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5 अगस्त 2010

अपना-अपना खेल !

खेल हुए चालू नहीं,लगा निकलने तेल,
अपनी-अपनी कुप्पी में ,भरे ले रहें तेल !

ऐसा मौका हाथ लगा है,बड़े समय के बाद,
नेता,अफ़सर ,चोर सब , होंगे जब आबाद !

चूना,मिट्टी,ट्रेड-मिल ,सभी जगह है छाप ,
सारे ठेके इन्हें मिलेंगे, कहीं नहीं हम,आप !

पदक मिलें ना मिलें सही,हो जायेंगे खेल,
चाहे कितना ज़ोर लगा लो,असल खिलाड़ी फ़ेल!

'कॉमन वेल्थ' से हैं उम्मीदें,सबकी अपनी-अपनी,
जिसकी जितनी बाहें लम्बी, उसकी उतनी मनी !

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