कैसा सुन्दर घर-आँगन था,गली-मोहल्ले सारे,
ठंडी-ठंडी हवा सुहानी ,प्यार से हमें दुलारे।
फूल महकते वन-उपवन में,अपनी बाँह पसारे
पशु -पक्षी चहके फिरते,बुझते मन के अंगारे।
पर्यावरण-प्रदूषण जबसे हुआ है इस दुनिया में,
घुट-घुट
कर सब साँस ले रहे, अपनी-अपनी कुटिया में।
घर-बाहर सब धुआँ भर गया , सड़कों में,गलियों में,
फूल-से नाज़ुक बच्चे बदले मुरझाई कलियों में।
वन-जंगल सब पेड़ कट रहे ,वीरानी सी छाई,
फ़सल उग रही नित भवनों की ,प्रकृति मौत को नियराई।
अब भी वक़्त संभल जाएँ हम , पर्यावरण शुद्ध कर लें,
ज़हरीले वायु-प्रदूषण से दिल्ली-प्रदेश मुक्त कर लें।।
विशेष-दिल्ली नगर निगम के शिक्षा -विभाग द्वारा पुरस्कृत (१९९६)
रचना काल-१२-१२-१९९६