लगता है कमेंट को विस्तार देना पड़ेगा। लीजिए अब कमेंट को यूँ पढ़िेये...
आपकी ऊर्जा आपकी रचना को धार देती है। रचना की यह धार आप पर उलट कर प्रहार करती है। फिर इसी धार से आप ऊर्जा प्राप्त करते हैं। लगता है यह चक्कर चलता रहेगा।:)
हमारे बड़े भाई एवं पूज्य श्री सतीश सक्सेना ने इसी काफिये पर शायद बहुत पहले एक गीत लिखा था... आज आपकी कविता को पढते हुए बस उन्हीं की याद आती रही.. बहुत सुन्दर!!
है क्या पास में करने को रचना को अगर कोई फोड़ने को जा रहा हो विध्वंसक बना रहा हो चुप रहते हों जहाँ सभी वहाँ एक शब्दों का बम कहीं बना रहा हो दिखता नहीं फिर भी कहीं कोई मरता हुआ शब्दों के तीर कोई कितना ही चला रहा हो !
Badhiyan! Lovely Limmerick!
जवाब देंहटाएंजो होगा वह, क्या होगा?
जवाब देंहटाएंथोथा चना बाजे घना
जवाब देंहटाएंसृजन भला कैसे होगा
चना चबा डालेंगे सब
जवाब देंहटाएंमिल
चना राजमा न बन सकेगा
सैलाब आ जाएगा ....
जवाब देंहटाएंसवाल में ही जवाब छुपे हुए हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूब |
सादर |
लिए आइना फिरते हरदम,
जवाब देंहटाएंखुद झांकेंगे तब क्या होगा ?
..........बहुत खूब, लाजबाब !
संतोष त्रिवेदी को मैं सरल ह्रदय समझता हूँ ...
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट इस कथन से मेल नहीं खाती
:(
सतीश जी,
हटाएंमैं तो सरल ह्रदय हूँ पर समाज की दुष्प्रवृत्तियों पर हमारा ज़ोर नहीं है ।
....आप इसमें राजनीति से लेकर समाज व सृजन की झलक देख सकते हैं ।
Vaah,laajavaab.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.....
जवाब देंहटाएंआखरी पंक्तियाँ विस्फोटक...
सादर
अनु
ऊर्जा धार देती है और धार से ऊर्जा प्राप्त होती है।
जवाब देंहटाएंलगता है कमेंट को विस्तार देना पड़ेगा। लीजिए अब कमेंट को यूँ पढ़िेये...
हटाएंआपकी ऊर्जा आपकी रचना को धार देती है। रचना की यह धार आप पर उलट कर प्रहार करती है। फिर इसी धार से आप ऊर्जा प्राप्त करते हैं। लगता है यह चक्कर चलता रहेगा।:)
यह धार का शून्यकाल है
हटाएंरचना जब विध्वंसक हो,
जवाब देंहटाएंसाहित्य-सृजन तब क्या होगा ?.... विध्वंसक सोच कभी भी सृजन नहीं कर सकते
रचना में सरल हृदय की जटिलता नज़र आ रही है . :)
जवाब देंहटाएंविध्वंसक-निर्माण का, नया चलेगा दौर ।
जवाब देंहटाएंनव रचनाओं से सजे, धरती चंदा सौर ।
धरती चंदा सौर, नए जोड़े बन जाएँ ।
नाला नदी समाय, कोयला कोयल खाएं ।
होने दो विध्वंस, खुदा का करम दिखाते ।
धरिये मन संतोष, नई सी रचना लाते ।।
....यही प्रयास है रविकर जी,
हटाएंआभार ।
नदियाँ चढ़ें पहाड़, कोयला कोयल खाएं
हटाएंरविकर जी अगर यह कर दें कि कोयला कौए खायें तो ?
हटाएंहमारे बड़े भाई एवं पूज्य श्री सतीश सक्सेना ने इसी काफिये पर शायद बहुत पहले एक गीत लिखा था... आज आपकी कविता को पढते हुए बस उन्हीं की याद आती रही.. बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएं...अच्छा है इसी बहाने विशुद्ध गीतकार की याद तो आई !
हटाएंचलिए सलिल भाई, सतीश जी के कथन से न मेल मिले परंतु उनके गीत के काफिये से तो मिलीभगत हो ही रही है। जय हो हिंदी ब्लॉगिंग की।
जवाब देंहटाएंहै क्या पास में करने को
जवाब देंहटाएंरचना को अगर कोई फोड़ने
को जा रहा हो
विध्वंसक बना रहा हो
चुप रहते हों जहाँ सभी
वहाँ एक शब्दों का बम
कहीं बना रहा हो
दिखता नहीं फिर भी
कहीं कोई मरता हुआ
शब्दों के तीर कोई
कितना ही चला रहा हो !
विचारात्मक भाव लिए हर पंक्ति... आभार
जवाब देंहटाएंलिये आईना घूमेंगे तो
जवाब देंहटाएंशरमा जायेंगे और क्या होगा ।
जबरदस्त प्रस्तुति ।
सही प्रश्न उठाती ओजपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंकृपया इस समूहिक ब्लॉग में आए और इस से जुड़ें|
काव्य का संसार
वाह...बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंलिए आइना फिरते हरदम,
जवाब देंहटाएंखुद झांकेंगे तब क्या होगा ?
सामने दर्पण के जब तुम आओगे ,
अपनी करनी पे बहुत पछताओगे .
बहुत बढ़िया रचना हर पंक्ति एक चित्र उकेरती है इसका उसका ...
यह रचना तो हिट हो गयी आपकी !
जवाब देंहटाएं...दिव्य -रचना जो है :-)
हटाएंchehara to vo ab apna dekhte nahi, bs aayeeno pe ungli uthate hai
जवाब देंहटाएंलिए आइना फिरते हरदम,
जवाब देंहटाएंखुद झांकेंगे तब क्या होगा ?
....वाह! लाज़वाब प्रस्तुति...
वाह...हर पंक्ति शानदार है....
जवाब देंहटाएंपहली पंक्ति से --
लिए आइना फिरते हरदम,
खुद झांकेंगे तब क्या होगा ?
लेकर अंत तक...
जब चुप्पी इतनी क़ातिल है,
लब खोलेंगे तब क्या होगा ?
शानदार!!
क्या खूब!
जवाब देंहटाएंआखिरी पंक्तियाँ तो बेहतरीन हैं..
रचना जब विध्वंसक हो,
जवाब देंहटाएंसाहित्य-सृजन तब क्या होगा ?
बहुत खूब!