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19 अप्रैल 2010

तुम हो न सके मेरे !


जिनकी हमें तलाश थी,वो इस तरह मिले,
उनसे हुआ जो सामना ,हसरत से ना मिले।

ख़्वाब-ओ-ख़याल क्या थे ,मिलने से उनके पहले,
फूलों को थे तलाशते ,काँटे मुझे मिले।


कल तक रहे जो हमदम, मेरे जनम-जनम के,
जनम-जनम की बात क्या,दो पल भी ना मिले।

इस ज़िन्दगी में क्या बचा,तनहाइयों के सिवा,
फिज़ा है उनके बाग़ में, मुझे उजड़ा चमन मिले।


मुझको सियाह रात देने वाले ''चंचल",
हर मोड़ पर तुझे,आफ़ताब ही मिले !

फतेहपुर,१५/०१/१९९०

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