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17 नवंबर 2011

प्राइमरी का मास्टर :मेरे नज़रिए से !

प्राइमरी का मास्टर का प्रतीक-चिह्न 
ब्लॉग-जगत के चर्चित ब्लॉग्स का  जब भी ज़िक्र होगा,तो प्राइमरी का मास्टर  का एक अहम स्थान ज़रूर रहेगा. पिछली पोस्ट  में हमने अपनी ब्लॉगिंग को गतिमान बनाने व मुख्यधारा में आने के प्रयासों व उपायों के लिए  प्रवीण त्रिवेदी जी  के योगदान की चर्चा की थी .इसके लिए मैं पिछले कुछ समय से सोच रहा था और उस पोस्ट के बहाने उनका मूल्यांकन कतई नहीं करना चाहता था.मैं प्रवीण जी की  तकनीकी सलाहों का बहुत आभारी रहा हूँ और वह पोस्ट महज़ आभार-प्रकटन हेतु थी .फिर भी,डॉ.अरविन्द मिश्र इंदु पुरी जी  और सबसे ज़्यादा अपने  अली साहब  ने मुझे इतना लठियाया  कि प्रवीण जी के बारे में ,उनके ब्लॉग (प्राइमरी का मास्टर ) के बारे में  कुछ और कहूँ  !इस पर  अली साब की टीप जेरे-गौर है,जिसने मुझे  इस पोस्ट  के  लिए प्रेरित किया :



ali ने कहा…
@ संतोष जी ,
अब जब लगभग सारी टिप्पणियां आ चुकी हैं तो कहने में कोई हर्ज नहीं है कि प्रवीण जी पे पोस्ट लिखते वक़्त आपने किंचित हडबडी से काम लिया है ! हुआ ये कि जो उनके गुण दिखने चाहिए वे ही निगेटिव शेड्स की प्रतीति कराने लगे ! अगर कोई बंदा उन्हें पहले से ना जानता हो तो उनके बारे में क्या सोचेगा ? यही कि लंद फंद और ब्लॉग जगत की खुराफातों का आशना या निष्णात व्यक्ति जबकि भाव ये आना चाहिये थे कि उन्होंने आपको ब्लॉग जगत के निगेटिव अंडर करेंट से सतर्क किया ! आपको तकनीकी रूप से सक्षम किया !

बेहतर होता जो एक नवोदित ब्लागर बतौर ही सही उनके किसी बेहतरीन आलेख का लिंक ही दे देते जिसकी वज़ह से आप उनके ओर आकर्षित हुए,उनसे प्रभावित हुए ! खैर अब तो आलेख दो तीन दिन पुराना हो गया सो मेरे सुझावों का कोई मतलब ही नहीं रह गया पर उस दिन उसे पढकर मैं खुद भी हतप्रभ रह गया था ! वे मास्टर हैं , गुणी है इसलिए उन्होंने आलेख की हडबडाहट को महसूस कर लिया होगा वर्ना उनको इससे बेहतर आलेख का हक़ बनता है !

अब चलते चलते एक मजाक...मित्रों को लठियाने से बेहतर है कि उनका लठैत बनके चला जाये :) 




प्रवीण त्रिवेदी जी 


प्रवीण जी जितने बड़े तकनीकी-महारथी हैं उससे भी बड़े पोस्ट-लेखक ! तकनीक की उनकी पोस्टें तो कमाल की हैं हीं,शिक्षा और बच्चों के मनोविज्ञान को उनने बड़े ही उम्दा तरीके से प्रकट किया है !पहले उनके लेखों की विषय-वस्तु और भाषा शैली की बानगी देखते हैं :


इस पोस्ट से उद्दृत ;


.... कक्षा का ढांचा प्रजातांत्रिक हो जिसमें सभी सदस्य अपने आप को स्वतन्त्रजिम्मेदार और बराबर पायें। सभी को अपनत्व महसूस हो और लगे कि यह कक्षा उनकी अपनी है। अध्यापक को लगे कि यह बच्चे उनके अपने हैं और बच्चों को भी महसूस हो कि अध्यापक उनके अपने हैं और सभी को लगे कि विद्यालय उनका अपना हैजैसा कि उनका अपना घर। कक्षा में  आपसी सम्मानप्रेम तथा विश्वास के रिश्तों का एक सूक्ष्म जाल हो जिसमें कक्षा के सभी सदस्य खुशी से सीखें और सीखायें।


एक अन्य पोस्ट से ;

एक अध्यापक या बच्चे के संरक्षक के रूप में हमें कोशिश करनी चाहिए कि बच्चा अपने अनुभवों को हमारे सामने प्रकट कर सके ...यह तभी हो सकता जब हम उसे उसके अपने बारे में उसे बात करने का अवसर दें| अध्यापक के रूप में हमें यह पूर्वाग्रह हटाना पड़ेगा कि बच्चे की घरेलू और निजी जिन्दगी के अनुभवों का विद्यालयी ज्ञान से कोई अंतर्संबंध नहीं है| जाहिर है .... ऐसे प्रोत्साही माहौल  में ही बच्चे निःसंकोच अपनी बात कह पाने में समर्थ हो सकेंगे| ऐसे माहौल को बनाने केलिए बच्चों एवं शिक्षकों के बीच अपनत्व एवं सहयोगी मित्र का रिश्ता कायम होना अति आवश्यक है। 


उक्त दोनों लेख उम्दा शिक्षण-तकनीक और बाल-मनोविज्ञान  को सही ढंग से समझने के उदाहरण हैं.इन लेखों और ऐसे  अन्य लेखों ने प्रिंट मीडिया   में भी खूब जगह पाई !एक उल्लेखनीय बात यह भी रही कि 'जनसत्ता' ने अपने चर्चित स्तंभ "समान्तर' की शुरुआत ही प्रवीण जी के लेख से करी !

पिछले काफी समय से उनकी कोई पोस्ट नहीं आ रही है,इस पर मैंने जब भी उनसे कहा तो उनका ज़वाब था,"आप जमे रहो महराज,मैं अभी कुछ दिन आराम के मूड में हूँ." इस बीच ऐसा नहीं है  कि वे बिलकुल निष्क्रिय बैठे हैं. गूगल-रीडर और ट्विटर पर चुनिन्दा लेखों या ट्विट्स  को शेयर करना ,महत्वपूर्ण पोस्टों पर टीपना वे लगातार जारी रखे हैं !फेसबुक पर भी ज़नाब खूब सक्रिय रहते हैं ! वे यहाँ  फतेहपुर पेज बनाकर उसमें काफी समय दे रहे  हैं.

इस ब्लॉग-जगत में  कई वरिष्ठ ब्लॉगर हैं जो मुझसे ज्यादा उनको और उनके लेखन-कौशल को जानते हैं.इसलिए अगर उनकी तकनीक और लेखन-कला पर वे लोग कुछ कहें  तो अधिक उपयुक्त होगा ! मैं उन्हें एक अच्छे ब्लॉगर के साथ-साथ सुहृद के रूप में भी मानता हूँ.अब इस पोस्ट के माध्यम से उनसे भी निवेदन है कि प्राइमरी का मास्टर ब्लॉग को पुनः नियमित रूप से पोस्ट-लेखन करें,ताकि तकनीक और शिक्षा सम्बन्धी मार्गदर्शन से हम वंचित न रहें !

प्रवीण त्रिवेदी जी के लिए कुछ वरिष्ठ लोगों का आग्रह कि उनके बारे में और कहा जाय ,यह बताता है कि उनको लेकर लोगों में किस तरह की ललक और  कृतज्ञता का भाव है ! इस ओर मैंने महज एक शुरुआत की है,प्रयास भर किया है ! मुझे लगता है कि अली साब इत्ते  भर से मुतमईन होने वाले नहीं हैं !

एक 'उदीयमान  या  नवोदित ' ब्लॉगर  का  विनम्र -प्रयास  !

19 टिप्‍पणियां:

  1. शिक्षा से सम्बन्धित कई विचार प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित हैं और अपना अलग स्थान रखते हैं। हम नियमित लाभान्वित होते रहते हैं।

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  2. बात तो सभी सही है लेकिन एसएमएस और फेसबुक भी तो हमारे ही जीवन का एक सक्रिय हिस्‍सा बन गए हैं।

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  3. मित्रों को लठियाने से बेहतर है कि उनका लठैत बनके चला जाये :)

    सहमत हूँ
    । आपको और मास्साब को एक बार फिर शुभकामनायें!

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  4. पुनः लिखना ही था इस शख्सियत पर ...अच्छा किया ..मैं खुद भी इसलिए नहीं लिख पाया कि वे सच में आपन तेज सम्भालौ आपे वाली कोटि के नर पुंगव हैं (कोई श्लेष नहीं ) उन पर लिखा जोखिम भरा है ..बहरहाल आपने बहुत संभाला है और एक बड़े उत्तरदायित्व का निर्वहन किया... आभार!

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  5. दोनो पोस्टें पढ़ीं। प्रवीण जी के स्नेह से अपन अभी वंचित हैं। आप किस्मत वाले हैं।

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  6. बहुत सुन्दर ||

    दो सप्ताह के प्रवास के बाद
    संयत हो पाया हूँ ||

    बधाई ||

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  7. @अरविन्दजी मैंने पहली पोस्ट लिखी थी ,बिना जोखिम लिए क्योंकि वह व्यक्तिगत सद्भाव पर ज्यादा आधारित थी,मूल्यांकन पर नहीं.हाँ,इस पोस्ट में ज़रूर आपकी और खासकर अली साब की उम्मीदों का साया था,पर साब टिटहरी तो उतना ही उड़ सकेगी,जितना उसका आकाश होगा !
    यह पोस्ट भी प्रवीण जी का एक-आध कोना भर देख पाई है !

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  8. मुझे लगता है कि मित्रों के परिचय की यही शैली उचित है ! आपने प्रवीण जी को परत दर परत उजागर करना शुरू किया तो अपरिचित से कुछ पहलू भी सामने आये ,मसलन हमें पता था कि वे फतेहपुरिया है और ब्लागर भी ,लेकिन तकनीकी रूप से सिद्धहस्त है ये राज पिछली पोस्ट में आप और अरविन्द जी ने खोला ! प्रविष्टि में दिए गये लिंक पढ़ रहा था तो एक आश्वस्ति सी हुई ! वे बच्चों से अपनेपन के जिस लेवल पर संवाद की बात कहते हैं वो तर्क , वो अपेक्षा , हमें अत्यधिक प्रिय है ! अपना मानना है कि सम्यक ज्ञान का सम्यक हस्तान्तरण इन्हीं परिस्थितियों में संभव हो सकता है !

    हम गरियाते रहे हैं कि प्राथमिक स्तर से ही कचरे की आपूर्ति हम तक हो रही है तो हम पीढ़ियों के युवापन को क्या ख़ाक परवान दें ! पर प्रवीण जी के ख्यालात एक उम्मीद जगाते हैं कि अगर उन जैसे मुट्ठी भर भी हों तो हमें मजबूत बुनियाद की ऊपरी मंजिलें गढ़ने में किस कदर सहूलियत हो जायेगी !

    एक ब्लागर ,गूगलिटेरियन :) बतौर प्रवीण जी की तारीफ ही करेंगे पर एक हल्की सी शिकायत भी है कि वे लिंक बिखेरते समय यदा कदा विचार से अधिक मित्रता को आगे कर बैठते हैं ! अगर मैं भूला नहीं हूं तो एक दो बार मुझे ऐसा लगा कि अरे , यह प्रविष्टि तो अपशब्दात्मक और अशालीन कोटि की है फिर प्रवीण जी ने इसका लिंक
    क्यों दिया है ?
    याद आया तो हवाला भी दूंगा पर फिलहाल कहना ये है कि दूसरों की नंगई अपने सिर क्यों लेना :)

    शुभकामनाओं सहित !

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  9. अली जी का शंका समाधान प्रवीण जी करें यही प्रतीक्षा है !
    बाकी ब्लागजगत के तीन प्रवीण हैं -प्रवीण पांडे ,प्रवीण शाह और प्रवीण त्रिवेदी ! और तीनों की अपने तई कोई सानी नहीं !

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  10. प्रवीण जी की पोस्टें यदा कदा पढ़ते रहता हूं।

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  11. @ अली साब आपने जिस सूक्ष्मता से प्रवीण जी को देखा है वो नज़र हमारे पास न थी.दोनों पोस्टों पर आपकी टीपें हमारी पोस्ट पर भारी पड़ी हैं,पर इसी बहाने ही सही ,प्रवीण जी को हम सब 'मिस' तो करते ही हैं!
    प्रवीणजी के दूसरे पहलू ,जिसका ज़िक्र आपने किया है,उससे दो-चार नहीं हुआ हूँ,इसका ज़वाब वे ही दें तो अच्छा है .

    @अरविन्द जी आपके आकलन से सहमत...तीनों ही प्रवीण हैं !

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  12. @अरविन्द मिश्र जी !
    अर्रर्ररे इतना जोखिम किस बात का और क्यूंकर?


    @देवेन्द्र पाण्डेय जी !
    हा हा जल्दी ही स्नेह का सीरा (रसगुल्ले वाला) लेकर हाजिर होयेंगे ....आपके द्वारे ! रूचियाँ बदलती रहती हैं ...सो व्यस्तता के बहाने यही सही .....सो आजकल सुषुप्तावस्था में हैं अपन



    @संतोष जी !
    मुझे लगता है कि अली जी जिस उम्मीद में हैं .....उसमे आप अब तक असफल रहे हैं ......और शायद मैं भी उसी उम्मीद में हूँ .....और शायद राजा सुबह-ए-बनारस भी .....:-)

    ई टिटहरी को थोडा खिलाओ -पिलाओ भैया !!!!

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  13. @अली जी !
    वे फतेहपुरिया है और ब्लागर भी ,लेकिन तकनीकी रूप से सिद्धहस्त है
    ~ इसे रूचि से ज्यादा का मामला नहीं समझा जाना चाहिए! अपनी अपनी रुचियों में लोग दिन-प्रतिन समर्थवान होते देखे गएँ हैं...इस बारे में भी कुछ ऐसा ही समझा जाना चाहिए|


    एक हल्की सी शिकायत भी है कि वे लिंक बिखेरते समय यदा कदा विचार से अधिक मित्रता को आगे कर बैठते हैं ! अगर मैं भूला नहीं हूं तो एक दो बार मुझे ऐसा लगा कि अरे , यह प्रविष्टि तो अपशब्दात्मक और अशालीन कोटि की है फिर प्रवीण जी ने इसका लिंक क्यों दिया है ? याद आया तो हवाला भी दूंगा


    हालाँकि यह उत्तरदायित्व (...शायद इसे चुनौती कहना ज्यादा उचित हो? )शायद ही कोई लेना चाहे पर हिन्दी ब्लॉग जगत से बाहर (सोशल नेट्वर्किंग साइट्स में भी मैं दोनों हाथों से यह आरोप सहने को कतई तैयार नहीं हूँ कि केवल मित्रता के लिए मैंने किसी लिंक को आगे बढ़ाया हो!

    हो सकता है कि किसी लिंक में कोई अपशब्द रहे हों ....पर उसमे कुछ ना कुछ ऐसा जरुर रहा होगा ...जिसके कारण मुझे ऐसा लगा होगा कि इसे और लोगों के समक्ष रखना (जाना) चाहिए| बड़ी विनम्रता से निवेदन है कि आप याददाश्त पर जोर डालें और लिंक ढूंढें .....क्योंकि इसके बगैर बात आगे बढ़ाना तार्किक नहीं होगा!!



    ...पर फिलहाल कहना ये है कि दूसरों की नंगई अपने सिर क्यों लेना :)


    एक शुभचिंतक होने के नाते निश्चित रूप से आप का यह कहना उचित है ....पर एक विचारक के तौर पर मैं किसी पूर्वाग्रह के खिलाफ हूँ| हालाँकि बात फिर बगैर आपके उस उदाहरण के यही छोडना ही ठीक होगा ....:-)

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  14. @ प्रवीण जी १,
    आपके तकनीकी सामर्थ्य की बात हमने अरविन्द जी और संतोष जी से ही जानी ! जैसा कि आपने कहा , इसे रूचि का ही मामला माना गया है :)

    @ प्रवीण जी २,
    "अगर मैं भूला नहीं हूं तो एक दो बार मुझे ऐसा लगा कि अरे,यह प्रविष्टि तो अपशब्दात्मक और अशालीन कोटि की है"

    दिक्कत यही है कि सैकड़ों / हजारों में से ये एक दो बार वाले लिंक निगाहों से गुजरे तो हैं पर पक्की पकड़ में आयें तो कहूं ,बस इन्हीं के कारण मित्रता को आगे रखने वाली कही ! अब जब आपने कह दिया कि विचार ही प्रधान है तो मान लिया :)

    मुझे लगता है कि तब मैंने सम्बन्धित ब्लागर से उनके ब्लाग पर जाकर यही आपत्ति जताई थी ! बतौर लेखक उन्होंने मेरी बात का खंडन भी नहीं किया ! समय काफी हुआ लिंक ढूंढ पाऊं तो दूं !

    खैर जो कहा यादों के हवाले से कहा , इसे अन्यथा ना लिया जाये :)

    @ प्रवीण जी ३,
    विचार पर कोई पूर्वाग्रह नहीं ! शुभचिंताओं पर कायम रहूँगा :)

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  15. @अरविन्द मिश्र जी !
    ब्लागजगत के तीन प्रवीण हैं -प्रवीण पांडे ,प्रवीण शाह और प्रवीण त्रिवेदी ! और तीनों की अपने तई कोई सानी नहीं !

    आखिर अपने नाम की भी लाज रखनी ही पड़ेगी ही ......खैर शेष दोनों प्रवीणों की प्रवीणता के हम भी कायल हैं!



    @मनोज जी
    काश कि यह सदा सदा हो सकता ?....:-)


    @संतोष जी !
    दोनों पोस्टों पर आपकी टीपें हमारी पोस्ट पर भारी पड़ी हैं,

    इसमें कोई सन्देश नहीं कि अपनी टिप्पणियों से अली जी ने दोनों पोस्ट में आपको नचा के रख दिया है .....गाइए अब ....बहुते नाच नचायो !

    यही है ब्लॉग्गिंग की ताकत कि जिसमे आप पूरे बल से कोई तथ्य सार्वजनिक रूप से चस्पा करने की कोशिश नहीं कर सकते ......यहाँ हम सब आपका तिया पांचा करने को तैयार बैठे जो हैं अपनी टीपों से .....................हा हा .....:-)


    जय जय महाराज ......सुषुप्तावस्था से जाग्रत अवस्था की ओर खींचने की कोशिश के लिए !!!

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  16. @अली साब!
    यादों के हवाले से कहा , इसे अन्यथा ना लिया जाये :)

    अन्यथा???.....सवाल ही नहीं उठता !



    विचार पर कोई पूर्वाग्रह नहीं ! शुभचिंताओं पर कायम रहूँगा :)

    स्वागत है श्रीमन!

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  17. @प्रवीण जी और अली साब आप दोनों का आभार,अब आप एक-दूसरे को बेहतर समझ सकेंगे !

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  18. टिप्पणी करना और पढ़ना दोनो लाभकारी रहा। परस्पर स्नेह देखा..मिला भी...आभार।

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  19. आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद

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