26 नवंबर 2008

हमरे घर ते आई चिट्ठी !

अम्मा का प्यार दुलार लिखा,
बप्पा का आसिरवाद छुपा ,
भइया ,भउजी का सनेहु,
बहिनी कै चाहत लिखी सदा ,
हम फूले नहीं समाय रहेन,

हमका मिली गाँव कै मट्टी ।
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।

'बच्चा ,अपने खान-पियन का
ध्यान हमेशा राख्यो ,
ग़लत राह ना कबहूँ पकड्यो
बातै
हमरी गांठी बाँध्यो

अम्मा आगे लिखवाती हैं
'बच्चा ,तुम बिन होरी बीती ,

तुम रह्यो नहिन मनु लाग नहिन ,
हम दुःख के आंस रहिन
पीती,

तुम हमारि आसा बत्ती ,
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।

बप्पा हमका समझाय कहेन ,
'आपन काम लगन ते कीन्ह्यो ,

एकु बात अउ समुझि लेव ,
चिट्ठी जल्दी -जल्दी दीन्ह्यो ,


आंबे मा लागि गई अम्बिया खट्टी,
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।

भउजी कै बिथा बड़ी भारी
'बच्चा , का भूलि गयो हमका ?

तुम्हरे भइया ते रोजु कहिथ,
जल्दी ते लई आवैं तुमका ।

तुम चले आव पउतै चिट्ठी
हमरे घर ते आई चिट्ठी । ।
 

दल्ली -राजहरा ,छत्तीसगढ़ --31-03-1991

2 टिप्‍पणियां:

  1. अब तो भौजी गहरे माँ हन तो अब का हाल हन ?
    अब चिट्ठी का ज़माना तो कब का सरक गया !

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  2. लाजवाब...
    बहुते मार्मिक रहा आपका इ वाला रचना..बस पढ़ते गए और घर की याद आती गई |

    मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
    आभार..|

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