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14 मार्च 2010

बाबाओं के पीछे क्यों !

आजकल बाबाओं के चर्चे अखबारों ,चैनलों और आम आदमी की ज़ुबान पर खूब हो रहे हैं। मैं यह पूछना चाहता हूँ कि बाबाओं ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया है जिसके लिए लोग उनके पीछे लट्ठ ले के पड़े हैं।
भई,आज के बाबा हमारे ही समाज के अंग हैं,इसी से निकले हैं और अगर इसी में रम रहे हैं तो क्या बुरा है ?जिस समाज में जो रहता है तो उसको वैसा ही रहना पड़ता है नहीं तो वह इससे अलग-थलग नहीं पड़ जायेगा !जिस तेजी से हम सब आधुनिकता की दौड़ में भाग रहे हैं ,उसमें हमें कुछ भी साधन अपना लेना बुरा नहीं लगता है। आज नैतिकता और चरित्र की बातें करने और सुनने वाले दोनों भूखे मरेंगे,तो क्योंकर कोई ऐसा 'बेहूदा 'और लम्बा रास्ता अपनाये ?पैसे बनाने के खेल में जब समाज का हर तबका(नौकरीपेशा,राजनेता,चौथा स्तम्भ ,पुलिस,कार्यपालिका,न्यायपालिका,साहित्यकार,कलाकार)लगा हो तो केवल बाबाओं से उच्च नैतिक व सतयुगी मानदंडों की अपेक्षा करना क्या न्यायसंगत है ?

मुझे अपने बचपन की याद आती है,जब हमारे गाँव में वर्ष में एक-दो बार साधुओं का आगमन होता था। कई बार तो वे मेरे यहाँ भी आकर व्यक्तिगत ढंग से ठहरते थे या कुछ अन्य लोगों के यहाँ। मेरी भागीदारी समान रूप से हर जगह होती थी क्योंकि मुझे ,पता नहीं किन कारणों से सत्संग प्रिय था। शाम को कई बार साधुओं द्वारा कीर्तन-प्रवचन होता था जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल होते थे। तब उनके लिए खान-पान की यथा-संभव व्यवस्था होती थी तथा विदाई के वक़्त मामूली-सी दक्षिणा।

अब आज के बाबाओं की कार्यशैली देखो तो पांच-सितारा सुविधाएँ भी फीकी लगेंगी। कहीं भी प्रवचन या सत्संग का कार्यक्रम हो तो बाबा के चेले पूरा ठेका लेके आयेंगे और यदि लेन-देन में कमी-बेसी हो जाए तो खूँटा गाड़ने से पहले ही वे अपना तम्बू उखाड़ लेंगे !वहाँ जाना भी आम आदमी के वश में नहीं होता । उनके प्रवचन की शुरूआती 'दक्षिणा' ही ५०० रुपये से शुरू होती है।

अब ऐसे कर्म-धर्म वाले बाबाओं से क्या उम्मीद रखी जाये? वे तो ईश्वर के बजाय अपने चित्रों,पत्रिकाओं का प्रचार-प्रसार करने में ही लगे रहते हैं इससे नाम और दाम दोनों मिल जाते हैं। इसलिए उन पर प्रहार करने वाले इसके स्रोत को भी देखें यदि वे इस बीमारी से मुक्त हों !

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा। पहले के बाबा समाज को देते थे और अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम रखते हुए बहुत थोड़ा लेते थे। आज कल वे सिर्फ लेते ही लेते हैं। देते कुछ नहीं।

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  2. बाबाओं की उपस्थिति समाज के लिए आवश्यक है। लेकिन कुछ बाबा कुछ अनैतिक कर रहे थें। जो हुआ अच्छा हुआ । इस घटना से सभी बाबा खुद को सुधारने का प्रयत्न करेंगें।..... वैसे बाबाओ के खिलाफ कुछ चर्च प्रायोजित मिडिया लगी हुई है। जिसका एक मात्र ध्येय बाबाओ को बदनाम करना है। वह अपने कुटिल उद्देश्य मे सफल होने वाले नही है।......

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  3. सही लिखा भाई ........."
    amitraghat.blogspot.com

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  4. बात तो सही है बिलकुल..
    तभी तो लोग इनके पास जा कर धर्म उल्टा खो रहे हैं..

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