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17 दिसंबर 2008

अमेरिका और पाकिस्तान का खेल !

छब्बीस नवम्बर दो हज़ार आठ का दिन भारत के लिए एक निर्णायक मोड़ की तरह रहा है। मुंबई में हमले हुए पर छलनी हर भारतीय का सीना हुआ। आतंकवादी हमले पहले भी बहुत हुए हैं पर यह तो दुश्मन का दुस्साहस था कि उसने शेर को उसकी मांद में आकर ललकारा है!हमला होने के बाद देश-विदेश से कड़ी प्रतिक्रियाएं आयीं खासकर भारत के नाभिकीय सहयोगी अमेरिका से कुछ ज़्यादा ही। कहा गया कि भारत को अपनी सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है और इस काम में वो उसके साथ खड़ा है। अमेरिका ने इस बावत लगे हाथों चेतावनी भी जारी कर दी । यह तो था परदे के आगे का खेल जिसमें पाकिस्तान ने कुछ ना-नुकुर दिखाने के बाद नाकाफ़ी कार्रवाई की पर असली खेल तो परदे के पीछे चलने लगा जिसमें हिंदुस्तान को बरगलाने का काम किया जा रहा है। पहले मैडम राइस आती हैं हमारे ज़ख्मों को सहलाती हैं,पाकिस्तान की लानत-मलामत करती हैं और पाकिस्तान जाकर उनको भी अंदरूनी दिलासा देती हैं और आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में उसका बखान करती हैं,इस तरह से अमेरिका हमारे मामले में हमारी मदद करता है और हम भी गदगद हो जाते हैं कि विश्व -बिरादरी हमारे साथ है। अरे भाई अपनी लड़ाई ख़ुद ही लड़नी पड़ेगी,अमेरिका या अन्य कोई देश क्योंकर अपनी टांग फँसाएगा?
याद आते हैं वे दिन जब अमेरिका की एक घुड़की के आगे पाकिस्तान ने अफगानिस्तान -मामले में उसकी जी-तोड़ मदद की थी, बाद में पत्रकार डानिएल क्रेग के हत्यारे को फांसी भी चढ़ा दी लेकिन यहाँ मसला भारत जैसे नरम-देश से है जो कोई पटाका भी फोड़ेगा तो अंकल सैम को चिट्ठी के ज़रिये सूचित करेगा। कहने का लब्बो-लुबाब यही है कि हमें युद्ध का डर दिखाकर कार्रवाई करने से रोका जाता है जबकि अपने लिए दूसरी दलीलें दी जाती हैं। कहते हैं ना कि 'समरथ को नहि दोष गुसाईं ' तो भाई यह अमेरिका और पाकिस्तान का खेल ऐसे ही चलता रहेगा और हम केवल हाथ मलते रह जायेंगे क्योंकि आतंकवादी तो दोनों ही हैं बस उनका तरीका अलग है!
chanchalbaiswari.blogspot.com


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