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19 अप्रैल 2015

तुम सोये हुए हो !

तुम सो गए हो
पर मेरी आँखों में नींद नहीं है।
मै अकेला नहीं हूँ फिर भी,
मेरे साथ चल रहे हैं रास्ते
खेत, नदी और जंगल।
तुम आ गए हो
पर बहुत कुछ रुका हुआ है अभी
खेत में कटी फसल
और अकेले खड़ा बिजूका,
घर में ताकती दो आँखें
थिर हो गई हैं मेरे साथ ही।
तुम घूम आए हो,
सात समंदर की सैर करके
मैं भी घूम रहा हूँ
धरती की धुरी के साथ-साथ
पर पूरा नहीं होता दिन
और गिर जाता हूँ चकरघिन्नी खाकर।
तुम नाचते-गाते हो,
यहाँ-वहाँ हाथ हिलाकर
तुम्हारे कटोरे में गिरते हैं
छन्न से डाॅलर,
चमकते हो 'टाइम' में अंकल सैम के साथ।
मैं बदहवासी के आलम में
मुट्ठी भर जमीन लिए
इधर-उधर भागता हूँ
हाथ में बचे हैं बस गुल्लक के पैसे
चुन्नू, मुनिया और उसकी अम्मा।
ये सब जाग रहे हैं मेरे साथ
आधी रात के बाद
आसमान में बचे तारे और दूर जाता चाँद।
कुछ लोग कहते हैं 'टाइम' खोटा है अभी
सो जाओ तुम भी गहरी नींद में,
पर हम जागे हुए हैं
सूरज निकलने के इंतजार में,
और हमारे साथ बची हुई हमारी आत्मा।




..... पटरियों पर धड़धडा़ती जाती श्रमशक्ति एक्सप्रेस, समय आधी रात के बाद का, इटावा के आसपास।तारीख...१७ अप्रैल २०१५

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