तबीयत कुछ ठीक सी ,रहती नहीं अब ,
बगैर किसी मर्ज़ के,बीमार हुआ जाता हूँ !१!
खामोश हूँ,पर होश में हूँ मैं अभी,
ढहते हुए शहर में,मीनार हुआ जाता हूँ !२!
बुरे दिन भी ये ,कितने हसीन होते हैं,
जंगल से निकलके ,घर-बार हुआ जाता हूँ !३!
कोई समझ न पाए,दास्तां मेरी ,
धीरे-धीरे मैं भी ,ख़बरदार हुआ जाता हूँ !४!
अब दर्द को भुलाने की बात भूलकर,
ग़म के साथ रहके ,प्यार हुआ जाता हूँ !५!
बगैर किसी मर्ज़ के,बीमार हुआ जाता हूँ !१!
साभार:गूगल बाबा |
खामोश हूँ,पर होश में हूँ मैं अभी,
ढहते हुए शहर में,मीनार हुआ जाता हूँ !२!
बुरे दिन भी ये ,कितने हसीन होते हैं,
जंगल से निकलके ,घर-बार हुआ जाता हूँ !३!
कोई समझ न पाए,दास्तां मेरी ,
धीरे-धीरे मैं भी ,ख़बरदार हुआ जाता हूँ !४!
अब दर्द को भुलाने की बात भूलकर,
ग़म के साथ रहके ,प्यार हुआ जाता हूँ !५!
क्या कहने -अंदाजे बयाँ दमदार हुआ जाता है !
जवाब देंहटाएंदिल्ली के अक्स भी हैं इस रचे में !
बनारस भी अब,असरदार हुआ जाता है !
हटाएंवाह क्या बात है बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली रचना कुछ नया सीखने को मिला
जवाब देंहटाएंअभी आपके खाने-पीने के दिन हैं,मौज करो !
हटाएंराम के साथ इतने भी मत रम जाना कि
जवाब देंहटाएंब्लोगर जगत भूलने को तैयार हुआ जाता हूँ
जबरजस्त रचना,
my new post...फुहार....तुम्हें हम मिलेगें...
मुझे लगता है राम आपने गम के लिए कहा है,उसी में आनंद है !
हटाएंसीधे साधे शब्दों में बड़ी गहरी बात कह गये आप..
जवाब देंहटाएंआप हमें समझ पाए,हम धन्य हुए !
हटाएंछा गए त्रिवेदी जी!!!
जवाब देंहटाएंआप तो बड़े सस्ते छूटे!
हटाएंहालात बड़े नाजुक, दिखते हैं आपके
जवाब देंहटाएंबिन जाने मैं भी , लाचार हुआ जाता हूँ ।
लगता है , ग़ालिब का असर आ गया है । :)
जी में इक फांस कि बीमार हुआ जाता हूं
हटाएंउसकी सोहबत का तलबगार हुआ जाता हूं
हुस्न की आंच से तपती है मेरी रूह तलक
फिर भी उल्फत का तलबगार हुआ जाता हूं
ये बुरे दिन जो मेरे हैं , बहुत हसीन से हैं
ख्वाब बेशक्ल सही एक संसार हुआ जाता हूं
कम-अकल हूँ मैं,दुनिया न जान पाया,
हटाएंअपने ही लोगों का शिकार हुआ जाता हूँ !
आपका इज़हारे-हाल से कभी हंसी तो कभी मुस्कान से दो-चार हुआ जाता हूं।
जवाब देंहटाएंआपका इत्ता-सा प्रेम पाकर,
हटाएंमैं तो बलिहार हुआ जाता हूँ !
क्या बात है !
जवाब देंहटाएंअभी तो बाकी रात है !
हटाएंकुछ सीख कर जाऊँगा इस पोस्ट से,
जवाब देंहटाएंत्रिवेदी जी आपका कर्जदार हुआ जाता हूँ।
अच्छी रचना के लिये बधाई है आपको,
साथ में आपका आभार किये जाता हूँ।।
कृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)
मैं क्या सिखाऊँगा किसी को,
हटाएंखुद ही सिपहसालार हुआ जाता हूँ !
क्या बात है, क्या बात है। ये सिलसिला चलता रहना चाहिए...
जवाब देंहटाएंआपका साथ मसलसल, मिलते रहना चाहिए !
हटाएंखामोश हूँ,पर होश में हूँ मैं अभी,
जवाब देंहटाएंढहते हुए शहर में,मीनार हुआ जाता हूँ !२!
बहुत ही बढ़िया......
शुक्रिया मोनिका जी !
हटाएंवाह बीमारी भी ग़ज़ल का सबब हो सकती है, यूं तो सोचा न था हमने ☺
जवाब देंहटाएंवो हमारे गम में हँसेंगे,
हटाएंयूँ भी न सोचा था हमने !
काजल भाई ,आप नहीं समझे :) ये बीमारी वो वाली है :) मतलब गज़ल वाली :)
हटाएंवाह जी वाह!
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
हटाएंबेहतरीन...बहुत बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंआपके आने से धन्य हुए !
हटाएंगम के दरिया में बहा जाता हूँ ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीताजी !
हटाएंखामोश हूँ,पर होश में हूँ मैं अभी,
जवाब देंहटाएंढहते हुए शहर में,मीनार हुआ जाता हूँ...
बेहतरीन !
आभार वाणी जी !
हटाएंहर शेर में हैं खयालों के दीद नये नये
जवाब देंहटाएंमैं तो बस दर्द का दीदार हुआ जाता हूँ
हर तरफ के खुल गए परदे,
हटाएंबिना ईंट की दीवार हुआ जाता हूँ !
ग़म के साथ रहके ,प्यार हुआ जाता हूँ......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लाईनें......
गजब के जज्बात।
आभार अतुलजी !
हटाएंवाह!!!!!संतोष जी आपकी गजल पढकर मै भी गुलजार हुआ जाता हूँ,....
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...सम्बोधन...
बुरे दिन भी ये ,कितने हसीन होते हैं,
जवाब देंहटाएंजंगल से निकलके ,घर-बार हुआ जाता हूँ
यह भी खूब रही संतोष जी.
बुरे दिन जब हसीन हैं तो फिर वे बुरे कहाँ?
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आभार राकेश जी !
हटाएंअब दर्द को भुलाने की बात भूलकर,
जवाब देंहटाएंग़म के साथ रहके ,प्यार हुआ जाता हूँ !५!
गम और प्यार का रिश्ता दर्द के रास्ते ही जाता है ... फिर बस प्यार ही प्यार रह जाता है ...