अविनाशी-मुद्रा |
मैं फेसबुक में अविनाशजी से जुड़ा था पर कोई ख़ास संवाद नहीं हुआ था.उस दिन उस लेख को पढ़कर मैंने फेसबुक से उनका नंबर लिया और तुरत फोन लगा दिया.मैंने अविनाशजी से गंभीर मुद्रा में पूछा,''क्या मिस्टर अविनाश वाचस्पति बोल रहे हैं ?' उधर से आराम से जवाब आया,"जी हाँ,बोलिए." मैंने कहा,'मैं शिक्षा विभाग से बोल रहा हूँ.आपने अखबार में जो लेख लिखा है उसके लिए आप पर मानहानि का दावा किया जा सकता है." उन्होंने उसी सहज अंदाज में उत्तर दिया,'जी नहीं.मैंने ऐसा कुछ नहीं लिखा है जिससे किसी की मानहानि हो".मैंने जल्दी ही हथियार डाल दिए और जब नाम बताया तो वे खिलखिलाकर बोले,"मैं जानता था कि किसी मास्टर का ही फ़ोन होगा और मुझे तो ऐसे फ़ोन सुनने की आदत-सी हो गई है". अब इसके बाद तो उनसे बातचीत का ऐसा सिलसिला शुरू हो गया कि पूछो मत.
अविनाशजी के घर में |
अविनाशजी में नए लोगों को प्रेरित करना,उन्हें तकनीकी और दूसरे दांवपेंचों से अवगत कराना जैसे मौलिक गुण हैं.क्या आज के समय में ऐसा कोई पहलवान है जो अपने अखाड़े के गुर किसी और पहलवान को बताएगा पर वे बिला-झिझक या संकोच के ऐसा लगातार करते रहते हैं.उन्होंने कई ब्लॉगरों को तो जन्म दिया ही,कुछ प्रकाशकों को भी अपनी दिहाड़ी कमाने और सबके सामने लाने का काम किया है.हाँ ,कुछ लोग ज़रूर उनके इस जबरिया सहयोग-भाव और भोलेपन का फायदा उठा ले जाते हैं.एक एजेंट,एक डॉक्टर और एक प्रकाशक के झांसे में वे फंस चुके हैं,फिर भी नए लोगों को ऊपर उठाने में वो कोई कोताही नहीं बरतते.एक बात और है,वे अगर ज़िद पर अड़ जाएँ तो किसी भी काम को पूरा करके ही दम लेते हैं.
पहलवानी-मुद्रा |
उनके रचना-कर्म की तो कोई मिसाल ही नहीं है.अस्वस्थता की स्थिति में होते हुए भी एक दिन में दो-तीन लेख ज़रूर लिख लेते हैं.उनकी व्यंग्य की अपनी अलग शैली है.किसी एक शब्द के पीछे-पीछे वे पता नहीं कहाँ तक पहुँच जाते हैं.उनके लेखन का तो कई लोग ओर-छोर ही ढूँढते रह जाते हैं.कई दैनिक पत्रों में उनके नियमित कालम आते हैं और वे फेसबुक पर भी बराबर विमर्श करते रहते हैं.हर दिन वे क़रीब दस अखबार और तीन-चार पत्रिकाओं की खुराक लेते हैं.कुछ दिनों पहले ही ब्लॉगिंग को लेकर रवीन्द्र प्रभात जी के साथ उनकी एक पुस्तक आई थी और अभी एक बहुचर्चित व्यंग्य-संग्रह "व्यंग्य का शून्यकाल" भी आ चुकी है. वे अपने सामूहिक ब्लॉग नुक्कड़ के ज़रिये बहुत बड़ा योगदान कर रहे हैं.उनके अन्य कई व्यक्तिगत-ब्लॉग हैं,जिन्हें यहाँ समेटना संभव नहीं है.इतनी कार्यक्षमता देखते हुए हमें उनसे रश्क होता है.
मुझ पर उनकी विशेष कृपा है.उन्होंने कई तरह से और कई जगह मुझे अयाचित लाभ और मौके मुहैया कराये हैं जिनका मैं हमेशा कर्जदार रहूँगा.ईश्वर उनको चिरायु करे और ऐसे ही बना रहने दे.
आत्मीयता से भरी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसलामत रहे दोस्ताना...
जवाब देंहटाएंवैसे भी भले आदमी गिनती के रह गये हैं। अब आज के जमाने में कोई किसी कि इत्ती तारीफ कर रहा है तो मानना ही पड़ेगा कि वो भला आदमी होगा। दुर्लभ प्रजाति को सुरक्षित लॉकर में रखने के बजाय आप यूँ आम चर्चा कर रहे हैं! मैं भी जोर आजमाने का प्रयास करता हूँ। एकाध कमेंट झूर-झार हमरो ब्लॉग में गिर जाय टप्प से:)
जवाब देंहटाएंआप कोशिश करें,पूरा का पूरा बोझ आपके ऊपर आ गिरेगा....लेखों और टीपों का !
हटाएंच्छा लगता है ऐसे सकारात्मक अनुभव जानकर .... आपकी आत्मीयता यूँ ही बनी रहे , शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं*अच्छा
जवाब देंहटाएंअविनाशजी से वर्धा में बस एक बार ही मिलना हुआ है, जीवन्त व्यक्तित्व हैं।
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग की चलती-फिरती एनसाइक्लोपीडिया...!
हटाएंपरिचय कहां है ?
जवाब देंहटाएंयह संस्मरणात्मक-आलेख है,उनका परिचय 'नुक्कड़' पर या 'गूगल' पर ही मिलेगा.
हटाएंवैसे भी हमारा काम इत्ते-से ही चल जाता है !
आपका काम कित्ते से भी चल जाये पर आलेख तो आपने हम सबके लिए डाला है ना :)
हटाएंजब आपके सौजन्य से मैं पहली बार अविनाश जी से दिल्ली में मिला तो उनके बारे में मेरी सारी पूर्व धारणाएं
जवाब देंहटाएंसहसा ही ध्वस्त हो गयीं -वे एक अत्यंत विनम्र ,संकोची ,मृदुभाषी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति लगे ,हैं !
उनकी बीमारी से उस समय भी मुझे दुःख हुआ था -आशा है अब स्वास्थ्य सुधार पर होगा ,,,
मेरे मन में उनके प्रति बहुत सम्मान ,श्रद्धा और शुभकामनाओं का भाव उमड़ा पड़ रहा है ..
मुझे नहीं लगता वे ब्लागजगत में किसी परिचय के मुहताज है !
...मगर अली साब उनके बारे में ज़्यादा नहीं जानते,बहुत दूर रहते हैं ना !
हटाएंसंतोष जी उत्तई दूर तो हम आपसे भी रहते हैं पर अरविन्द जी ने आपका पूरा परिचय दिया था कि नहीं ! इसलिए अब आपकी भी जिम्मेदारी बनती है :)
हटाएंपडौसी(नजदीकी) हो दोस्ती भी, साथ-साथ अपनापन भी, ऐसा आजकल कम ही दिखाई देता है।
जवाब देंहटाएंभाई जी , अच्छा संस्मरण . यादों को संजोने का नया तरीका!
जवाब देंहटाएंसाफ दिल के लोगों को झांसे में फंसने का खतरा अक्सर रहता है ।
जवाब देंहटाएंडॉक्टर नकली था ।
अली जी को परिचय कौन देगा । :)
अविनाशजी से आग्रह करूँगा कि अली साब को वही अपना परिचय दें...पूरा !
हटाएंलीजिए अली जी। इस लिंक को कापी करके एड्रेस बार में पेस्ट कर लीजिए और दबा दीजिए एंटर। फिर मेरे परिचय में प्रवेश मिल जाएगा। सब कुछ सिम सिम की तरह खुल जाएगा। वैसे सिर्फ मेरा नाम लिखकर पूछेंगे तो गूगल बाबा भी बतला देंगे, आखिर वे मेरे से मंथली वसूल करते हैं इसकी एवज में।
हटाएंअली जी लिंक तो यहीं रह गया। अब यहीं से ले लीजिए http://taau.taau.in/2009/08/blog-post_27.html
हटाएंअविनाश जी लिंक तो देख ली पर अब भी कहता हूं कि यह दायित्व संतोष जी का था :)
हटाएंअली जी ,आप सही फरमा रहे हैं पर हम हाथ खड़ा कर रहे हैं !
हटाएंमित्रता में प्रत्येक को पूरी तरह समर्पित रहना चाहिए। जिसको मौका मिले, अवसर हाथ लगे कार्य कर लेना चाहिए, मेरी नजर में अच्छी और सच्ची दोस्ती की परिभाषा यही है अली भाई।
हटाएंसंतोष जी, आप हाथ मत खड़े कीजिए, कीबोर्ड से चिपकाए रखिए जब अली जी के बारे में पोस्ट लिखवानी होगी, तब मैं आपसे ही संपर्क करूंगा।
बहुत याराना लगता है ... ;-)
जवाब देंहटाएंआपको और अविनाश भाई को मेरा प्रणाम और हार्दिक शुभकामनायें !
हाँ शिवम भाई,अपना याराना तो लेखकों के साथ ही है भले ही इसमें घाटा हो !!
हटाएंसादर !
यारी तो शिवम् भाई से इन सबसे पुरानी है लेकिन प्रकाशकों के साथ याराना निबाहने के लाभ ही लाभ हैं।
हटाएंआभार भाई !
हटाएंअविनाश जी से मुंबई में ब्लॉगर्स मीट में मिलना हुआ था, पहली बार मिले थे परंतु उनकी बातों से पता ही नहीं चला कि पहली बार मिले हैं।
जवाब देंहटाएंrochak aalekh hae.aabhar.
जवाब देंहटाएंभूमिका भाग में रहस्य रोमांच और फिर यादों के पितारों से निकला एक सहृदय दोस्त .
जवाब देंहटाएंअविनाशजी हमें डरा-डरा के हंसाते हैं इसलिए यह शैली अपनाई !
हटाएंआत्मीयता से भरी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपकी आत्मीयता तो हम कभी भुला न पाएंगे।
हटाएंजाने भी दो यारों !!
हटाएंआत्मीयता की सोंधी गंध आ रही है पोस्ट में ... अविनाश जी को कौन नहीं जानता ब्लॉग जगत में ...
जवाब देंहटाएं..अभी भी कई लोग हैं जो इनकी कृपा से च्युत हैं !
हटाएंअविनाश जी मददगार ब्लोगर है!...वे खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी है और मेरे परिचित है!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अरुणा जी
हटाएंआत्मीयता भरी प्रभावी ॠणानुबंधी!!
जवाब देंहटाएंबिना अनुबंध के ही फंस गए अविनाश जी !
हटाएंफंस नहीं गए
हटाएंबंध गए
यह बंधन है कैसा ?
इसीलिए ॠणानुबंध कहा, यह बन्धन है ऐसा
हटाएंआज ही दिल्ली के कॉफी होम में अविनाश जी और संतोष त्रिवेदी की एक झलक देखी है।
जवाब देंहटाएंदिल्ली में तो यह खतरा हो सकता है। दो ब्लॉगर कॉफी पीकर लौटे तो तीसरे ने उन पर पोस्ट लिख दी..! पकड़े गये घर में:)
हटाएंदेवेन्द्र जी,राजेश उत्साही जी के साथ पूरी गोल थी.जमघट था ब्लॉगरों का !
हटाएंफेसबुक पर पूरी दुकान सजी है। आकर देख लीजिएगा http://www.facebook.com/avinashvachaspati
हटाएंआप समस्त मित्रों का अति-स्नेह तारीफ को स्वर दे रहा है। असलियत जानने के लिए अरुण चन्द्र राय, ज्योतिपर्व प्रकाशन से अवश्य बात करके स्थिति साफ कर लीजिएगा।
जवाब देंहटाएंछड्डो भी यार...!
हटाएंअविनाश जी से कौन परिचित नहीं , लेखन से इतर उनके व्यक्तित्व को जानना अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंअविनाश जी का परिचय आपकी कलम से अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंआत्मीय परिचय!! संस्मरणात्मक आलेख!! हम भी फैन हैं इनके!!
जवाब देंहटाएंहमें मालूम हैं आप बड़े वाले 'फैन' हैं !
हटाएंये फैन को इनवर्टेड कॉमा में काहे रख दिए हैं माट्साब!! :)
हटाएं..क्योंकि यह ओरियंट का पीएसपीओ मॉडल है !
हटाएंअविनाश जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम सब की शुभ कामनाएँ... ब्लागिंग मे नाम और नाम से ज़्यादा स्वास्थ्य कमाएं यही हमारी कामना है
जवाब देंहटाएंhttp://blognama.feedcluster.com/
जवाब देंहटाएंरजिस्टर कर दिया है जी...!
हटाएंत्रिवेदी जी आपकी यह रचना रेखाचितरो की श्रेणी में आती है एक अच्छी प्रस्तुति अविनाश जी के व्यक्तित्व के कई पहलुओ पर अच्छा प्रकाश डालती है
जवाब देंहटाएंआभार भाई !
हटाएंअविनाश जी की सेहत ठीक रहने के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंफ़ोटो चकाचक आई है।
हां एक शुभकामना और कि अविनाश जी को प्रकाशक से अपनी किताब की प्रतियां लागत मूल्य पर मिलने में सफ़लता मिले। :)
आपकी शुभकामनाओं का बेसब्री से इंतज़ार था...! आभार !
हटाएंआपने जो भी लिखा, मै आपसे सहमत हू, ........बड़े दिल के आदमी है वाचस्पति जी . मै भी जब उनसे मिला , बहुत ख़ुशी हुई .एकदम सरल और दूसरो की सहायता के लिए हमेशा तत्पर. .......नमन.
जवाब देंहटाएंअरे हम तो समझे थे ये बस हमें ही फंसाये हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत शातिर निकले ये तो आपको भी बनाये हैं !!