौन है वो ? जिसे आपकी निंदा / आलोचना का पात्र बनना पड़ा है :)

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    1. अली साब ,
      पिछले दिनों इस बात पर काफ़ी बहस हुई है.कुछ लोगों ने अपने ब्लॉग को केवल आमंत्रित पाठकों के लिए खोला हुआ है,जबकि वह ब्लॉग एग्रीगेटर पर मौजूद है.इसी बात को लेकर कुछ वरिष्ठ ब्लॉगरों ने विरोध दर्ज़ किया पर उसको भी उल्टे-सीधे तर्क देकर खारिज किया गया.मैंने तो सीधा-सीधा न कहकर अपने को ही प्रतीक बनाकर उस मुद्दे को उठाया है.
      यह बिलकुल सही है कि कोई किसी को पढ़ना नहीं चाहता तो न पढ़े पर सार्वजनिक मंच पर मौजूद होकर इस तरह का कृत्य महज़ तमाशा नहीं है क्या..?

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    2. अच्छा तो ये बात है ! उनकी अपनी शैली है उसे लेकर उत्तेजित क्यों होना है :)

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    3. ...उत्तेजित कहाँ है भाई,हास्य-व्यंग्य में ही तो लिखा है !

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    4. रचना जी,यह एक विशेष प्रवृत्ति के खिलाफ मेरा नजरिया है,आपसे मेरी कोई व्यक्तिगत खुंदक क्यों होगी ?

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  6. बच के रहना अब :)
    आपके आलेख में कई पुल्लिंग प्रतीकों की भरमार है ..
    जैसे खूंटा गाड़ना आदि ,खूंटे, भैंस आदि का ज्यादातर और प्रायः उल्लेख
    अभी तक एक गवईं ब्लागर ही करते रहे हैं अब आप उनके
    वर्चस्व में पैठ कर रहे हैं ....
    रही बात आपके पोस्ट के समग्र सन्देश की तो यह कुछ लोगों की फितरत
    है कि वे अपने चरित्तर से चर्चा में बने रहना चाहते हैं ....जबकि कालातीत हो चुके हैं !
    ऐसे लोगों को ज्यादा भाव /अटेंशन देना सामाजिक हित में नहीं है ..
    कहीं यह तो नहीं है कि उनका ध्यान ही आकर्षित करने को आपने यह लिख मारा है?

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    1. गुरूजी....हमारी टैगलाइन में साफ़-साफ़ लिखा है,"अपनों से,अपनी जैसी,खरी-खरी "

      रही बात गंवई शब्दों के तो हम ठहरे ठेठ देहाती और यह हमारा स्टाइल है.शब्द अभी तक पेटेंट नहीं हुए हैं !

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  7. आपकी बात से मैं सहमत नहीं हूँ त्रिवेदी जी...ब्लॉग्गिंग सार्वजनिक मंच है, ब्लॉग नहीं, इन्टरनेट ही सार्वजनिक है, फिर भी हम सभी प्राइवेसी मेंटेन करते हैं...अगर ऐसा नहीं होता तो यूजरनेम, पासवर्ड का चलन ही नहीं होता...
    ये तो बिल्कुल ऐसा ही है, आप एक सोसाईटी में रहते हैं और आपका अपना फ़्लैट है, आप चाहे ताला लगायें, चाहें ना लगायें...या सामने लिख कर रख दें कि कृपया कोई भी मेरे घर ना आए...अब ये तो जाने वाले की ग़लती है...लेकिन आप पडोसी को नहीं कह सकते कि ताला मत लगाओ...

    जहाँ तक एग्रीगेटर का सवाल है, एग्रीगेटर का इस्तेमाल वो आमंत्रित भी कर रहे हैं...उनको इससे सूचना मिल रही है, आख़िर ऐसे ब्लॉगस की पोस्ट्स को भी तो आमंत्रित पढेंगे...और फिर एग्रीगेटर से हटाना भी ब्लाग स्वामि हाथ में नहीं है...ऐसे ब्लॉग स्वामि एग्रीगेटर प्रबंधन को सूचित करेंगे कि मेरा ब्लॉग हटा दिया जाए, तभी ब्लॉग हटेगा..., लेकिन हम पूछते हैं, किसी ब्लॉग स्वामि को क्या पड़ी है ये बताने की...एग्रगेटर्स ख़ुद ही क्यों नहीं एक condition लगाते हैं, अगर ब्लॉग सिर्फ़ आमंत्रित लोगों के लिए है वो उनकी फीड बन्द कर दें...ओब्जेक्शन तब होना चाहिए जब कोई किसी की प्राईवेसी में खलल डाल रहा हो, अगर कोई अपनी प्राईवेसी बचा रहा हो तब हमें बोलने का कोई हक़ नहीं है....

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    1. अदाजी
      आपने अपने नज़रिए से हमें अवगत कराया,इसका आभार.हमारे कहे पर तो आपत्ति हो सकती है पर कहने पर नहीं.यह सबका मौलिक अधिकार है.
      ...आपका बहुमूल्य पक्ष हम तभी जान पाए जब यहाँ कहने की स्वतंत्रता है.मान लो ,आप टीप लिखने के बाद यह पातीं कि यहाँ केवल आमंत्रित लोग ही टीप सकते हैं तो कैसा महसूस होता..?

      हमने केवल पढ़ने और अभिव्यक्त होने की वकालत की है,किसी प्रकार की निजता में घुसपैठ नहीं.
      मैं समझता हूँ कि यदि ऐसे ब्लॉग ज़रूरी भी हों तो एग्रीगेटर इन्हें अपने प्लेटफोर्म पर पात्र न मानें क्योंकि वह सार्वजनिक मंच है.
      सूचना रोकने से ज़्यादा सूचना पाने का अधिकार है !
      आपका आभार पुनः !

      हटाएं
    2. सबसे पहले एक बात खुलासा कर दूँ, मैंने 'असहमति' कहा है 'आपत्ति' नहीं...दोनों में फर्क है..
      अगली बात, आमंत्रित ब्लॉग पर आप तभी टीप सकते हैं जब आप आमंत्रित की श्रेणी में हैं...वरना आप वहाँ जा ही नहीं सकते हैं..
      हाँ उसके बाद अगर आपकी टीप को नहीं छापा गया तो 'कारण बताओ' का आन्दोलन आप चला सकते हैं...फिर भी यह ब्लॉग मालिक की इच्छा पर है वो उसे छापे कि न छापे...
      आपने आज एक टिप्पणी नहीं छापी, कारण जो भी है, लेकिन मर्ज़ी आपकी ही मानी जायेगी...आपने सूचना रोकने का अपने अधिकार का प्रयोग यहाँ पर किया है...कोई उसे ज़बदास्ती नहीं छपवा सकता...

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    3. @सबसे पहले एक बात खुलासा कर दूँ, मैंने 'असहमति' कहा है 'आपत्ति' नहीं...दोनों में फर्क है.
      यह बात मैंने आपके सन्दर्भ में नहीं कही है !रही बात उस टीप को न छापने की तो अशालीन टीप है इसलिए यहाँ नहीं लगाया !

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  8. उससे भी बड़ी बात यह है कि यह ऑप्शन उपलब्ध है इस्तेमाल करने के लिए...इसलिए यह कानूनन भी यह मान्य है, हाँ दोस्ती यारी में लोग इसका उपयोग बेशक नहीं करते लेकिन करने वालों को हम रोक भी नहीं सकते...

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  9. अभी थोड़ी देर पहले रचना जी की एक टीप प्राप्त हुई जो बेहद अशालीन और अतार्किक ढंग से लिखी गई है.उनके किसी सवाल का जवाब देना मैं ज़रूरी नहीं समझता क्योंकि वे खुद दूसरों के यहाँ जाकर अनाप-शनाप लिख सकती हैं और अपने यहाँ पढ़ने-लिखने पर रोक लगा रखी है.इसके पहले मैं कह चुका हूँ कि खास-प्रवृत्ति के लिए यह मेरा नजरिया भर है और सब इससे सहमत हों,ज़रूरी नहीं !यह केवल उनके लिए है,यह कैसे समझ लिया? ब्लॉगिंग की दुनिया बहुत बड़ी है !

    अगर वे ब्लॉगरों को पढ़ने के लिए आमंत्रित करती हैं तो मैंने कब उन्हें टीपने के लिए आमंत्रित किया है? इसलिए उन्हें यह सब बुरा नहीं लगना चाहिए.उन्हें या किसी को सीधा आक्षेप लगाकर कभी कुछ नहीं कहा गया,यहाँ तो हमारे व्यंग्य में ही उन्हें परेशानी है जबकि मुझसे पहले ही कई लोग इस प्रवृत्ति की आलोचना कर चुके हैं.


    ...उनकी अशालीन टिप्पणी को हटा दिया है और आगे से मोडरेशन लगा दिया है.किसी भी तरह के स्वस्थ विमर्श के लिए यह मंच खुला है.उनको कोई जवाब नहीं क्योंकि बिना तर्क के और पूर्वाग्रह होकर लिखना उनकी आदत है.मेरे यहाँ पिछली कई पोस्टों में वे अनावश्यक रूप से वाद-विवाद कर चुकी हैं,फिर भी मैंने हमेशा उनका मान रखा है,लेकिन अशालीन और असभ्य टीपों के लिए अब यहाँ स्थान नहीं है !

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    1. समझ नहीं आता कि जो अपनी पोस्ट दूसरों को पढवाना ही नहीं चाहते तो वो लिखते क्यों हैं और जिन्होंने टिप्पणी ऑप्शन बंद कर रखी है वो दूसरों को टिप्पणी क्यों करते हैं।

      आपकी पोस्ट एक प्रवृति पर बढिया व्यंग्य है, कोई व्यक्तिगत समझे तो क्या किया जा सकता है।

      हटाएं
    2. माफ़ कीजिये त्रिवेदी जी, मैं ये कमेन्ट हटा रही हूँ...बात बिल्कुल वही लिख रही हूँ, सिर्फ़ बातों को तरतीब देने की कोशिश कर रही हूँ...पॉइंट वाइस लिख रही हूँ...

      बात यहाँ पोस्ट 'नहीं' पढ़वाने की नहीं है, बात है पोस्ट 'सीमित' लोगों को पढ़वाने की,
      आज तक लोगों को टिप्पणियों के मामले में निम्नलिखित शिकायतें रहीं हैं :
      १. टिप्पणियों की तादाद में कमी आई है, लोग पढ़ते हैं लेकिन टिप्पणी नहीं करते हैं...
      २. ब्लॉग का टिप्पणी ऑप्शन तो खुला है, और लोग वहाँ टिप्पणी भी करते हैं लेकिन ब्लॉग के मालिक कहीं और टिप्पणी नहीं करते..
      ३. अब ये शिकायत है, कि वो टिप्पणी क्यूँ करते हैं जिनके ब्लॉग के टिप्पणी ऑप्शन बन्द हैं,

      मुहीम चलाने के लिए विषयों की कमी नहीं है और शिकायतों का भी कोई अंत नहीं है, अपनी अपनी सोच है अपना अपना ख़याल है..

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    3. अंतर सोहिल जी और अदा जी,

      आभार आपका !

      हटाएं
  10. jo jin baton ka virodh adhik karta hain....
    afsos, ke wahi baten 'o' khud jyada karta hai...

    aapke, samyik sandarbh me is post ka hasya roop me prastuti achha laga,
    haan vyaktigat lanat/mlanat na hone pai....bhadra jano se ye akinchan
    apkesha bana rahe????


    pranam.

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  11. एकदम विषय पर-
    पर हास्य है-
    परिहास भी

    चना अकेला चल पड़ा, खड़ा बीच बाजार |
    ताल ठोकता गर्व से, जो फोड़ा सौ भार |

    जो फोड़ा सौ भार, लगे यह लेकिन सच ना |
    किन्तु रहे हुशियार, जरा घूँघट से बचना |

    केवल मुंह को ढांप, निपटती प्रात: बेला |
    सरे-शाम मैदान, सौंचता चना अकेला ||





    घूँघट बुर्का डाल के, बैठ चौक पर जाय |
    टिकट ख़रीदे क्लास जो, वो ही दर्शन पाय |

    वो ही दर्शन पाय, aapki meharbaani |
    रविकर सा नाचीज, ढूँढिये behtar जानी |

    सज्जन का क्या काम, निमंत्रित कर ले मुंह-फट |
    दो सौ डालर डाल, उठा देंगे वे घूँघट ||

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    उत्तर
    1. वो ही दर्शन पाय, आपकी मेहरबानी |
      रविकर सा नाचीज, ढूँढिये बेहतर जानी |

      हटाएं
    2. रविकर जी,आपके रंग अनोखे !

      हटाएं
  12. आपको सदा पढ़ने की आशा रखते हैं....
    प्रमाणपत्र भिजवा दें प्लीस.
    सादर.

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    उत्तर
    1. ..आपको दो-एक दिन में वापसी डाक से खबर मिल जायेगी !

      हटाएं
  13. आग गए न अपने सीमा और सामर्थ्य में:)
    आपको ऐसी टिप्पणियों को उजागर करना चाहिए ताकि जनता जनार्दन को भी देखने का हक़ मिले !
    सारी दुनिया को ठीक कर देने के दावा करने वालों का खुद का अपना "चाल चेहरा चरित्र ' कैसा है?

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    उत्तर
    1. गुरूजी,
      उन अशालीन टीपों को तो वैसे भी कहीं न कहीं पढ़ लिया जायेगा,पर ऐसे लोगों को इतना अहसास भी तो होना ज़रूरी है कि जहाँ वे किसी को पढ़ने या कहने से रोकते हैं,उन्हें भी अपनी बात न कह पाने की टीस का आभास हो.
      रही बात लोगों के जानने की ,तो सभी जानते हैं कि अनर्गल और अशालीन और असहिष्णु कौन है.उसे दूसरे का गाली-गलौज नहीं दिखता .टिप्पणी की बंदिश का असर क्या होता है,अब ज़्यादा अच्छी तरह से उसे अहसास होगा !

      हटाएं
  14. आप तो बुलाएं
    और खुद बिना बुलाए
    किसी के भी ब्‍लॉग पर
    मुंह उठाए पहुंच जाएं


    आप पर लिखें तो
    टारगेट
    हम पर लिखें
    तो बंद कर लें गेट
    टिप्‍पणियों का।

    यह रहस्‍य रस पैदा करने का
    अप्रतिम उदाहरण है
    इसमें सबको कहां
    महारत हासिल है

    आप महिलाएं सब
    सच्‍ची और अच्‍छी
    पुरुष सारे बेकार
    ब्‍लॉगिंग पर काला
    धब्‍बा हैं

    ब्‍लॉगराएं लिखें तो
    आग
    इस्‍तेमाल करके दिमाग
    ब्‍लॉगर लिखें तो
    कूड़े का महासागर

    आपकी गागर
    सागर
    हमारा सागर
    चम्‍मच भी नहीं।

    आंखें, मुंह, कान, नाक
    खोलती
    एक डॉक्‍टरीय पोस्‍ट
    व्‍यंग्‍य में और
    पैनी होनी चाहिए थी
    धार

    जिससे ब्‍लॉग के खुल जाते
    सारे द्वार
    और हट जातीं दीवार
    पर मन को काला
    मन में हो मैल
    ऐसा नहीं बना तेल
    जो इस मैल को छुड़ा सके

    एक मुहावरा है
    छछूंदर के मुंह में चमेली का तेल
    कौन छूछूंदरी
    किसके पास है तेल।

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    उत्तर
    1. ...अविनाशजी,तेल के दाम बढ़ने का गुस्सा इस तरह ... ?

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  15. मैंने यह सोच रखा है कि मेरे लिखे हुए को केवल मेरे चम्पू ही पढ़ें और मेरी वाह-वाह करें.
    पहले पैरा की ही शर्तें पूरी नहीं कर पाये इसलिये बिना पढ़े टिपिया रहे हैं कि ये सब क्या लफ़ड़ा मचा रखा है जी!

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    उत्तर
    1. ..महाराज,आपको तो शीर्षक पढ़कर ही रुक जाना चाहिए था...!

      ....अच्छा किया नीचे नहीं आए !

      हटाएं
    2. हां नीचे बहुत भीड़ है भाई! धक्कम मुक्का भी। :)

      हटाएं
  16. हालाँकि मैं यह मानती हूँ कि यदि आप आप ब्लॉगिंग से जुड़े हैं तो सिर्फ आमंत्रित ही आपका लिखा पढ़े , यह अलोकतांत्रिक है . आश्चर्य है कि जो लोंग सोशल नेटवर्किंग को पसंद नहीं करते, वे ब्लॉग का उपयोग सोशल नेटवर्किंग की तरह क्यों करना चाह्ते हैं !!

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  17. कुछ पंक्तियां अर्ज़ हैं,

    हमसे अलग जो आपने परिवार कर लिया
    तो भेद-भाव हमने भी स्वीकार कर लिया ।
    रिश्ता रहा तो इतना रहा आपमें हममें,
    मिलते ही मुस्कुराए, नमस्कार कर लिया ।

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    उत्तर
    1. ...ऐसा जुलुम मत करना भाई साहब !

      आपके स्नेह का आकांक्षी हूँ |

      हटाएं
  18. यह तो स्पष्ट सी बात है, ब्लोग्बुड में हैं तो कमेन्ट मोडरेशन तक तो गनीमत रहती है, पोस्ट मोडरेशन हमारे ब्लागीय लेखन के औचित्य पर ही सवाल खडा करता है! इस पर कई विचार हो सकते हैं, पर मुझे लगता है कि यह दृश्य-निषेध नहीं होना चाहिए.

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  19. क्या हो गया जी ... इतना गोल गोल काहे लिख रहे हैं ...
    वैसे डिस्क्लेमर देख लिया ...

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  20. सही कहा... तरीका भी अच्छा निकाला आपने....
    सादर

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  21. महाराज जी , एक प्रमाणपत्र इधर भी पार्सल कर देंगे क्या ?

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