चुभ रही हर बात हमको ,
कुछ नहीं परवाह उनको ,
मेरे हिस्से में अँधेरा ,
धूप की बौछार उनको !(१)
मौसम हुआ है फगुनई,
रुचियाँ बदलतीं नित नई,
हमने भी कोई चाह की,
तो कहानी बन गई ?(२)
हर ख़ुशी उनको मिले,
हार सब उनके गले,
हम लगाकर टुकटुकी
सिर्फ देखें,तो भले !(३)
अन्याय ये अब दूर हो,
सपना तो कोई पूर हो,
जाम खाली है मेरा,
तुम नशे में चूर हो ?(४)
अपनी तो आदत रही,
हमने चुप कर सब सही,
इतने सूरज रख लिए
इक किरन मेरी नहीं ! (५)
और यह रहा अपने अली साहब का जवाबी हमला !
एक मीठी सी चुभन
बस छांह में घर बार अपना
धूप की बौछार पाकर
जल उठे संसार उनका (१)
गर बदलती आरजूएं
अपना हर पल भी नया है
चाहतों के सिलसिले से
हर कथा में ठन गई है (२)
हर खुशी उनको मिले तो
हर पराजय भी उन्हीं की
आपकी टुकटुक से यारब
उनका बंटाधार होगा (३)
अपने हिस्से की पिला के
होश उनके छीन,कहते
जाम मेरा रिक्त सा है
मुझसे ये अन्याय क्यों है (४)
अपनी तो आदत यही है
चुप रहो लड़वाओ उनको
सूर्य किरणे वो संभाले
हमको छाया ही भली है (५)
पराजय = हार
और ई ल्यो अपने बिहारी बाबू सलिल वर्माजी भी कूद पड़े !
उनकी हर रात
दीवाली में गुज़र जाती थी
हमने इक बल्ब चुराया
तो बुरा मान गए! |१|
/
बदले मौसम चाह बदली
पर कहानी है वही
उनका गुस्सा है कि
अपनी पार्टनर क्यूँ है नई!|२|
/
हर खुशी उनको मिले
जीवन में उनके नूर है,
वे बेचारे कह रहे हैं
खट्टे सब अंगूर हैं.|३|
/
जाम सडकों पे औ ब्रेड पे
देखते हम रह गए,
और हमारे दिल के अरमां
आंसुओं में बह गए!|४|
/
इक किरण उम्मीद की
फूटी नहीं, थी बुज़दिली
हाथ रक्खे हाथ पर
वो दोस्त के संग फूट ली!|५|
और यह रहा अपने अली साहब का जवाबी हमला !
एक मीठी सी चुभन
बस छांह में घर बार अपना
धूप की बौछार पाकर
जल उठे संसार उनका (१)
गर बदलती आरजूएं
अपना हर पल भी नया है
चाहतों के सिलसिले से
हर कथा में ठन गई है (२)
हर खुशी उनको मिले तो
हर पराजय भी उन्हीं की
आपकी टुकटुक से यारब
उनका बंटाधार होगा (३)
अपने हिस्से की पिला के
होश उनके छीन,कहते
जाम मेरा रिक्त सा है
मुझसे ये अन्याय क्यों है (४)
अपनी तो आदत यही है
चुप रहो लड़वाओ उनको
सूर्य किरणे वो संभाले
हमको छाया ही भली है (५)
पराजय = हार
और ई ल्यो अपने बिहारी बाबू सलिल वर्माजी भी कूद पड़े !
उनकी हर रात
दीवाली में गुज़र जाती थी
हमने इक बल्ब चुराया
तो बुरा मान गए! |१|
/
बदले मौसम चाह बदली
पर कहानी है वही
उनका गुस्सा है कि
अपनी पार्टनर क्यूँ है नई!|२|
/
हर खुशी उनको मिले
जीवन में उनके नूर है,
वे बेचारे कह रहे हैं
खट्टे सब अंगूर हैं.|३|
/
जाम सडकों पे औ ब्रेड पे
देखते हम रह गए,
और हमारे दिल के अरमां
आंसुओं में बह गए!|४|
/
इक किरण उम्मीद की
फूटी नहीं, थी बुज़दिली
हाथ रक्खे हाथ पर
वो दोस्त के संग फूट ली!|५|
किरन ,तू है मेरी किरन .....जाय संतोष बाबा की!
जवाब देंहटाएंधन्य हो महाराज...आपको तो बस एक ही बात समझ आती है !
हटाएंशुक्रवार के मंच पर, तव प्रस्तुति उत्कृष्ट ।
जवाब देंहटाएंसादर आमंत्रित करूँ, तनिक डालिए दृष्ट ।।
charchamanch.blogspot.com
आभार !
हटाएंशिकायतें.. ताने.. कभी कभी भले लगते हैं
जवाब देंहटाएं...मगर यदि वह प्रेम के हों !
हटाएंआयं हम तो यही सुन सुन बड़े हुए कि ....
जवाब देंहटाएंजादूऽऽऽ तेरी नजर ...खुशबू तेरी किरन
तू हाँ कर या ना कर , तू है मेरी किरन
पर हियाँ तो मामला कुछ औरे लग रहा :)
मामला तो औरे है..पर कुछ लोग औरे समझ रहे हैं !
हटाएंयह भी समझ का ही मसला ही है :)
हटाएंवह भी अपनी-अपनी !
हटाएंमौसम हुआ है फगुनई,
जवाब देंहटाएंरुचियाँ बदलतीं नित नई,
हमने भी कोई चाह की,
तो कहानी बन गई ?
क्या बात है संतोष जी!!! बहुत सही शिक़ायत.
कुछ इस तरह कि- खामोश रहूं तो मुश्किल है, कह दूं तो शिकायत होती है.....
आभार आपका !
हटाएंसंतोष जी,...किस किरन की बात कर रहे है....:)
जवाब देंहटाएंठाकुर साहब,यह देश,काल,समाज की बात भी तो हो सकती है !
हटाएंसुंदर कविता, नेताओं को लक्ष्य करती हुई।
जवाब देंहटाएं------
..की-बोर्ड वाली औरतें।
जाकिर भाई, नेता लोग आजकल वैसे ही हलकान हुए घूम रहे हैं,हम काहे उन्हें और तकलीफ देंगे ?
हटाएंएक मीठी सी चुभन बस
जवाब देंहटाएंछांह में घर बार अपना
धूप की बौछार पाकर
जल उठे संसार उनका (१)
गर बदलती आरजूएं
अपना हर पल भी नया है
चाहतों के सिलसिले से
हर कथा में ठन गई है (२)
हर खुशी उनको मिले तो
हर पराजय भी उन्हीं की
आपकी टुकटुक से यारब
उनका बंटाधार होगा (३)
अपने हिस्से की पिलाके
होश उनके छीन,कहते
जाम मेरा रिक्त सा है
मुझसे ये अन्याय क्यों है (४)
अपनी तो आदत यही है
चुप रहो लड़वाओ उनको
सूर्य किरणे वो संभाले
हमको छाया ही भली है (५)
पराजय = हार
अली साब,यह आप ही हैं,जिनकी वज़ह से मैं इस 'साहित्यिक-मोड'(मूड नहीं)में आ गया हूँ.आपने दिल शाद कर दिया !
हटाएंआपका जवाब हमारी कबिताई पर हमेशा भारी पड़ता है.मैंने इसे ऊपर टांग दिया है !
आपका आभार !
क्या जवाबी शेरो शायरी चल रही है -खाव्जा साहब की दरगाह की जवाबी कौवाली याद आयी ! :)
जवाब देंहटाएं...मतलब आपको अब यह कव्वाली नज़र आ रही है !!
हटाएंवाह गुरुजी !
उनकी हर रात
जवाब देंहटाएंदीवाली में गुज़र जाती थी
हमने इक बल्ब चुराया
तो बुरा मान गए! |१|
/
बदले मौसम चाह बदली
पर कहानी है वही
उनका गुस्सा है कि
अपनी पार्टनर क्यूँ है नई!|२|
/
हर खुशी उनको मिले
जीवन में उनके नूर है,
वे बेचारे कह रहे हैं
खट्टे सब अंगूर हैं.|३|
/
जाम सडकों पे औ ब्रेड पे
देखते हम रह गए,
और हमारे दिल के अरमां
आंसुओं में बह गए!|४|
/
इक किरण उम्मीद की
फूटी नहीं, थी बुज़दिली
हाथ रक्खे हाथ पर
वो दोस्त के संग फूट ली!|५|
बहुत मजा आ गवा सलिल बाबू....आपको भी उपरवा में टांग दिहे हैं !
हटाएंआभार !
गज़ब :)
हटाएंवाह क्या बात है, मैं कहीं कवि न बन जाउं.
जवाब देंहटाएंराहुलजी,आप पहले से ही कवि-ह्रदय हैं !
हटाएंवाह ...बहुत ही बढिया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सदा जी !
हटाएंअपनी तो आदत रही,
जवाब देंहटाएंहमने चुप कर सब सही,
इतने सूरज रख लिए
इक किरन मेरी नहीं ! (५)
....बहत खूब! बहत सुंदर प्रस्तुति..
आभार जनाब !
हटाएंमौसम हुआ है फगुनई,
जवाब देंहटाएंरुचियाँ बदलतीं नित नई,
हमने भी कोई चाह की,
तो कहानी बन गई ?(२)
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
धन्यवाद संजय भाई !
हटाएंजाम खाली है मेरा,
जवाब देंहटाएंतुम नशे में चूर हो ?
वाह वाह ! क्या बात है !
मुफ्त की ग़र मिले साकी
मज़ा पीने का भरपूर हो ।
डॉ. साब,आपकी नज़रे-इनायत खास पंक्तियों पर है,इसका भी कोई सबब है !
हटाएं'त्री' कलाबाजी से 'या' पोस्ट कलाबत्तू हो गई है। कोई कलावंत मिले तो कलावा काटें।:)
जवाब देंहटाएंकलाबत्तू...रेशम पर बटा हुआ सोने चाँदी का तार।
हटाएंकलावंत....गवैया
कलावा.....वह डोरा जो विवाह आदि अवसरों पर हाथ पर बांधते हैं।
वाह देवेन्द्र जी....'त्रिया' को बताने और कलाबत्तू,कलावंत व कलावा की व्याख्या के लिए आभार !
हटाएंबकिया,अली साब बताएँगे इस कलाकारी के बारे में !
देर से पढने का फायदा है ...एक के साथ दो मुफ्त की स्कीम जैसा !!
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताई !
हाँ वाणी जी....लेकिन जो लोग शुरू में आते हैं वो लाइव-कास्ट का मजा पाते हैं !
हटाएंहमारे दिल का हाहाकार यहाँ मचा हुआ है और हमें ज्ञात ही नहीं। सबने तो अपनी सुना दी, सब में हमारी भी शामिल थी।
जवाब देंहटाएंबिलकुल जी ,इस आवाज में आपका हाहाकार भी शामिल है !
हटाएंसर जी , आप जो भी 'चाह' करेंगे उसे कहानी बनने से कोई नहीं रोक सकता है क्योंकि आप ' चाह' ही ऐसी करते हैं !
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा भाई !
हटाएंवाह! बाइ वन गेट टू फ़्री वाली बात हो गयी, एक पोस्ट में तीन कवि!
जवाब देंहटाएं...और यह स्कीम अभी खत्म नहीं हुई है !
हटाएंहम रह गये अपनी सुनाने से...खबर तो कर देते कि इतना बड़ा दंगल आयोजित किया है. :)
जवाब देंहटाएंभाई जी,आपको दंगल में बुलाकर किसको पटखनी खानी थी !!
हटाएंbahut khoob :)
जवाब देंहटाएंआभार...!
हटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंलोग झगडें..और अपन दूर खड़े तमाशा देखें..क्या आनंद है..
:-)
बहुत बढ़िया..
शुक्रिया आपका..
आपका आभार विद्या जी !
हटाएंsuraj itne sare , kiran ek bhi apni nhi... very nice.
जवाब देंहटाएंआभार रुचिजी ...!
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