पृष्ठ

30 नवंबर 2011

जब हम गमज़दा हो जाएं !

ज़िन्दगी में कभी-कभी ऐसे मौके भी आते हैं कि हमारा मन  चाहकर भी प्रफुल्लित नहीं होता. जाने-अनजाने ऐसे माहौल में हम अपने को घिरा पाते हैं जिसका मुफ़ीद कारण हमें भी नहीं मालूम होता ! इसकी एक ही वज़ह हो सकती है कि कुछ घटनाएँ या बातें अप्रत्यक्ष ढंग से हमारे दिल पर आघात करती रहती हैं और हम उनको टालते हुए उन्हें नाकुछ सिद्ध करने में लगे रहते हैं.कहते हैं कि जब कोई ख़ुशी होती है तो वह चेहरे से अपने आप झलकती है और इसी तरह यदि कोई अंदरूनी टीस या कोई बात कुरेद रही होती है तो आप लाख बचने का यत्न करें,चेहरा सच बोल देता है.ऐसे में आप अपने दिल को किस तरह बरगलाएं,समझाएं यह आपके व्यक्तित्व और रूचि के कारण  अलग-अलग तरीके से हो सकता है.


जब इस तरह का ज्यादा उहापोह होता है तो अलमारी में सुंची हुई  पुरानी डायरियों को निकाल कर,झाड़-पोंछकर  ,पीले पड़ चुके  पन्नों को  पलटने लगता हूँ.कुछ ऐसा ढूँढने लग जाता हूँ कि मेरा सारा इलाज़ यहीं मिलेगा !  जो बातें अतीत में मुझे ठीक नहीं लग रही थी ,उन्हीं को आज के ग़म को ग़लत करने का सामान बनाने की कोशिश करता हूँ.अपनी शेरो-शायरी अचानक अच्छी लगने लगती है ,पुराने लफ्ज़ नए मायनों में बदल जाते हैं.जो कभी दर्द देते थे,वे दवा बन जाते हैं. कई चीज़ें आज के अर्थों में बेमानी लगती हैं,पर रूह को कुछ सुकून ज़रूर देती हैं !उन्हें कई-कई बार पढता हूँ,कुछ अच्छा लगता है तो कुछ बकवास-सा ! बहरहाल इस तरह मैं थोड़ी देर अपने से ही मिल लेता हूँ.यह काम पुराने अलबम खोलकर भी किया जा सकता है !


ऐसे में ख़ास दोस्त भी इस माहौल  में याद आते हैं.उनसे मिलकर या फ़ोन कर मन हल्का किया जा सकता है !  किसी लेखक का जीवन-चरित पढ़कर भी मन को दिलासा दी जा सकती है  पर जब यह उदासी  ज़्यादा गहरी हो तो संगीत के पास जाना स्वाभाविक-सा लगता है.संगीत में इस 'मूड' के लिए एक अच्छी-खासी रेंज है.दर्द-भरे नगमें हमें शायद इसीलिए पसंद हैं . सामान्य हालात में भी मैं इस तरह के गीत सुनता हूँ और जब अन्दर छटपटाहट  हो तब तो माहौल बिलकुल मुफ़ीद हो उठता है.पहले अकसर मैं रफ़ी,मुकेश ,गीता दत्त आदि को सुनता रहता था,पर अब ग़ज़लों पर ही आकर टिक गया हूँ.इसमें मेहंदी हसन और मुन्नी बेगम खासतौर से मेरे रंज-ओ-ग़म में शरीक होते हैं.मैंने आड़े वक़्त के लिए इन दोनों के कई गानों को अपने पास संजो रखा है.
इन्हें सुनते हुए हमें अपना ग़म हल्का लगता है और यह महसूसता है कि हमारे दर्द को आवाज़ मिल गई है !


इस माहौल के लिए मेरा एक पुराना शेर अर्ज़ है:

                                  हम किस-किसको सुनाएँ दास्ताँ अपनी,
                                      हर किसी के साथ ,ये अफ़साने हुए हैं !



बहरहाल मेरे साथ आप भी थोड़ा ग़मगीन हो जाएँ !

बहादुर शाह ज़फर की यह ग़ज़ल मेहंदी हसन साब की आवाज़ में


30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर गजल है.
    संगीत में जादू है जी.
    प्रस्तुति के लिये आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,संतोष भाई.

    जवाब देंहटाएं
  2. हम भी मन को बहलाने के उपाय ढूढ़ने लगते हैं। लिख लेते हैं या पढ़ लेते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. मनोस्थिति हर समय एक जैसी नहीं रहती । कभी दिल खुश तो कभी ग़मगीन होना इसकी आदत है ।
    सही कहा ऐसे इसे बातों में लगा लो तो सकूं मिलता है ।
    फिर बातें चाहे जो हों । बेशक संगीत का असर बहुत प्रभावशाली रहता है ।

    जवाब देंहटाएं
  4. ऐसा भी होता है अक्सर....... संगीत सच में सकारात्मक असर करता है.....

    जवाब देंहटाएं
  5. bhavon ki sundar v gahan prastuti .shayad sabhi kabhi n kabhi aisi sthiti se gujarte hain .

    जवाब देंहटाएं
  6. आज मेरा मन भी इसी तरह का है संतोष भाई!
    आज तो यह कहने का मन मेरा कर रहा है --

    किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं
    शेर की मैं तहज़ीब निभाऊं या अपने हालात लिखूं

    जवाब देंहटाएं
  7. होता है !
    इसका नाम जिंदगी है !

    जवाब देंहटाएं
  8. @ प्रिय संतोष जी ,
    ...पर कल ऐसा हुआ क्या था :)

    मेंहदी हसन के लिंक को बखूबी पहचानता हूं अब ख्याल ये है कि आपके साथ ऐसा क्या गुज़रा जो...इसे सुनना पड़ा :)

    अव्वल तो ये कि आप कभी सकारण...अकारण गमज़दा ना हों यही दुआ कर सकते हैं !

    वैसे इस तरह से गमज़दा होने के कुछ खतरे भी हैं मसलन लोग क्या समझेंगे कि भाभी जी के होते हुए भी यह बंदा गमज़दा हो रहा है तो ज़रूर इस गमज़दगी का स्रोत्र कोई 'बाह्य तत्व' है :)

    देखिये इस तरह के बाह्य तत्वों की मौजूदगी वाले निष्कर्षों से मर्दपन का अहसास भले पल्लवित और पुष्पित हो पर पारिवारिक जीवन का स्वास्थ्य नाज़ुक होने का खतरा बढ़ जाता है :)

    अगर कोई अन्यथा बात ना हो और दुखदाई गजलें सुनना अपरिहार्य विवशता ना हो तो फिर एक नींद सो लेना भी एक बेहतर विकल्प है !
    एक ज़माना था कि यार लोग ऐसी ग़ज़लें सुनने के वास्ते ही गमज़दा हो लिया करते थे ! उस वक़्त यह फैशन बड़ा आम था पर आपके मुद्दे पे ऐसा नहीं लगा रहा है अगर बता सकें तो ज़रूर बताइयेगा इस बेचैनी का सबब और अगर नहीं बता सकें तो बीती पे दिया बाती कर डालिए :)

    शुभकामनाओं सहित
    फिलहाल 'बेगमशुद' लोगों में से एक मित्र

    जवाब देंहटाएं
  9. और हां अपने 'बेगमशुद' होने का आपके ब्रांड वाले गम से कोई वास्ता नहीं है यह तखल्लुस उन सब के लिए जो 'शादीशुद' हों :)

    जवाब देंहटाएं
  10. आह -आपने मेरा पूरा दिन बर्बाद कर दिया ....अपनी पीड़ा की गहनता जस का तस इधर संप्रेषित कर दी है -माफ नहीं करूंगा ...
    वैसे भी इन दिनों तबीयत कुछ नासाज सी है ....ई अपन की फ्रीक्वेनसी इतनी क्यों मैच करती है भाई _खुद तो मरोगे मुझे भी मारकर ही हटोगे... इन आंसुओं का क्या करूं जिनसे डेस्कटाप धुंधला दिख रहा है ? अंगुलियाँ अपना काम तो कर रही हैं मगर सामने क्या लिख रहा है पता नहीं ...
    कभी कभी सोचता हूँ विज्ञान का दामन न पकड़ा होता तो अब तक निपट ही गया होता ......संतोष भाई, मान लीजिये कभी हम न रहे तो लोग याद तो करेगें न ?
    (सामान्य होकर पुनः टिप्पणी संशोधित! कभी दिन रात यही ग़ज़ल जुबां पर रहती थी ...अब तो सुनते हुए प्राण जैसे निकले जाते हैं ....! आह !@ई मनोज भी अपना जैसा ही पगला लगता है क्या ?

    जवाब देंहटाएं
  11. @और जो ये अली मियाँ मजे मजे से बतियाते हैं न ..ये भी कोई गम है जो छिपाते हैं .....और यी लहजा तभी अपनाते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  12. अरविन्द जी ,
    :)
    दो मुहावरे याद आ रहे हैं ...
    जा तन लागी सोई जाने :)
    जाके पैर ना फटे बिंवाई सो का जाने पीर पराई :)

    जवाब देंहटाएं
  13. @ मनोज कुमार जी आप अपने दिल को खुद दिलासा दीजिए,संगीत का आनंद पीजिए.रात के बाद अब हमारी सुबह ताज़ा दम हो गई है !

    जवाब देंहटाएं
  14. @ अली साब

    १)कल जो हुआ था,वह दोस्तों का ही दिया था,मैंने गलत ढंग से समझा और मन उदास कर लिया.

    २)जब अपने से बात करनी भी मुश्किल हो जाये,ऐसे में ज़फर साब और मेहंदी हसन साब की जुगलबंदी से बढ़कर कुछ नहीं !

    ३)आप जिस कारण को अकारण हमारे माथे पर डाल रहे हो,ऐसा कतई नहीं है.एक तो बुजुर्गियत ,ऊपर से ब्लागियत अब ऐसे मौके मुहैया नहीं कराती !

    ४)आप बेगमशुद बनें रहें,बे-गमजदा भी,मैं बेगमशुद और गमज़दा ही सही !क्या है न ,कि गम ही हमें अपने से रूबरू करने का मौक़ा देता है !

    जवाब देंहटाएं
  15. उदास कर देने वाला गीत या संगीत सुनने पर उदासी और बढ़ जाती है ...
    ऐसे मौकों पर चुलबुले गाने सुनना मूड ठीक कर देता है ...जैसे " बेपरवाह बेदर्दी पगला दीवाना " ...या " झूठा कही का मुझे ऐसा मिला "...
    हां , रोना ही हो तो बात और है !

    जवाब देंहटाएं
  16. अरविन्द मिश्र
    गुरु जी ,
    यह पोस्ट ही आपको संबोधित है मगर आप हैं कि कौओं के यौन-संसर्ग को देखने की फिराक में हैं!हमने तो आप की पसंद का ख्याल फिर भी रखा और इसलिए यह ग़ज़ल डाल दी .

    मैं जानता हूँ कि इससे आपका दिन खराब नहीं होगा बल्कि आपकी रचनाशीलता को कुरेदेगा,भावों को जगायेगा !

    आपसे अभी फोन पर बात हुई,आपने इस ग़ज़ल की दो-तीन लाइनें तरन्नुम में गाई,सच में दिल खुश हो गया.
    .....जिसने दर्द दिया था,उसी ने दवा भी दे दी ! आभार

    जवाब देंहटाएं
  17. @ संतोष जी ,
    (१) वो दोस्त जो गलत ढंग से समझे गये और उदासी का सबब बने !अब ये ससुरा मन है कि 'दोस्तों' के लैंगिकता बोध के लिए बेकरार हो चला है :)

    (२) बेशक ! वैसे 'अपने से बात' बहुत ही रोमांटिक धारणा है :)

    (३) हम आज की बुज़ुर्गियत और अब अप्राप्त अवसरों की बात कहां कर रहे हैं जनाब :)

    (४) बेगमशुद और गमज़दा मित्रों के लिए खास लिंक ...http://podcast.hindyugm.com/2009/04/abida-parveen-and-nusrat-fateh-ali-khan.html ,बाबा नुसरत को भी सुनिए !

    जवाब देंहटाएं
  18. @संतोष त्रिवेदी,
    महान आत्मा हैं आप....ईश्वर आपको ब्लॉग लेखन का धूमकेतु होने से बचाएं

    जवाब देंहटाएं
  19. @ अरविन्द मिश्र जी
    आपका वरद-हस्त जब तक है ,तभी तक यह उछल-कूद ज़्यादा है.
    स्नेह बनाए रखियेगा !

    जवाब देंहटाएं
  20. गम बांटते रहोगे कभी खुशी भी बाँट दिया करो
    रोया रुलाया मत करो हंसा दिया दिलसे करो

    जवाब देंहटाएं
  21. एई ये सब क्या हो रहा है यहाँ अली भाई,डॉक्टर साहब,मनोज जी सब के सब............ अरे मेरी बात सुनो और एक काम करो.
    तुम (सब)अपना रंजोगम अपनी परेशानी मुझे दे दो
    तुम्हे इस दिल की कसम (चार लाख खर्च करवाकर बैठा है दुष्ट हाल ही ) अपनी निगेहबानी मुझे दे दो.
    अरे! सब चलता है जिंदगी में. मैं तो अपने सब दुःख,चिंताएं,परेशानियां अपने कृष्णा को सौंपकर बेफिक्र हो कर सो जाती हूँ.और.......उदास गाने नही सुनती.और ज्यादा तकलीफ होती है इससे.अपने राम जी तो दुखी भी दूसरों के दुःख से हा हा हा आदि हैं इसके.ईश्वर ने सब कुछ बेस्ट दिया,कियापर...कांटो भरा ऐसा रास्ता चुन बैठी कि ...... अब उसी में सुकून मिलता है तो बेचारे गोस्वामीजी या बच्चे क्या करे??हा हा हा
    और तुम तो मेरे नन्हे कृष्णा हो बाबु! एक फोन नही कर सकते थे?
    देखो कितने लोग हैं जो तुम्हारे लिए विचलित से हो गये हैं यह जानकर कि तुम आज अपने असली उसी मस्ती भरे मूड में नही दिख रहे.

    जवाब देंहटाएं
  22. अली साहब की टिप्पणी को मेरी भी समझिएगा !
    लगता है आप भी बहुत संवेदनशील दोस्तों की जमात से हैं :-)
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  23. @ इन्दुजी अबकी बार ज़रूर फोनियाऊंगा ! आपका बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  24. अब तो उबर गये लगता है दुख से!

    कानपुर के गीतकार उपेन्द्रजी ने कभी लिखा था:

    माना जीवन में बहुत-बहुत तम है,
    पर उससे ज्यादा तम का मातम है,
    दुख हैं, तो दुख हरने वाले भी हैं,
    चोटें हैं, तो चोटों का मरहम है,

    काली-काली रातों में अक्सर,
    देखे जग ने सपने उजले-उजले।

    जवाब देंहटाएं
  25. @ अनूप जी आभार आपका ! कम से कम उबरने के बाद याद तो किया !

    जवाब देंहटाएं
  26. संतोष जी आपके लिये ये लिंक साँपला वाले

    http://sikayaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_28.html
    http://sikayaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_17.html
    http://sikayaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_11.html

    जवाब देंहटाएं
  27. वाह ... ये मखमली आवाज़ और शायरी का असर ... गम कुछ और जगा देता है ... पर आप इस गम से बाहर आ जाएं ...

    जवाब देंहटाएं
  28. सुन्दर प्रस्तुति |मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । कृपया निमंत्रण स्वीकार करें । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  29. वाह ! बहुत खूब लिखा है आपने ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  30. दुनिया में कितना गम है मेरा गम सबसे कम है ....जी बिलकुल सच्ची!!

    जवाब देंहटाएं