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8 सितंबर 2012

तुम्हारी गंध तुम्हारे रूप से अधिक भाती है !

तुम्हारी एक झलक पाने के लिए
गली के आखिरी छोर तक
नज़रें घुमाता हूँ,
हवा के झोंके के साथ
तुम्हारे दुपट्टे का एक कोना
दिखते ही छुप जाता हूँ |

हर पल देखना चाहूँ
अपने ख़्वाब में,
तुम्हारी बेखबरी में,
सामने आते ही
निहारता हूँ आसमान की ओर,
पकड़ना चाहता हूँ
दुपट्टे  से भेजी हवा को,
बस तुम्हें देखना भूल जाता हूँ |

तुम्हारी गंध
तुम्हारे रूप से
अधिक भाती है,
तुम्हारे शरीर से अधिक
तुम्हारे अहसास रुचते हैं हमें
तुम्हें पाकर भी
तुम्हें छोड़ जाता हूँ |

क्या तुम भी मुझे
महसूस करती हो ,
अपने रूप में,
अपनी गंध में ,
पास गुजरती हवाओं में
पहचानती हो भीड़ में
ठहरती हो एक पल के लिए
सुनती हो मेरी सदा
रखती हो जवाब
जो अकसर पूछता हूँ  ?

 

22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...
    सुन्दर..
    रूमानी सा एहसास....

    सादर
    अनु

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  2. आप की घ्राणशक्ति का जवाब नहीं ...
    बधाई पंडित जी !

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    उत्तर
    1. साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते मैं तुम्हें देखना नहीं , सूंघना चाहता हूं :)

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    2. जो भी हो मैं अनश्वर चाहता हूँ ।

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  3. बहुत कोमल प्यार का अहसास...प्रेम की नजर सूक्ष्म होती ही है..

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  4. यह तो हकीकत के एकदम पास
    पहुँचती हुई लग रही है-
    बधाईयाँ ||

    गंध गजब गजगामिनी, कर-काया कमनीय |
    स्वाँस सरस उच्छ्वास में, हरदम यह करनीय |
    हरदम यह करनीय, गले पर देख दुपट्टा |
    पट्टा रविकर डाल, झूमता हट्टा कट्टा |
    चाहत पाले एक, दर्श दे प्राण स्वामिनी |
    यहीं कहीं हो पास, गंध गजब गजगामिनी ||

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  5. कोमल प्यार भरे एहसास ...खूबसूरत प्रस्तुति

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  6. आसमान में छाये बादलों का असर नज़र आ रहा है . :)

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  7. जो प्रश्न आपकर रहे हैं उनसे ... उसका जवाब भी अपने ही पास होता है ...
    ये सब एहसास आपके पास ही तो हैं आपके ही रचे .... जैसा चाहो जवाब सोच भी लो .... लाजवाब लिखा है ..

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  8. कोमल प्यार भरे एहसास से सजी खूबसूरत प्रस्तुति...

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  9. वाह क्‍या चुलबुलापन है
    गंध को बुलबुले की तरह
    दिया है फहरा।

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  10. कहीं गंधमादन पर्वत न रूपाकार हो जाय प्रभु!

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  11. क्या तुम भी मुझे
    महसूस करती हो ,
    अपने रूप में,
    अपनी गंध में ,

    बहुत सुन्दर भाव ..सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई..

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  12. सुनती हो मेरी सदा
    रखती हो जवाब
    जो अकसर पूछता हूँ ?
    .......आपकी ये पंक्तियाँ मुझे बहुत भाई - संतोष जी

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