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12 जनवरी 2009

मेरे पिताजी !

मेरे पिताजी जिन्हें मैं बचपन से ही भइया कहता आ रहा हूँ ,मेरे सामाजिक और नैतिक गुरू हैं। सब कहते हैं कि उनके चेहरे के मैं सबसे ज़्यादा नज़दीक हूँ। शायद यही वज़ह रही कि मैंने कई चीज़ें उन्हीं से आत्मसात की। उनका पूरा जीवन ग्रामीण परिवेश में ही बीता । वह अपने अध्यापकीय जीवन में आदर्श की तरह थे क्योंकि आस-पास के इलाके में उनकी मिसाल अभी भी दी जाती है। उनके पढ़ाए हुए लड़के उनको कभी भूल नहीं सकते हैं खासकर उन्होंने विशायकपुर{नीबी,रायबरेली } में जो काम किया उसे लोग अभी भी याद करते हैं ।
मेरे भइया पहले तो मेरे दादाजी पूज्य कन्हैयालाल त्रिवेदी के पास बम्बई में ही काम करना चाहते थे पर उनकी इच्छा थी कि भइया गाँव में ही रहकर खेती-पाती की देखभाल करें पर वे गाँव में तो रुक गए मगर टीचर्स -ट्रेनिंग उन्होंने ज़रूर कर ली।उनका पूरा नाम श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी है।
मुझे अपने बचपन की भरपूर याद है और यह कि भइया अनुशासन में बड़े सख्त थे. हम भाई-बहन जब भी कहीं बाहर जाते तो यह ताकीद दी जाती कि अगर किसी से झगड़ा किया तो उसी के आगे हमारी पिटाई की जायेगी। इस नुस्खे ने ऐसा काम किया कि हम लोग झगड़े-झंझट से दूर ही रहते। पढ़ाई के बारे में भी वे मेरा हमेशा ध्यान रखते और घर पर कोई काम करने को होता तो वह छोटे भाई से ही करने को करते क्योंकि उसका पढ़ने में मन नहीं लगता था। पूजा-पाठ और स्नान आदि में वे नियम के पूरे पक्के थे। उनके गुणों से ही मुझमें ईमानदारी और मानवीय गुण आ पाये जिनकी आज के समय में बड़ी ज़रूरत है। यह उनका ही असर रहा कि मैं हर प्रकार के दुर्गुणों से दूर हूँ।
मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि वह ऐसे माता-पिता सबको दे। भगवान् मेरे भइया और अम्मा को लंबा और निरोगी जीवन दे!


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1 टिप्पणी:

  1. आपकी गहन अनुरक्ति,आपका आदर.....
    आशीर्वाद बनकर आपके साथ रहेंगे,
    बहुत अच्छा लगा पढ़कर

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