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30 सितंबर 2010

राम की अयोध्या !

आज देश में  काफी उहापोह की स्थिति के बीच अदालत ने अयोध्या मामले पर  अपनी तरफ से तीनों पक्षों को  राहत  देने की कोशिश की है पर 'किन्तु-परन्तु' फिर भी चलता रहेगा,क्योंकि कुछ तत्व फिर भी चाहेंगे कि  'राजनीति' की आंच धीमी न पड़े.फैसले से पहले  पूरा देश जैसे लगा ,कर्फ्यू या आपात-स्थिति की चपेट में है.अखबारों में प्रधानमंत्री सहित कई रहनुमाओं के 'शांति' बनाये रहने के आह्वान लगातार आते रहे .समाचार-चैनल देखो तो डर लगता  कि कोई पहाड़ टूटने वाला है.

मैं समझता हूँ कि आम आदमी को ऐसे फैसलों से ज़्यादा  कुछ लेना-देना नहीं है,फिर भी माहौल बनाकर उसे एक पार्टी बनाया जा रहा है.हमारे लिए भगवान राम किसी धर्म,देश,स्थल या फ़ैसले की सीमा से परे हैं.वे न तो एक 'संपत्ति' हैं जिस पर कोई फ़ैसला लागू हो न ही वे पक्षकार हैं.उनके आदर्शों में सबसे अहम् बात त्याग की रही,जिसे उनके तथाकथित भक्त सिरे से नकार रहे हैं.आम अवाम को आशंका से भरा गया ,पर वास्तव में अब वैसा उन्माद नहीं आनेवाला.

राम को  भले ही आज के आदेश से कोई ईनाम मिले न मिले,समाचार-चैनलों की टी.आर.पी. बढ़ जाएगी,दाम मिल जायेंगे और नेताओं को एक ज़रूरी काम ! सबसे खास बात यह है कि उस 'अयोध्या' के लिए सब चढ़ाई कर रहे हैं ,जिसे जीता नहीं जा सकता !

8 टिप्‍पणियां:

  1. अयोध्या अपना नाम सदा सार्थक करेगी।

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  2. @प्रवीण पाण्डेय अयोध्या ही नहीं,भारतवर्ष भी अंततः अपना नाम सार्थक करेगा,जिसके लिए दुनिया सनातन काल से उसके प्रति आकर्षित है...

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  3. महाराज ...एक बार फिर कहूंगा....राम आस्था का प्रश्न है ...जिसका कोई सुबूत देने की जरुरत नहीं है !!!!


    आपके विपरीत ...चलते चलते फिर कहूंगा ...कि आम आदमी की इसमें रूचि है ....चाहे वह जिस रूप में ही क्यों ना हो !

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  4. @प्रवीण त्रिवेदी मास्साब ! हमने कब कहा कि राम आस्था का प्रश्न नहीं हैं ? ऐसे मामले अदालत या सियासी लोग हल नहीं करते. ६ दिसंबर १९९२ हो या ३० सितम्बर २०१०, अपने राम जहाँ के तहां हैं. हाँ कुछ सियासी पार्टियों का ज़रूर कुछ बन-बिगड़ गया है.

    हरि अनंत , हरि कथा अनंता....

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  5. अयोध्या' के लिए सब चढ़ाई कर रहे हैं ,जिसे जीता नहीं जा सकता ! -सही लिखा!

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  6. @अनूप शुक्ल लगता है,अभी भी लड़ाई ख़त्म नहीं हुई है,भाई लोग फिर से इसे पेचीदा बनाने पर तुले हैं.

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  7. अयोध्‍या प्रतीक है उस हिन्‍दुत्‍व का जो सभी मतो का सम्‍मान करते हुये कहता हैकि तुम अपने मत पर चलते हुये भी परम लक्ष्‍य तक पहुँच सकते हो । और बाबरी मस्जिद प्रतीक है उस हिटलरी घोषणा का कि केवल और केवल मेरा मत ही सही है।

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  8. @हरिमोहन सिंह अपना धर्म केवल इसीलिये नहीं अच्छा है कि दूसरे के धर्म हमें गलत दिखते हैं.हिन्दू धर्म में भी रहते हुए कई लोग हिटलर-शाही को ही बढ़ावा दे रहे हैं.

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