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23 दिसंबर 2012

चलो दिल्ली !


 
 
चलो दिल्ली ,चलो जनपथ, जहाँ हुक्काम बहरे हैं
हवाओं में,फिजाओं में ,जहाँ संगीन पहरे हैं.
चलाओ गोलियाँ ! छलनी हमारी छातियाँ हो जांय ,
ये आतिश बुझ नहीं सकती, हमारे ज़ख्म गहरे हैं.

तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई  ,
हमारा आज बिगड़ा है ,मगर सपने सुनहरे हैं.

बढ़े क़दमों ! नहीं रुकना ,बदल जायेगा मौसम ये,
नया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं.

 

22 टिप्‍पणियां:

  1. पहले आखिरी लाइन कुछ यूँ थी,'नया सूरज निकलते ही,बड़े कमज़ोर कोहरे हैं."

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  2. तुम्हारे चैन की ,अब आखिरी शब आ गई ,
    हमारा आज बिगड़ा पर, सपने सुनहरे हैं.

    बहुत खूब ... यही हौसला बरकरार रहे

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  3. वाह, आज तो कवि ललकार उठा है ~

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  4. बढ़े क़दमों ! नहीं रुकना ,बदल जायेगा मौसम ये,
    नया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं.

    ....बहुत सशक्त ललकार..

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  5. अगर गोलियाँ नेताओं को लगे तो बात बने।

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  6. शानदार लेखन, बधाई !!!

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  7. नया सूरज उघाड़ेगा,अँधेरे में जो चेहरे हैं.,,
    बहुत खूब,ललकार बरकरार रखे,,,,

    recent post : समाधान समस्याओं का,


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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (24-12-2012) के चर्चा मंच-११०३ (अगले बलात्कार की प्रतीक्षा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  9. क्या जलवे हैं कवि के! एकदम क्रांतिकारी हो उठा!

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  10. तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई है ,
    हमारा आज बिगड़ा ,मगर सपने सुनहरे हैं.


    pranam.

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  11. क्रान्ति की ये मशाल जलती रहनी जरूरी है ... हालांकि सरकार दमन करना चाहती है अब ...

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  12. आज बड़ा कोहरा छाया है,
    शायद, कल का राज छिपाया है।

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  13. नया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं.
    .......सशक्त

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  14. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    चलो दिल्ली ,चलो जनपथ, जहाँ हुक्काम बहरे हैं
    हवाओं में,फिजाओं में ,जहाँ संगीन पहरे हैं

    चलाओ गोलियाँ ! छलनी हमारी छातियाँ हो जांय
    ये आतिश बुझ नहीं सकती, हमारे ज़ख्म गहरे हैं

    तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई
    हमारा आज बिगड़ा है ,मगर सपने सुनहरे हैं

    बढ़े क़दमों ! नहीं रुकना ,बदल जायेगा मौसम ये
    नया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं

    आऽऽहा हाऽऽऽ हऽऽऽ !
    वाऽह ! क्या तेवर हैं !

    अच्छा लिखा है
    आदरणीय संतोष त्रिवेदी जी !
    बहुत ओजपूर्ण रचना है ... रवानी से भरपूर !

    आज ऐसी रचनाओं की आवश्यकता है ।
    हर नागरिक को सजगता से अपना दायित्व निभाने का समय आ गया है...
    अब भी गफ़लत में रहे तो हम ही हमारी भावी पीढ़ियों के अपराधी होंगे ...

    उत्कृष्ट सामयिक रचना के लिए पुनः साधुवाद !


    # तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई ....... यहां देख लें , कोई शब्द आप भूले हैं ।


    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
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  15. अब तो सच में दिल्ली जाकर एक हुंकार भरने की ज़रुरत है...

    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।

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  16. तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई ,
    हमारा आज बिगड़ा है ,मगर सपने सुनहरे हैं.

    ...आज इसी ज़ज्बे की ज़रुरत है..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  17. दिल्ली चलो अब एक होके
    अब सजा तो देनी है

    जो हो गई सो हो गई
    अब देर नही करनी है

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  18. मंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
    आस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।

    बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
    शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।

    रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
    सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।

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  19. बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको

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  20. वाह! क्या आक्रोश है!!.. देर से पढ़ पाने का अफसोस है।

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