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10 मार्च 2013

राम और शिव की महत्ता !

राम हमारे जीवन के आधार रहे हैं.वे हमारी जीवन-शैली और संस्कृति के अंग हैं.शिव एक सर्वकालिक अभिभावक की तरह हमारी रक्षा करते हैं.ये हमारे आर्त-क्षणों में सहायक होते हैं.हमारे ध्यान में शिव चाहे हमेशा न रहें पर उनकी चिंताओं में हम हमेशा रहते हैं.शिव बिना देरी किये प्रार्थना सुनते ही तत्काल निदान करते हैं.इसलिए राम और शिव अलग हैं ही नहीं.बस दोनों की भूमिकाएं अलग हैं.

सामान्यतः हमारे अंतर्मन में राम की ऐसी छवि बसती है जो हमें सहज मानव बनाती है.वह मानव सहिष्णु होता है,जीवन और पारिवारिक संबंधों को समझता और मानता है.राम को मानने वाला किसी से द्रोह नहीं करता.वह अपने ऊपर किये गए प्रहारों को भी शमन करता है.वह अपने जीवन से कहीं अधिक संबंधों को प्राथमिकता देता है.राम इस तरह मानव को जीवनपर्यंत गढ़ते हैं.

शिव का सामान्य अर्थ कल्याणकारी होता है,सबका भला करने वाला.वे वास्तव में हमारे लिए आपदा-प्रबंधन की तरह हैं.जिस तरह बच्चा भले ही पिता के साथ खेले-कूदे पर चोट लगते ही वह माँ को पुकारता है,उसी तरह शिव संकट-काल में हमें याद आते हैं.यहाँ पिता की भूमिका राम जैसी मानी जा सकती है.शिव अपने बालक की सहायता के लिए हर क्षण तत्पर रहते हैं.इसलिए हम जीवन के सबसे आर्त-क्षणों में उन्हें ही याद करते हैं और वे अपने नाम 'आशुतोष ' और 'अवढरदानी' को सार्थक करते हैं.

यहाँ राम और शिव के साथ सीता और सती या पार्वती का अलग से नामोल्लेख आवश्यक नहीं है.वे दोनों आदि-शक्तियाँ हैं और राम तथा शिव का अस्तित्व उनसे अलग नहीं है.यह साधारण मानवों का ही स्वभाव है कि वे हर बात को लिंग और धर्म के दृष्टिकोण से देखते हैं.इसलिए ऐसे तर्क करने वाले पूरा जीवन इसी में गुजार देते हैं और अंत समय में ,उन्हें ईश्वरीय सत्ता व प्रार्थना का महत्व समझ में आता है.एक ईश्वर ही है जिसे पाने के लिए किसी अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती.वह आपका आत्म-बल ही होता है.

राम या शिव ऐसे भी नहीं हैं कि जो उन्हें नहीं मानते,उन पर कुपित होते हों.यदि ऐसे लोग सहज मानवीय-गुणों से युक्त जीवन जी रहे हैं तो वास्तव में पूजा-पाठ की आवश्यकता भी नहीं है.ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि हम शंख बजाएं,पूजा-पाठ करें और हमारे कर्म निम्न हों,तब राम और शिव क्या,हमारी सहायता कोई नहीं कर सकता है.

रही बात आसुरी-प्रवृत्तियों की,तो वे सतयुग,त्रेता और द्वापर में भी रही हैं.हाँ,तब इनकी संख्या कहीं कम थी.युग-प्रभाव के चलते कलियुग में सबसे बड़े ख़तरे हैं.फ़िर भी,राम को अपनी जीवन-शैली में ढालकर और शिव को अपना अभिभावक बनाकर ऐसी प्रवृत्तियों से बचा जा सकता है.उनकी महत्ता बताने से न बढ़ती है और न ही घटती !

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत विस्तृत और ज्ञानवर्धक
    आभार

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  2. फक्कड़ी और आवारगी सीखनी हो तो कैलाश मानसरोवर चलना होगा, जब बाबा भोलेनाथ।

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  3. शिव की अनुकम्पा आप पर बनी रहे

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  4. शिव कृपा का आशीर्वाद आपको गुरु से मिल गया ..बधाई !
    मंगल कामनाएं आपके लिए !

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  5. संभवत: सभी देवी देवता प्रतीक हैं जीवन के किसी न किसी पक्ष के...

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  6. एक ईश्वर ही है जिसे पाने के लिए किसी अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती.वह आपका आत्म-बल ही होता है...........तत्‍वज्ञान प्रदान करने के लिए धन्‍यवाद। महाशिवरात्रि की अनेकों मंगलकामनाएं। (सदा वसंत ह्रदयारविंदे भव भवामि सहितं नमामि) की जय हो।

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  7. उनकी महत्ता ना बढाने से बढती है , ना घटाने से घटती है !
    सनातन सत्य !

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  8. जय भोले बाबा की ...
    सत्य कहा है आपने ...

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