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21 सितंबर 2019

ग़ज़ल

अनमने सब, जी नहीं बहला हुआ।
इस शहर में यह नया मसला हुआ।

आदमी है वो भी मेरी ही तरह
अब लगे है रोज़ वह बदला हुआ।

तुम भी इक दिन जान जाओगे उसे
शख्स वह चुप है अभी दहला हुआ।

मान और सम्मान भी बिकने लगा
नारियल और शॉल में घपला हुआ।

गर्दनें सबकी झुकी हैं सामने
इस जहाँ में बादशा पहला हुआ।

-संतोष त्रिवेदी

सुधारक: Siddheshwar Singh

दिल अकेला था बहुत मचला हुआ ।
आपसे मिलकर लगा बहला हुआ ।।

चाँद उसको कह दिया था एक दिन ।
रोज दिखता है हमें बदला हुआ ।।

कैद हैं खुशियां उसी के पास में ।
और पूरा गाँव है दहला हुआ ।।

बोलियाँ लगने लगी सम्मान की ।
आदमी अपमान में पतला हुआ ।।

गर्दनों पर धार है तलवार की ।
चाकुओं का जिस्म पर हमला हुआ ।।

एक लोई, एक बेलन आग भी ।
आदमी चूल्हा तथा चकला हुआ ।।

Brahma Dev Sharma जी का कमाल !

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