हम २१ वीं सदी में लगातार अपने कदम बढ़ाते जा रहे हैं,पर हमारे नैतिक और शैक्षिक मूल्य निरन्तर पतन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। आज समाज में कई कुरीतियों ने जन्म ले लिया है,जिसमें एक प्रमुख रूप से यह है कि हम अपना भौतिक विकास किसी भी कीमत पर करना चाहते हैं। शिक्षा के मंदिर भी इससे अछूते नहीं रहे! न वे गुरू रहे ना ही वे शिष्य। ऐसे अध्यापक थोड़ी संख्या में ही हैं जो अपने काम से न्याय नहीं कर पा रहे पर बदनाम पूरा कुनबा हो गया है। इसका फौरी नुकसान ये हुआ है कि अधिकतर बच्चे बिगड़ रहे हैं और गुरुओं के लिए उनमें मन में सम्मान कम हुआ है। बहुत सारे अन्य कारण हैं जिन्होंने वर्तमान शिक्षा -व्यवस्था को चौपट कर दिया है। समाज ,सरकार और शिक्षकों का मिलकर यह दायित्व है कि शिक्षा -व्यवस्था के गिरते स्तर को रोकें!
अच्छा लिख है आपने ..
जवाब देंहटाएंसवाल निकल के सामने आता है ---
( बस जिज्ञासा वश ) क्या आप अध्यापक हैं ?
अमरेन्द्र भाई ! जय राम जी की ....पता नहीं पर शायाद हमीं से पूंछा हो पर मास्टर तो हम भी हैं !!!
जवाब देंहटाएंhttp://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_5186.html
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