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10 अक्तूबर 2011

राम विलास शर्मा को पढ़ते हुए !



क़रीब दस-बारह साल बाद  दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी गया था.हालाँकि घर में पढने लायक अथाह भंडार मौज़ूद  है,पर कई दिनों से अज्ञेय की आत्मकथा 'शेखर :एक जीवनी' को पढने की प्रबल  इच्छा थी मन में ! पुस्तकालय में जाकर पुनः सदस्य बनने का तात्कालिक कारण यह भी रहा.बहरहाल,आसानी से सदस्यता ग्रहण करके मैंने अपनी वांछित पुस्तक की खोज शुरू की ,पर वह उस समय वहां उपलब्ध नहीं थी. मैंने उसका विकल्प खोजना शुरू किया तो सहसा मेरी नज़र 'अपनी धरती,अपने लोग' पर पड़ी और उसे खोलते ही जिस तरह की भाषा मुझे दिखी,उससे मैं सहज ही आकर्षित हो गया.यह राम विलास शर्मा की आत्मकथा के तीन खण्डों का पहला भाग था.मैं लेखक के नाम से पहले से ही परिचित था,चूंकि वे हमारे बैसवारा के ही रहनेवाले थे,इसलिए उनकी आत्मकथा पढने में अतिरिक्त रूचि लगी और मैंने उस पुस्तक को ले लिया.हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा व जिन्ना के जीवन के बारे में अमेरिकी लेखक की लिखी पुस्तक ही इससे पहले मैंने जीवनी के नाम पर पढ़ीं थीं !


'मुंडेर पर सूरज' इस आत्मकथा का पहला भाग है,जिसमें लेखक के बचपन से लेकर अध्यापन-कार्य से मुक्त होने तक की अवधि को तफ़सील से बताया गया है.उनका शुरुआती जीवन अपने बाबा के साथ गाँव में बीता और इस दौरान होने वाले अनुभव मेरे लिहाज़ से सबसे ज़्यादा रोमांचकारी रहे क्योंकि उन प्रसंगों को राम विलास शर्माजी ने जस-का -तस धर दिया है .इसमें देशज शब्दों की भरमार  है.जिन शब्दों को मैं भूल-सा रहा था,उन्हें किताब में पाकर निहाल हो उठा.जिस जीवन को मैंने अपने बचपन में जिया था,इतने बरसों बाद लग रहा है कि यह मेरी अपनी ही कहानी है. इस तरह के कुछ अंश यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ.


रसोई के बगल में  छोटी खमसार थी.एक तरफ सौरिहाई जहाँ मेरा जन्म हुआ था,दूसरी तरफ आटा,दाल,चावल,गुड़ रखने की कोठरी;खमसार में एक तरफ बड़ी चकिया ,दूसरी तरफ धान कूटने की  ओखली,उसी के ऊपर दीवाल में घी,तेल की हांडियां रखने का पेटहरा  !

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कुछ  दिन में बाबा ठीक हो गए और मैं उनके साथ सोने लगा.सोने के पहले घुन्घूमनैयाँ करते थे .चित लेटकर पैर मोड़ लेते थे,उन पर मुझे लिटाकर घुटने छाती की तरफ़ लाते,फिर पीछे ले जाते. इस तरह झूला झुलाते हुए गाते जाते थे,घुन्घूमनैयाँ ,खंत खनैया ,कौड़ी पइयां,गंग बहइयां...और अंत में पैरों पर मुझे उठाते हुए  कहते थे,बच्चा का बिहाव होय,कंडाल  बाजे भोंपड़ प पों,पों !


इस तरह और भी कई जगह रोचक और जीवंत-प्रसंग हैं. कथरी,नहा ,पगही,चीपर,अंबिया,कुसुली गड़  आदि न जाने कितने शब्द हैं जो बैसवारे में ही बोले और सुने जाते हैं! इस तरह उन्होंने हचक के अवधी व बैसवारी शब्दों का प्रयोग किया है.


राम विलास शर्मा जी की ख्याति एक आलोचक के रूप में ही ज़्यादा रही,इसलिए भी आम पाठक उन्हें अधिक नहीं पढ़ या जान पाया.कहते हैं कि निराला के बारे में  जितनी प्रामाणिक जानकारी  शर्माजी के पास थी,शायद ही किसी के पास रही हो.वे अपने लखनऊ -प्रवास के दौरान निरालाजी के संपर्क में आये और उनकी गाढ़ी दोस्ती हो गयी.वे निराला के गाँव गढ़ाकोला(उन्नाव) भी गए थे.निरालाजी ने कई बार उनको मानसिक सहयोग दिया,जिसका उन्होंने पुस्तक में जिक्र भी किया है.'तुलसी' के बारे में भी राम विलास जी ने ख्याति पायी है.इन्होंने निराला और तुलसी पर अलग से काफी-कुछ लिखा है !आलोचना के क्षेत्र में राम चन्द्र शुक्ल के बाद उस समय के आलोचकों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है.


महावीर प्रसाद द्विवेदी और रामविलास शर्माजी के गाँव आस-पास ही थे,यह मेरा सौभाग्य है कि  मेरा गाँव भी इन दोनों विभूतियों से बहुत दूर नहीं है ! दिल्ली में रहते हुए भी शर्माजी से मिल नहीं पाया ,इसकी टीस ज़रूर हमेशा रहेगी !

पुस्तक पढने के दौरान ही यह जाना कि शर्माजी का जन्मदिन दस अक्टूबर को पड़ता है,संयोग से आज वही दिन है और  ख़ास बात यह है कि  यह उनके जन्मशती-वर्ष की शुरुआत का दिन भी है !इस नाते भी हमें उनको,उनके किये गए कामों को याद करना ज़रूरी है.उस महान आलोचक और लेखक की याद को शत-शत नमन ! 


 



13 टिप्‍पणियां:

  1. बेसक यक बहुतै नीकि किताब आप हाथे लिहिन पढ़ै बदे। कम-से-कम वहि दौर कै जानकारी मुहैय्या होये, अउर दुसरकी बाति यू कि देसज संस्कार के सब्दन क्यार जानकारी मा इजाफा होई।

    वैसे तौ आलोचक शर्मा जी हमैं खास तौर पै पसंद नाहीं हैं, मुल आत्मकथाकार शर्मा जी का हमहूँ पढ़ा चाहब।

    आज शर्मा जी केर जन्मदिन आय, बहुतै नीक, काश शर्मा जी अवधिउ मा कुछ लिखे होते हौ हमहूँ एक पोस्ट ठेलित, शर्मा जी से ई सिकाइत हमैं सदैव रहे।

    शर्मा जी के जन्मदिन पै हमार पैलगी!

    आपकी पिछली पोस्तन का समय निकारि के देखबै।

    आभार!

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  2. एक खाटी के धुरंधर साहित्यकार के जन्मशती का बिगुल बजाकर आपने साधु कर्म किया है ......और ऊपर से अपने जार जवार के आदमी भी वे ठहरे ..आप का भी खूंटा कुछ कम मजबूत नहीं दिख रहा है :)

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  3. आपने इस साहित्कार पर तो पूरा वर्चस्व ही जमा लिया है । भाई साहब आपका चयन अच्छा लगा । धन्यवाद ।

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  4. दोनों महानुभावों के गावों की निकटता का प्रभाव आप पर भी पड़े और हमें लाभ हो।

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  5. "दिल्ली में रहते हुए भी शर्माजी से मिल नहीं पाया ,इसकी टीस ज़रूर हमेशा रहेगी !..."

    सच है लेकिन किताबें इसकी क्षतिपूरि करेंगी।

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  6. ' क्षतिपूरि ' को क्षतिपूर्ति पढ़ें प्लीज!

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  7. शत-शत नमन ||


    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई स्वीकार करें ||

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  8. कल रामविलाश शर्मा जी के अपने भाई के नाम लिखे तमाम पत्र पढ़े इसी किताब से।

    बहुत बड़े आदमी थे वे। आज उनके जन्मदिन के मौके पर उनकी याद को नमन!

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  9. पढ़ने के बाद यूँ सहेजना अच्छा लगा
    मौके पर याद दिलाना भी अच्छा लगा।

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  10. राम विलास शर्मा जी के बारे में जानकर अच्छा लगा ....आभार आपका !

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  11. अब सही जगह अपनी उर्जा का इसेमाल कर रहें हैं ....महाराज !
    पुस्तकों को ना पढ़ पाने का दुष्प्रभाव मुझ पर आप देख ही पा रहे होंगे ? जारी रहिये ...

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  12. आपकी पोस्ट पढ़कर जो पहली बात मन में आई वह यह क़ि मैंने यह पुस्तक अभी तक पढ़ी क्यों नहीं.

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