tag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post5314182937548423298..comments2023-10-20T18:30:34.424+05:30Comments on बैसवारी baiswari: लेखक या ब्लॉगर होने के नाते !संतोष त्रिवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comBlogger38125tag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-36334844480411440592012-08-18T10:31:19.878+05:302012-08-18T10:31:19.878+05:30अच्छी अच्छी बातें लिखी हैं जीअच्छी अच्छी बातें लिखी हैं जीKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-45000107647842487322012-05-21T21:53:03.485+05:302012-05-21T21:53:03.485+05:30मैं तो साफ कहूं छपने के लिए लिखता हूं या लिखता हूं...मैं तो साफ कहूं छपने के लिए लिखता हूं या लिखता हूं इसलिए छपता हूं। अब छपता क्यों हूं, इसे तो प्रकाशित करने वाले संपादकगण ही बेहतर से बतला सकते हैं। वैसे यह कार्य जिम्मेदार पाठक और ब्लॉगर भी कर सकते हैं। फिर जबर्दस्ती लिखा नहीं जाता। हां, किसी समाचार को पढ़कर उस पर अपनी टिप्पणी यानी लिखने के लिए ऑटोमैटिक सोच मोड में चला जाता हूं और लिखा जाता है। अब वह कविता हो, व्यंग्य हो - आखिर है तो सब शब्दों का समुच्चय ही। पढ़ने वालों को उचित लगे तो ठीक वरना तो नकार सकते हैं। मैं किसी से शिकायत करने नहीं जाता हूं पर यह अवश्य सीखना चाहता हूं कि क्या सुधार करूं कि सबको भला लगे और अच्छा संदेश मिले। लेखन एक जिम्मेदारी भरा कार्य है। इसे जिम्मेदारी समझने वालों तक ही सीमित रहना चाहिए पर अब यह इसलिए पॉसीबल नहीं है क्योंकि इंटरनेट से जुड़ा प्रत्येक शख्स अब एक जिम्मेदार लेखक और रचनाकार बनने का मुगालता पाल चुका है और इस गलतफहमी को स्वीकार भी नहीं करता है। आपने सोच के लिए अच्छे विषय पर कीबोर्ड का इस्तेमाल किया है। मैं तो सिर्फ खटराग में ही व्यस्त रहता हूं, उसमें से ही कभी कभी मनभावन राग निकल कर बाहर आ जाते हैं।नुक्कड़https://www.blogger.com/profile/00641159955741972638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-46679342373684789062012-05-21T10:57:05.129+05:302012-05-21T10:57:05.129+05:30सभी साथियों का इस विमर्श में शामिल होने का आभार. ह...सभी साथियों का इस विमर्श में शामिल होने का आभार. हमें विमर्श करते समय यह ज़रूर ध्यान देना चाहिए कि ऐसी कोई बात न कह दी जाए जिससे निजी भावनाएं आहत हों,तबके सिवा जब वह हास्य में न कहा गया हो !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-39753393871558530082012-05-21T10:37:12.312+05:302012-05-21T10:37:12.312+05:30:):):)
pranam.:):):)<br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-28264360808970608012012-05-20T00:31:22.699+05:302012-05-20T00:31:22.699+05:30जी, इसके मूल में क्या है? शायद लोगों को यह अहसास ह...जी, इसके मूल में क्या है? शायद लोगों को यह अहसास ही नहीं है कि इंटरनैट पर लिखी बात सार्वजनिक है और संसार में हर प्रकार के लोग मौजूद हैं। कई तो शायद व्यक्तिगत हिसाब-किताब बराबर करने के ऐसे मौके ढूंढते रहते हैं। जिसके पीछे पड़ जायें उसे राम बचाये!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-57781179721970610102012-05-20T00:27:13.533+05:302012-05-20T00:27:13.533+05:30विचार से सहमत हूँ!विचार से सहमत हूँ!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-84194569558121996272012-05-20T00:24:02.286+05:302012-05-20T00:24:02.286+05:30आभार सुज्ञ जी! आप सरीखे विचारवान लेखक की हम सब को ...आभार सुज्ञ जी! आप सरीखे विचारवान लेखक की हम सब को आवश्यकता है। आलेख पहले ही पढ लिया था। यह टिप्पणी भी कोई कम नहीं है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-56939773096116980252012-05-20T00:22:33.891+05:302012-05-20T00:22:33.891+05:30ब्लॉगिंग आमने-सामने की बतचीत जैसे रियल टाइम तो है ...ब्लॉगिंग आमने-सामने की बतचीत जैसे रियल टाइम तो है नहीं जहाँ ग़लतफ़हमी होने पर तुरत बात स्पष्ट की जा सके। बेनिफ़िट ऑफ़ डाउट भी यहाँ की ज़रूरत है और इंसान पहचानने की कला भी। दिन रात बगल से छुरियाँ चलाने वाले तीन पोस्ट में राम नाम ले लेते हैं तब तो भक्तजन निहाल हो जाते है तो दोस्तों की वैचारिक असहमति को बर्दाश्त करने में भी कोई बुराई नहीं है। मतभेद की एकाध टिप्पणी के बजाय मित्र के गुण प्रकाशित करने वाली अनेक टिप्पणियों, पोस्ट्स पर ध्यान दिया जाये तो बेहतर है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-35657035347124109252012-05-20T00:15:49.544+05:302012-05-20T00:15:49.544+05:30सुज्ञ जी, बहुत सुन्दर उपमा दी है आपने, आभार!सुज्ञ जी, बहुत सुन्दर उपमा दी है आपने, आभार!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-91950363788931248872012-05-20T00:15:04.598+05:302012-05-20T00:15:04.598+05:30:) ... इक धुन्ध में जीना है, ...:) ... इक धुन्ध में जीना है, ...Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-32575757598901434422012-05-19T23:47:15.599+05:302012-05-19T23:47:15.599+05:30सोने को कितना ही पीटो, ज्यों पीटो त्यों सघन होता ह...सोने को कितना ही पीटो, ज्यों पीटो त्यों सघन होता है। पर भुरभरी रेत तो छूने मात्र से बिखर जाती है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-26123862993205825362012-05-19T21:34:39.195+05:302012-05-19T21:34:39.195+05:30@ कभी आकाश में बादल होते हैं कभी आँख पर काला चश्मा...@ कभी आकाश में बादल होते हैं कभी आँख पर काला चश्मा, कभी अमावस्या भी होती है। किसी को यह अंतर दिखते हैं, किसी को नहीं, और कोई ऐसा भी है जो देखने मेन अक्षम है:-<br /><br />सोच रहा हूँ अगर तीनों काम एक साथ हो जाएँ तो क्या होगा?संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-57190959299338013222012-05-19T21:15:16.071+05:302012-05-19T21:15:16.071+05:30@हमारे बीच में विचारों को लेकर तो टकराहट होनी चाहि...@हमारे बीच में विचारों को लेकर तो टकराहट होनी चाहिए पर यह टकराहट किसी के व्यक्तित्व को चोट पहुंचाए बिना ही हो.<br /><br />- सामान्य लोगों का यही प्रयास रहता है लेकिन यदि किसी को चोटिल महसूस करने की बीमारी हो तो उसका इलाज तो उसे खुद ही कराना पड़ेगा।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-75744829268188222262012-05-19T21:08:46.136+05:302012-05-19T21:08:46.136+05:30लेखक, ब्लॉगर, सभी इंसान हैं, मानवीय खूबी-खामी से य...लेखक, ब्लॉगर, सभी इंसान हैं, मानवीय खूबी-खामी से युक्त। अहम को चोट भी लग सकती है और लेखन दम्भ-भरा भी हो सकता है। सबकी भावनाओं का ध्यान रखने वाले को भी कई बार यह देखना पड़ता है कि यदि बोलना चुप रहने से ज़्यादा ज़रूरी है तब फिर वही किया जाये। कुछ लोग जल्दी आहत हो जाते हैं, कुछ जन्मजात आहत रहते हैं। कुछ किसी एक व्यक्ति को आहत करने का मोर्चा जमाये चल रहे हैं। किसी को प्रशंसा चाहिये, तो कोई किसी और की प्रशंसा से आहत हो जाता है। जिसका जैसा व्यक्तित्व उतनी उसकी सीमायें। लिखते रहिये। कई बार सही लिखा भी गलत समझा जाता है। कभी आकाश में बादल होते हैं कभी आँख पर काला चश्मा, कभी अमावस्या भी होती है। किसी को यह अंतर दिखते हैं, किसी को नहीं, और कोई ऐसा भी है जो देखने मेन अक्षम है। लिखते समय इतना ही ध्यान रहे कि हमारे ऊपर संसार की ज़िम्मेदारी नहीं है। इस असीम ब्रह्मांड में हम सा क्षणभंगुर .... किसे क्या सिखायेगा और क्या उपदेश देगा?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-56467826358182726452012-05-18T21:46:53.889+05:302012-05-18T21:46:53.889+05:30इस चिंतन को यहाँ विस्तार दिया गया है………
सुज्ञ: ले...इस चिंतन को यहाँ विस्तार दिया गया है………<br /><br /><a href="http://shrut-sugya.blogspot.in/2012/05/ego-of-knowledge.html#comment-form" rel="nofollow">सुज्ञ: लेखकीय स्वाभिमान के निहितार्थ</a>सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-19668985172914143932012-05-18T19:23:01.628+05:302012-05-18T19:23:01.628+05:30बात ये है जी कि अपने हिसाब से हर कोई सार्थक लेखन ह...बात ये है जी कि अपने हिसाब से हर कोई सार्थक लेखन ही कर रहा है, ये अलग बात है कि दूसरे उसे किस नजर से देखते हैं|<br />वैसे बात सोचने लायक है और सोचने पर फिलहाल कोई टैक्स भी नहीं है सो जरूर सोचेंगे और ढेर सारा सोचेंगे :)संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-2248540712679657522012-05-18T18:53:33.838+05:302012-05-18T18:53:33.838+05:30यहाँ आकर थोड़ा बदल जाते हैं
वैसे तो हम वैसे ही होत...यहाँ आकर थोड़ा बदल जाते हैं<br />वैसे तो हम वैसे ही होते हैं<br />जैसे जहाँ से हम यहाँ आते हैं ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-19015375344456534472012-05-18T14:00:51.007+05:302012-05-18T14:00:51.007+05:30बहुत सार्थक आलेख...विचारों में मतभेद स्वाभाविक है ...बहुत सार्थक आलेख...विचारों में मतभेद स्वाभाविक है पर रचना पर प्रतिक्रिया करते समय व्यक्तिगत मतभेदों से दूर रहें और संयमित प्रतिक्रिया दें ...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-81890595050995095272012-05-18T08:50:31.633+05:302012-05-18T08:50:31.633+05:30मैं लिखता इसलिये हूं कि…
बहरहाल, सवाल फ़िर भी अपनी ...<a href="http://hindini.com/fursatiya/archives/318" rel="nofollow"> मैं लिखता इसलिये हूं कि…</a><br />बहरहाल, सवाल फ़िर भी अपनी जगह बना हुआ है: मैं क्यों लिखता हूं? सच तो यह है कि इस पर मैंने कभी ज्यादा सोचा नहीं, क्योंकि जब-जब सोचा तो लिखना बन्द हो गया। अब इसका जवाब कुछ अनुमानों से ही दे सकता हूं। पहला तो यह कि लेखन-कर्म महापुरुषों की कतार में शामिल होने का सबसे आसान तरीका है। चार लाइने लिख देने भर से मैं यह कह सकता हूं कि मैं व्यास, कालिदास, शेक्सपीयर, तोल्सताय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और प्रेमचन्द की बिरादरी का हूं।<br />इसके लिये सिर्फ़ थोड़े से कागज और एक पेंसिल की जरूरत है। प्रतिभा न हो तो चलेगा, अहंकार से भी चल जायेगा- पर इसे अहंकार नहीं लेखकीय स्वाभिमान कहिये। लेखकों के बजाय आप किसी दूसरी जमात में जाना चाहें तो वहां काफ़ी मसक्कत में करनी पड़ेगी; घटिया गायक या वादक बनने के लिये भी दो-तीन साल का रियाज तो होना चाहिये ही। लेखन ही में यह मौज है कि जो लिख दिया वही लेखन है, अपने लेखन की प्रशंसा में भी कुछ लिख दूं तो वह भी लेखन है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-20752435654809871132012-05-18T08:20:11.063+05:302012-05-18T08:20:11.063+05:30ये तो बड़ी ऊंची पोस्ट हो गयी सिरीमानजी! :)ये तो बड़ी ऊंची पोस्ट हो गयी सिरीमानजी! :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-78648170221162122882012-05-18T08:04:34.554+05:302012-05-18T08:04:34.554+05:30sabhi se sahmatsabhi se sahmatAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12447523617860116951noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-48610885492115434902012-05-18T07:09:34.126+05:302012-05-18T07:09:34.126+05:30रश्मि जी से सहमत. और रचना से भी. इसको मैंने खुद मह...रश्मि जी से सहमत. और रचना से भी. इसको मैंने खुद महसूस किया है सिर्फ महसूस ही नहीं किया है बल्कि देखा भी है. विषय की आलोचना कीजिये व्यक्ति की नहीं. उसकी कलम की धार देखे और उसका सामाजिक सरोकार. पर ऐसा हो कब पता है? हम किसी को भी अगर हमारी कोई व्यक्तिगत राय है तो शब्दों से सारी सीमा पार कर जाते हें बगैर ये देखे कि खुद आपकी छवि कुछ अन्य लोगों के सामने उससे अधिक बुरी बन रही है जिसको आप नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हें.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-74799476711452339442012-05-18T06:56:46.577+05:302012-05-18T06:56:46.577+05:30जिस विषय को पढ़ा जा रहा है , टिका टिप्पणी उस पर की...जिस विषय को पढ़ा जा रहा है , टिका टिप्पणी उस पर की जाये , मगर प्रबुद्ध ब्लॉगर्स भी व्यतिगत आक्षेप लगाने से गुरेज नहीं करते . स्वस्थ वाद -विवाद आवश्यक है विचार को आगे बढ़ाने के लिए , होना भी चाहिए! <br />जब किसी का नाम लेकर मुहब्बत के इज़हार से लेकर रिश्ता टूटने तक की खबर पोस्ट पर लिखी जायेगी तो बात व्यक्तिगत ना होकर सार्वजानिक हो जाती है , फिर आलोचना या प्रतिक्रिया से कैसे निरपेक्ष रहने की बात फिजूल है !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-25720668109359263182012-05-17T17:33:43.354+05:302012-05-17T17:33:43.354+05:30अब लिखने भर से किसी विशेष परिवर्तन की आशा व्यर्थ ह...अब लिखने भर से किसी विशेष परिवर्तन की आशा व्यर्थ है, पर लिखते रहना हमारे लिए जरूरी है क्योंकि हम सभी जागरूक, पढ़े-लिखे इन्सान हैं और हम अपने विचारों को अपने तरीके से व्यक्त किये बिना नहीं रह सकते...सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाईप्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3648196938872431745.post-70787584836789812642012-05-17T16:50:35.447+05:302012-05-17T16:50:35.447+05:30sarthak post .aabharsarthak post .aabharShikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com