गाँव,गिद्ध,गौरेया गायब
कोठरी,डेहरी,कथरी गायब,
अब तो सूखे साख खड़े हैं
कुआँ ते हैं पनिहारिन गायब !
गाँव किनारे वाला पीपल,
बरगद और लसोंहड़ा गायब,
मूंज,सनई कै खटिया,उबहनि
दरवाजे कै लाठी गायब !
बाबा कै बकुली औ धोती
अजिया केरि उघन्नी गायब,
लरिकन केर करगदा,कंठा
बिटियन कै बिछिया भै गायब !
नानी केरि कहानी गायब,
लोटिया अउर करइहा गायब,
अम्मा कै दुधहंडि औ भठिया,
बप्पा कै रामायन गायब !
आम्बन ते अम्बिया हैं गायब
चूल्हे-भूंजा ह्वारा गायब,
सोहरै,बनरा,गारी गावै-
वाली सुघर मेहेरिया गायब !
पइसन के आगे अब भइया
रिश्ते-नाते,रस्ते गायब,
शहर किहे हलकान बहुत
अब तो चैन हुँवों ते गायब !
आपकी रचना ने पुरानी यादें ताज़ा कर दीं...आज ये सब कहाँ है? आज की पीढ़ी तो शायद इनके नाम से भी परिचित न हो...बहुत मर्मस्पर्शी, भावमयी उत्कृष्ट रचना..
जवाब देंहटाएंबड़े भाई साहब, आभार आपका !
हटाएंखा गए हम-तुम....आधुनिकता...मशीनीकरण...कंक्रीट जंगल...सब मिल कर लील गए ...
जवाब देंहटाएंबहुत भाव भरी रचना...
सादर.
बिलकुल सही कहा....आभार अनुजी !
हटाएंये रची है जोरदार -अब बेचैन बाबू भी पुलकित हो जायेगें!
जवाब देंहटाएंवैसे अभी भी एकाध गारी गाने वाली दुलहिनें हैं -खानी है क्या ?
महराज....आपकी विरक्ति से हमें शक्ति मिली है.
हटाएंआपका आभार !
अब गारी खाने का मन करता है सही में...!
...... स्मृतियों की संवेदनाओं से सराबोर कविताएँ !
जवाब देंहटाएंभाई जी , आपकी कविता को पढ़कर मुझे निदा फाजली याद आ गए और अपना गाँव भी !.........मै रोया परदेश में , भीगा माँ का प्यार . दुःख ने दुःख से बात की , बिन चिट्ठी ,बिन तार !
जवाब देंहटाएंप्रत्युत्तर देंहटाएं
आभार प्रेम भाई !
हटाएंवाह ! ! ! ! ! बहुत खूब संतोष जी
जवाब देंहटाएंसुंदर भूली स्मृतियों को याद दिलाती रचना,बेहतरीन भाव प्रस्तुति,....
MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....
आपकी बातें प्रेरणा प्रदान करती हैं !
हटाएंलगता है , गाँव होकर आए हैं ।
जवाब देंहटाएंबचपन गायब , ज़वानी गायब
तो भैया ये गाँव क्या चीज़ है !
डॉक्टर साब...गाँव गए काफ़ी दिन हुए,इसीलिए हुलस रहे हैं !
हटाएंमाट्साब!! आज तो सलाम है आपको!!
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
हटाएंआप जैसे गुरु सबको नसीब कहाँ ?
प्रणाम और आभार !
लोक मंगल को संजोये प्रतिमानों की पहचान अब यादों में रह जाएगी .. भाव मई अभिव्यक्ति .... शुक्रिया जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया उदयवीर जी !
हटाएंवाह! वाह! वाह! वाह! आज त तबियत मस्त हुई गई। अब जाके बेचैनी मिटी हिया की। ब्लॉग कS नाम सार्थक हुई गवा। बधाई दें कि आभार कहें कछु ना बुझात अहै। जै राम जी की।
जवाब देंहटाएंआपकी बेचैनी कुछ कम हुई,यहिके खुशी है.आभार आपका ,ई प्रेरणा आप से ही लेता हूँ !
हटाएंब्लागर कै गुटबंदी आगे
हटाएंटिपिया-शर संधानै गायब
संतोषी की कविता पढ़के
आत्मा के बेचैनी गायब
बेजोड़ रचना। आज सच में गांव की हर पारंपरिक चीज़ प्रायः ग़ायब ही है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद एवं आभार मनोज जी !
हटाएंसब कुछ गायब हो रहा है तो चैन तो गायब होना ही है .... बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी !
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसादर।
मिसिरजी,धन्यवाद !
हटाएंआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया....पुरानी यादें ताज़ा हो गई बहुत बेहतरीन प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंसंजय भाई कुशल से रहो,देर आये,दुरुस्त आये !!
हटाएंकिसी कवि ने लिखा था "कथरी तोहार गुण ऊ जानय जे करय गुजारा कथरी माँ" ,,, आज इस कविता की गहराई वही समझ पाएगा जिसने गाँव की इन प्रतिमानों को जिया है। अजिया की उघन्नी,बाबा की बकुली, बरगद, इनारा,खरिहान तमाम ऐसे स्मरण हैं जो कहीं न कहीं सीने मे आजीवन धड़कते हैं। आपकी इस कविता ने जैसे सबकुछ सजीव कर दिया। आपको बहुत बहुत साधुवाद...और बधाई
जवाब देंहटाएंसही कहे लम्बरदार.....आज आपसे बात करने के बाद बड़ी खुशी और प्रेरणा मिली .यहिका दुसरका संस्करण भी जल्द जारी होयगा !
हटाएंआभार भाई !
दिल से सच्चाई, बातों से अपनापन भी गायब!!!
जवाब देंहटाएंहे इंसान तूने खुद को गायब करने की ठान ली है क्या???
बहुत ही बढ़िया पंक्तियाँ लिखी हैं अपने सर!!!!
देवांशु भाई,दूर-देश में ये यादें और सताती हैं.
हटाएंआभार !
मन मोह लिया इस शानदार कविता ने। वाह!!!
जवाब देंहटाएंसतीशजी,
हटाएंआपके लिखे को हम कित्ते दिनों से पढ़ रहे हैं,वही का असर हो सकता है,आभार आपके स्नेह का !!
सब गायब दिखा कर सब याद दिला दिये आपने, आपकी कविता सिद्धात्मक अवस्था में पहुँच रही है।
जवाब देंहटाएं...कहीं ऐसा तो नहीं हम अपना कोई सिद्ध-पीठ ही बना लें !
हटाएंआभार प्रवीण जी !
ओह! वण्डरफुल! इतना पावरफुल नोश्टाल्जिया तो ईर्ष्या का विषय है!
जवाब देंहटाएंदादा प्रणाम !
हटाएंआपके आशीर्वाद का बहुत दिनों से इंतजार था .हम धन्य हुए .
इस रचना की उत्कृष्टता के बारे में कहने को शब्द नहीं हैं ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब !
भाई जी ,आपकी टीप हमेशा प्रेरित करती है .यह सब आपकी संगतिका असर है !
हटाएंबहुत आभार !
सतीश भाई आप अपनी अभिव्यक्ति को शब्दों में नहीं, वाक्यों में, पैरे में, पूरे लेख में स्वर दे सकते हैं, दर्ज कर सकते हैं।
हटाएंचकाचक है।
जवाब देंहटाएंगांव भी पूछता होगा-
मोड़ा गायब,मोड़ी गायब
गये कमावन शहर सबै अब
पढे लिख सब बच्चा गायब।
अनूप जी ,गाँव की आवाज़ और उसका दर्द आपने महसूसा,अच्छा लगा !
हटाएंप्यार के लिए आभार !
गांव नहीं होते गायब
जवाब देंहटाएंनहीं खोती हैं स्मृतियां
हम ही चले आते हैं
छोड़कर खूब सारे सच
जिन्हें समझते हैं दुख
सुख की वासना में
रसना का रस समझ
कहीं कुछ नहीं हुआ है
हम ही हुए हैं डिलीट
या हो गए हैं हाइड
और भ्रम में फंसे हैं
गांव खो गया
रिश्ते खो गए
हम खुद ही भूल गए हैं
बतलाओ न सबको
संतोष भाई
सबकी समझ बढ़ाओ साईं।
अविनाशजी,आप अंतर्यामी हैं ,पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं,पाताललोक तक की खबर लाते हैं :-)
हटाएंआभार !
दृश्यबंधों को गतिमान ही रहना होता है ! हम स्वयं भी अपनी भूमिका में स्थिर नहीं होते और ना ही किसी विशिष्ट दृश्यबंध में फ्रीज़ हो सकते हैं !
हटाएंचिंतन / कल्पना के स्तर पर पिछले दृश्यबंध में रम जाना / अटक जाना अस्वाभाविक भी नहीं है !
सही कहत अहै बड़का भईया..यहि आधुनिकता के दौर मा सब कुछ गायब होत चला जात अहै.
जवाब देंहटाएंराज शुक्ल, अयोध्या फैजाबाद
राज भाई ,
हटाएंआपके प्यार का ,स्नेह का आभार !
भाई त्रिवेदी जी मैं प्रवीण जी से सहमत हूँ की आपकी कविता सिध्द हो चुकी है और अच्छी बात ये है कविता क्षेत्र से लगभग गायब हो चुकी बैसवारी को आपने अपने रचना कर्म का माध्यम बनाया है विषय भी लगभग वही है जो पुरे बैसवारे में बिखरा पड़ा है
जवाब देंहटाएंमहाराज !
हटाएंआप हमहू से बढ़िया लिख लेत हो,बस जुट जाओ एकदम से !!!
सोहरै,बनरा,गारी गावै-
जवाब देंहटाएंवाली सुघर मेहेरिया गायब !
आनंद कि अनुभूति हुई पढ़ कर ...या शायद गाने याद कर ...
अच्छी रचना है ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है भैया -
जवाब देंहटाएंअब हुवे गाँव उन्नाव -
कहाँ मिले तब छाँव |||