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7 फ़रवरी 2012

उनका क़हर !

क़रीब न आते हैं,न बुलाते हैं हमें,
वे  ख़्वाब में  ही मिल जाते हैं हमें ! १!

बरसों से नहीं दिखी सूरत उनकी,
तस्वीर से ही दीद कराते हैं हमें !२!

उनके नूर से बेखुद हुआ जाता हूँ मैं ,
उँगलियों पे इस तरह नचाते  हैं हमें !३ !

उनकी राह को तकते ,ज़माना गुजरा,
वादों से आये रोज़ ,भरमाते हैं हमें !४!

शायद मेरी चाहत को ,समझ गए हैं वो ,
अनजान बनके  बारहा सताते हैं हमें !५ !



32 टिप्‍पणियां:

  1. बारी जी ..गजल भी लाजबाब है ! चतुरमुखी सा !

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  2. सोचा था कस लगा के तेरी याद भुला दूंगा
    कमबख्त धुएं ने तेरी तस्वीर बना डाली,...

    वाह!!!!!बहुत बेहतरीन रचना,लाजबाब प्रस्तुति,

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  3. संतोष जी! छुट्टियों का अच्छा सदुपयोग कर रहे हैं आप.. अब निष्कर्ष यह निकाला है हमने कि अच्छी कविता लिहाफ के अंदर बैठकर ही लिखी जा सकती है.. वैसे आज रह-रहकर शकील साहब याद आ रहे हैं..उनका कहना है
    सब करिश्मात-ए-तसव्वुर है शकील,
    वरना आता है, न जाता है कोइ!!

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  4. उनकी इस अदा पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा।
    एक तो बसंत उस पर से वैलेंटाइन डे की आहट ... मौसम के अनुकूल रचना।

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  5. कौन मिल गया है इस उम्र में
    भई क्यों नाहक जलाते हैं हमें !

    वाह वाह ! बहुत खूब .
    दाद आपके लिए है :)

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  6. हम भी डॉ दराल के पीछे खड़े हैं ....
    शुभकामनायें आपके दिल के लिए !

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    1. एक डॉक्टर और एक कवि जब साथ है तो फिर काहे की चिंता !

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  7. (१)
    इस तरह के मिलन से आपके पारिवारिक जीवन पे कोई खतरा नहीं ! बड़ा ख्याल रखती हैं वे आपका :)

    (२)
    बरसों से सूरत नहीं देखी तो फिर तस्वीर में किस स्थान विशेष के पर्यटक बनते हो मित्र :)

    (३)
    अत्यन्त शास्त्रीय कोटि का प्रेम है यह मित्र !

    (४)
    सब कुछ समझ बूझ के भी भ्रमित बने रहना , अदभुत समर्पण है !

    (५)
    बाई दा वे क्या चाहत है आपकी ,जिसे वो समझ गए हैं और आपको अनजान बनके टरका रहे हैं :)


    संतोष जी बीमार होके ये आलम है तो स्वस्थ होके क्या करियेगा :)

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    1. १)उनका ख्याल रखना हमें बेखयाली में रखना है.

      २)उनकी आँखों के,उनके गेसुओं के और उनके मन के !

      ३)प्रेम का कोई व्याकरण या नियम या अनुशासन या कोटि नहीं है,वह अपने-आप में अजूबा है !एक अहसास है !
      ४)प्रेम नशा है,दूसरे को भी है यह भ्रम है !
      ५)यह अंदर की बात है !

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  8. तस्वीरों में ही दीदार करते हैं.... बहुत खूब...

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  9. अच्छे भाव...
    शिल्प पर अभी और काम किया जा सकता है (सविनय)

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    1. आपका कहना दुरुस्त है,अली भाई से बहुत विमर्श होने के बाद भी मामला ज़्यादा नहीं बन पाया,झेलने के लिए शुक्रिया !

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  10. भाईजी , उनके कहर से बचने के लिए शब्दों की आड़ काफी है ! है न ? एक अच्छी रचना

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  11. वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! सुन्दर भाव एवं अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!

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  12. हौसला-अफजाई के लिए सभी का शुक्रिया !

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  13. वाह!!!!!!!!!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,......क्या बात है संतोष जी

    MY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...

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