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2 सितंबर 2013

बाबा के रंग अनेक !

चौदह दिन बैकुंठ में,रहे अप्सरा संग।
बाबा पूर्ण पवित्र हो,नहीं शील हो भंग।।:)


चोला ओढ़े संत का, सीख जगत को देत।
पुड़िया बेचें धरम की,जनता बनी अचेत।
जनता बनी अचेत,हो रहे हैं सब अन्धे।
नेता, बाबा संग,चलातेअपने धन्धे।
ईश्वर भी हैरान,देख मन ही मन बोला।
मनुज नहीं ये निसिचर, धारे नकली चोला।।


मुझे सहानुभूति है उस नाबालिग से
जिसने हैवानियत की मिसाल कायम की,
मुझे दया आती है उस बाबा पर
जिसने संतई पर कालिख पोत दी,
मुझे सहानुभूति है हर उस मानव से
जिसने मानवता खोकर
व्यर्थ कर दिया अपना सृजन,
नष्ट कर दिया सृष्टि की अनुपम कृति,
और करा दिया अहसास अपने बीज का।
मुझे सहानुभूति है उसके निर्माता से,...
उसके पालकों और सेवकों से,
दुनिया के सबसे गरीब और असहाय
इस समय वे ही हैं।



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